होली आ रही है...कायदे से तो अभी उसके आने में दो हफ्ते हैं पर हमारा मूड अभी से होलिया रहा है...कारण है की स्कूल के दिन याद आ रहे हैं।
फरवरी में हमारे फाईनल एक्साम होते थे...ये तो मत पूछिए की एक्साम कैसे होते थे...जरूरी ये जानना है की आखिरी एक्साम कैसा होता था। हमारा एक दिन में एक ही पेपर होता था और स्टडी लीव नहीं मिलती थी यानि हम जैसे टेबल पर सर रख के सोने वाले लोगों की आफत होती थी। बचपन से ही हमपर पढ़ने का बड़ा प्रेशर रहता था...ऐसा नहीं की इससे कुछ होता था। बस इतना की दोनों भाई बहनों में से किसी ने भी शैतानी की तो थोक के भाव में दोनों को डांट पड़ती थी। अगर मैं नहीं पढ़ रही हूँ...तो मेरे कारण छोटे भाई पर बुरा असर पड़ेगा, कुछ सीखने को कहाँ से मिले उसको, जब दीदी ही पढ़ाई लिखाई से भागती है तो वो तो छोटा है उसको कितना समझ है। और अगर वो किसी खुराफात में पकड़ा गया तो उसे डांट पड़ती थी की दीदी पढ़ रही है और तुम डिस्टर्ब कर रहे हो।
एक्साम के बारे में एक चीज़ बड़ी अच्छी लगती थी, सुबह सुबह दही चूड़ा खाने को मिलता था...उस वक्त ये ब्राह्मण का गुण हममें जोरो से विराजमान था, और हम तो अपने एक्साम के ख़राब होने का दोष भी खट्टे दही पर दाल देते थे। ऐसा दही खाकर भला एक्साम अच्छा जाता है किसी का...तुम जान के मेरा एक्साम ख़राब की मम्मी!
बस से स्कूल जाते वक्त हमारे शहर में एक वीआईपी मोड़ नाम की जगह आती है, वहां मछलियाँ बिकती थी...और नॉर्मली तो हमें मछली देख के उलटी आती थी पर एक्साम के समय चूँकि कहा जाता था कि मछली देखने से एक्साम अच्छा जाता है पूरी की पूरी बस के बच्चे बायीं तरफ़ की खिड़कियों पर झुक जाते थे बस एक झलक के लिए, कई बार तो लगता था बस ही उलट जायेगी।
हम बात कर रहे थे होली की...खैर, ये उन दिनों की बात है जब फाउंटेन पेन से लिखते थे, सुबह सुबह पेन की निब धो धा के रेडी और अक्सर इंक की बोतल भी साथ लेकर ही जाते थे। हालाँकि ६ सालों के अपने स्कूल में जब हमने पेन से लिखा कभी भी पेन का इंक ख़तम नहीं हुआ। हमें बाकी लोगो को देख कर आश्चर्य होता था की आख़िर क्या लिख रहे हैं की पेपर पर पेपर लिए जा रहे हैं...हाँ हर बार इंक की बोतल को निकाल कर डेस्क पर जरूर रख देते थे, अपने मन की तसल्ली के लिए।
मैंने बात शुरू की थी मन के होलियाने को लेकर...तो हमारे स्कूल का सेशन ऐसा था कि फरवरी में एक्साम ख़तम और फ़िर अप्रैल में नए क्लास शुरू होते थे। इस बीच होली आ कर गुजर जाती थी...स्कूल के अलावा हम लोगो का मिलना जुलना कम ही होता था। तो फाइनल एक्साम में न सिर्फ़ पेपर का डर था बल्कि ये भी strategy बनती थी की किसको कहाँ रंग लगाना है। और रंग यानि इंक....रंग लाना स्कूल में allowed नहीं था। और उसपर आलू वाले छापे...divider से खोद खोद कर लिखे गए वो ४२० या चोर या गधा....और वो मासूम अल्हड़पन अब बड़ा याद आता है।
लास्ट दिन वाला एक्साम लिखने का मन नहीं करता था...दिमाग तो शुरू से बाहर दौड़ते रहता था, बस किसी तरह पेपर निपटते थे और पूरा स्कूल जैसे होलिया जाता था। इंक और चौक का धड़ल्ले से प्रयोग होता था...पानी जैसी निरीह चीज़ भी वाटर बोतल में होने से खतरनाक अस्त्र का दर्जा हासिल कर लेती थी। भीगे रंगे थके हुए हम घर पहुँचते थे तो लगता था कितना बड़ा किला फतह कर के आए हैं।
फ़िर से फरवरी लगभग ख़त्म हो रही है, माहौल बिल्कुल से वही हो रहा है...बस वो बड़ा सा मैदान नहीं है जहाँ एक थर्मस पानी से भिगोने के लिए कोई १० राउंड दौड़ा दे। स्कूल की याद आ रही है...और उन चेहरों की भी.
हर मौसम ऐसी ही कुछ मीठी मीठी यादें लेकर आता है और चला जाता है. लेकिन वो दिन तो अब न लौटेंगे. चलो यादों के सहारे कुछ लम्हे यों ही...... आभार.
ReplyDeleteखूबसूरत यादें। पढ़ कर अच्छा लगा।
ReplyDeletewakai yaad aagai wo baat jab ham fountain pen se likha karte the ... sahi likha hai aapne ... bachap yaad dila diya ...
ReplyDeletearsh
अब पूजा आपके ब्लॉग के माध्यम से आपके स्कूल की यादों के साथ हम भी जूड गय.
ReplyDeleteहोली के रंगों si रंगबिरंगी यादें हैं ..बहुत ही मीठी ..
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ReplyDeleteप्रणाम
ReplyDeleteआप ने इस लेख के माध्यम से मुझे पुराने दिन याद दिला दिए , हम तो कई रंगों की स्याही ले जाते थे और शर्ट के पीछे तरफ तरह की आकृति बनाते थे . कभी - कभी तो लडाई भी हो जाती थी लेकिन मज़ा बहुत आता था .
धन्यवाद
हाय हमें कोई मछली की दूकान रास्ते में न मिली वर्ना हम भी खासे नम्बरों से पास हो जाते ...होली पर बस एक मुश्किल आती थी सारी केन्टीन ,मेस ,सारे होटल बंद रहते थे ...दोपहर में खाने का जुगाड़ ढूंढ़ना बड़ा मुश्किल काम था .
ReplyDeleteकितनी यादे गिर गयी जेब से आज ये पोस्ट पढ़कर...
ReplyDeleteबेहद सुंदर यादें. लगता है बचपन हर युग मे एक जैसा ही होता है. क्या बात है स्कूल की होली की.
ReplyDeleteयादों की बेहद सुंदर जुगाली.
रामराम.
कच्ची यादों का अच्छा वर्णन, होजी के पक्के रंगों के साथ।
ReplyDeleteयादें याद आती हैं ...बातें भूल जाती हैं
ReplyDeleteये यादें किसी .......
वो दिन तो अब न लौटेंगे. चलो यादों के सहारे कुछ लम्हे यों ही......बहुत ही मीठी ..
ReplyDeleteजाने कहां गये वो दिन?
ReplyDeleteसुंदर यादें हैं ... पर हर कोई इतने रोचक ढंग से प्रस्तुत कर सकता है क्या ?
ReplyDeleteवाह! रोचक! किला फ़तह!
ReplyDeleteहोली के रंग बिरंगे रंग देखकर सच अभी से होली खेलने का मन होने लगा है। पोस्ट में बिखरे रंगो को देखकर अच्छा लगा। अच्छा तो ये वजह थी आपके अच्छे नम्बर पाने की।
ReplyDeleteham bhi holiya gaye.....holi haiiiii
ReplyDeleteबचपन और होली की यादों को बहुत मोहक अभिव्यक्ति दी है आपने.
ReplyDeleteBachpan bhi kya khoob hota hai....school main ek baar bhi teacher good bol deti thi to kai din tak pav zameen par nahin padte the...chooti chooti cheeje badhi badhi khushiyan de jati thi...i am missing those days after reading your article
ReplyDeleteaapaka article padh mujhe mera shool yaad aa gaya.likhate rahiye. ham padhae rahege. laheren dekhna to ab hobby ban gayi hai.....
ReplyDeleteKitnee baatein yaad dilaa deen aapne bachapan ki! Ham to bhool hi gae the!!
ReplyDeletebahut accha likha hai sach me padh kar school ki yaade taja ho gai
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