23 February, 2009
बैद्यनाथ धाम की कहानी
मेरा बचपन देवघर में बीता...देवघर भोले बाबा की नगरी कहलाती है, द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ धाम है...हम कई किम्वदंतियां सुन कर बड़े हुए। देवघर मन्दिर के बारे में कथा है की एक रात में स्वयं विश्वकर्मा ने उसे बनाया है।
आज मैं देवघर शिवलिंग की कहानी आपको सुनाती हूँ जो शिव पुराण में सुनने को मिलती है...रावण भगवान् शिव का बहुत बड़ा भक्त था...उसे बहुत कठिन तपस्या की और एक एक करके अपने मस्तक भगवन शिव को अर्पित कर दिए...उसकी इस तपस्या से शंकर भगवान् बहुत प्रसन्न हुए और उसके दसो मस्तक वापस ठीक कर दिए...यहाँ वैद्य की तरह शंकर भगवन ने उसके सर जोड़े इसलिए उन्हें भगवन वैद्यनाथ कहा गया। रावण ने वरदान माँगा की आप मेरे यहाँ लंका में चलकर रहिये। भगवन शंकर ने कहा तथास्तु, लेकिन तुम यहाँ से मुझे लेकर चलोगे तो जहाँ जमीन पर रखोगे मैं वहीँ स्थापित हो जाऊँगा तुम मुझे फ़िर वहां से कहीं और नहीं ले जा सकोगे। रावण खुशी खुशी शिवलिंग लेकर लंका की ओर चला।
यह समाचार जानते ही देवताओं में खलबली mach गई, अगर भगवन शिव लंका में स्थापित हो जायेंगे तो लंका अभेद्य हो जायेगी और रावण को कोई भी नहीं हरा सकेगा। इन्द्र को अपना आसन डोलता नज़र आया (हमेशा की तरह) तो सब विष्णु भगवान के पास पहुंचे की हे प्रभो अब आप ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। भोले नाथ तो भोले हैं उन्होंने रावण को वरदान दे दिया है और वो शिवलिंग लेकर लंका की तरफ़ प्रस्थान कर चुका है।
विष्णु भगवान ने देवताओं को चिंतामुक्त होने को कहा और वरुण देव को आदेश दिया की वो रावण के पेट में प्रवेश कर जाएँ । और विष्णु भगवान् एक ब्राह्मण का वेश धारण करके धरती पर चले आए। जैसे ही वरुण देव रावण के पेट में घुसे रावण को बड़ी तीव्र लघुशंका लगी, लघु शंका करने के पहले रावण को शिवलिंग किसी के हाथ में देना था, तभी वहां से ब्राह्मण वेश में विष्णु भगवान गुजरे रावण ने उन्हें थोडी देर शिवलिंग पकड़ने का आग्रह किया और वह ख़ुद लघुशंका करने चला गया...पर उसके पेट में तो वरुण देव घुसे हुए थे...बहुत देर होने से ब्राह्मण ने शिव लिंग को नीचे रख दिया। जैसे ही शिवलिंग नीचे स्थापित हुआ वरुण देव रावण के पेट से निकल आए।
रावण जब ब्राह्मण को देखने आया तो देखा कि शिवलिंग जमीन पर रखा हुआ है और ब्राह्मण जा चुका है...उसने शिवलिंग उठाने की कोशिश की लेकिन वरदान देने वक्त शिव जी ने कहा था की शिवलिंग जहाँ रख दोगे वहीँ स्थापित हो जाऊँगा। आख़िर में गुस्सा होकर रावण ने शिवलिंग पर मुष्टि प्रहार किया जिससे वह जमीन में धंस गया। फ़िर बाद में रावण ने क्षमा मांगी...और कहते हैं वह रोज़ लंका से शिव पूजा के लिए आता था।
जिस जगह ब्राह्मण ने शिवलिंग रखा वहीँ आज शंकर भगवान का मन्दिर है जिसे बैद्यनाथ धाम कहते हैं। मन्दिर के बारे में कई किम्वदंतियां प्रचलित हैं....जैसे की मन्दिर के स्वर्ण कलश को चोरी करने की कोशिश करने वाला अँधा हो जाता है। और मन्दिर के ऊपर में एक मणि लगी है....और मन्दिर के खजाने के बारे में भी कई कहानिया हैं। मन्दिर से थोडी दूर पर शिवगंगा है जिसमें सात अक्षय कुण्ड हैं...कहते हैं कि उनकी गहराई की थाह नहीं है और वो पाताल तक जाते हैं।
बाबा मन्दिर में संध्या पूजा के लिए जो मौर(मुकुट) आता है वो फूलों का होता है और उसे देवघर सेंट्रल जेल के कैदी ही रोज बनाते हैं। आज शिवरात्रि के दिन बहुत भीड़ होती है मन्दिर में और देवघर में बच्चे से लेकर बूढे तक व्रत रखते हैं. शाम में शिवजी की बारात निकलती है जिसमें भूत प्रेतों होते हैं बाराती के रूप में...अलग अलग वेश भूषा में सजे बारातियों और नंदी का नाच देखते ही बनता है.
मुझे आज के दिन मिलने वाली आलू की जलेबी बड़ी याद आ रही है :) सिंघाडा का हलवा भी कई जगह मिलता है...आप समझ सकते हैं की बच्चे ये मिठाइयां खाने के लिए ही व्रत रखते हैं. कुंवारी लड़कियां अच्छा पति पाने के लिए व्रत रखती हैं...ताकि उन्हें भी शिव जी जैसा पति मिले जैसे कि माँ पार्वती को मिला था.
आज के लिए इतना ही।
ॐ नमः शिवाय
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शादी से पहले हम भी रखते थे। कि.... पर शादी के बाद रखना छोड़ दिया। पर हमारी बेटी की मम्मी तब भी रखती थी और आज भी रखती। लगता है अब पूछना पडेगा कि अब भी व्रत किस लिए आलू की जलेबी के लिए या फिर ......। वैसे ये आलू की जलेबी बनती कैसे है पीछे से आवाज आ रही है।
ReplyDeletei have heard that people go their by foot. now this temple is in jhaarkhand . is it true?
ReplyDeletei have also heard peole do not feel hungry their.
plz tell the reallity...
@markandey.
ReplyDeleteआपके सवाल समझ नहीं आए, फ़िर भी अपने हिसाब से जवाब देने की कोशिश कर रही हूँ. श्रावण के महीने में देवघर से १०० किलोमीटर दूर सुल्तानगंज में गंगाजल भर कर वहां से पैदल कांवर लेकर चलते हैं और देवघर मन्दिर में पूजा करते हैं.
दूसरा सवाल तो बिल्कुल समझ नहीं आया...ऐसी तो कोई जगह नहीं हो सकती जहाँ लोगो को भूख ही नहीं लगती हो. हाँ देवघर के बारे में ये कहते हैं की शिवरात्रि या सोमवारी करते हुए भूख नहीं लगती...ये श्रद्धा और विश्वास की बात है, बहुतों को लगती भी होगी.
आलू की जलेबी कैसे बनती है ये तो नहीं पता :( ये सिर्फ़ देवघर में खाने को मिली है वो भी सिर्फ़ शिवरात्रि के दिन या फ़िर सावन महीने के सोमवार के दिन. आप सपरिवार देवघर जा सकते हैं इसे खाने के लिए...इसी बहाने आप भी व्रत रख लीजियेगा :) जलेबी बहुत ही खस्ता होती है और मीठे की मात्र भी कम पड़ने के कारण बुहत ज्यादा मात्र में खायी भी जा सकती है. अब इससे ज्यादा नहीं कह सकूंगी...मुझे भी खाने का मन करने लगा है.
ReplyDeleteYun bhi Kisi tarah ka upwas ho jab falaharee keep mahatta ho to wahan Aaloo ki Jalebi miltee her Hai. Badhiya Aaloo Jalebi to Baba Mandir ke paschim darwaje ke najdik Chamaari Sah kee dukan mein miltee Hai.
Deleteमहाशिवरात्रि का व्रत हो। ऑफिस में बैठे आलू की जलेबी की बात ...
ReplyDeleteअरे वाह!! देवघर तो हम अपनी हर भारत यात्रा में जाते हैं. हमारे गुरु राधा स्वामी श्री श्री अनुकुल चन्द्र जी ठाकुर के आश्रम में.
ReplyDeleteअच्छा लगी थी जलेबी. :)
आज सवेरे ही, श्रीयुत पी.एन.सब्रमनियनजी के ब्लगा 'मल्हार' पर 'विश्व का विशालतम शिव' शीर्षक वाली पोस्ट पढी। उसमें भी यही कथा है। अन्तर है तो केवल इतना कि अपकी कथा में यह षिव लिंग देवघर में गिरा और सुब्रमनियमनजी की कथा में,'मुरुदेश्वर' में। मुरुदेश्वर पहुंचने का रास्ता सब्रमनियनजी ने इस प्रकार बताया है - मुरुदेश्वर कर्णाटक के भटकल तहसील में मुंबई - थिरुवनन्थपुरम रेल मार्ग पर पड़ता है और गाडियां यहाँ रूकती भी हैं. बीकानेर और जोधपुर से भी रेलगाडियां मिलती हैं. दिल्ली की ओर से आने के लिए कोंकण मार्ग पर जानेवाली गाड़ियों को चुना जा सकता है. गोवा से मुर्देश्वर की दूरी मात्र १६० किलोमीटर है. यहाँ से उडुपी भी नीचे १०० किलोमीटर की दूरी पर है. मुरुदेश्वर स्टेशन से मन्दिर या बीच तक के लिए ऑटोवाले २० रुपये लेते हैं. हुबली में उतरकर भी यहाँ आया जा सकता है.
ReplyDeleteसब्रमनियनजी की यह पोस्ट निम्न पते पर पढी जा सकती है-
http://mallar.wordpress.com/2009/02/23/
शिव जितनी जल्दी प्रसन्न होते हैं उतनी ही जल्दी कुपित भी। आपकी पोस्ट पढने से पहले तक हम इस शिवलिंग को 'मुरुदेश्वर' में मान रहे थे। अब आप कहती है कि हम 'देवधर' में मानें। कहीं शिव कुपित न हो जाएं इस भय से अब कुछ भी कह नहीं पा रहे हैं।
आप और सब्रमनियनजी मिल बैठक र तय कर लें कि आप दोनों के पाठक क्या मानें।
i have satisfied with this information. thanks a lot
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामना
ReplyDeleteगजब हो गया. क्या संयोग है. वैद्यनाथ जी के बारे में बता कर और मन्दिर दिखा कर आज इस पर्व पर हम धन्य हो गए. रही कहानी कि बात. बैरागी जी ने ध्यान नहीं दिया कि वहां रावण के द्वारा ले गए शिवलिंग को गोकर्ण में स्थापित किया गया था. मुरुदेश्वर में तो केवल ओढ़नी गिरी थी. आस्था इस beyond reason. शुभकामनायें.
ReplyDeleteआज महाशिवरात्री को बहुत ही पावन कथा सुनाई आपने.
ReplyDeleteदेवघर अब जब भी जाना होगा आलू की जलेबी जरुर खा कर आयेंगे. वैसे हमारे नजदीकी रिश्तेदार भागलपुर मे रहते हैं पर उन्होने कभी नही खिलाई, अबकी बार नही चूकेंगे.:)
रामराम.
अरे वाह.. मैं पूजा-पाठ से बह्त दूर रहता हूं मगर प्रसाद में मिठाई खूब खाता हूं.. तुम्हारे सिंघारे कि मिठाई से मुझे बचपन की एक बात याद आ गयी, जब समोसे को भी सिंघारा बोलते थे और पानी फल सिंघारे को भी सिंघारा.. :)
ReplyDeleteऔर हां, बाबा-धाम का पेरा के बारे में लिखना कैसे भूल गयी?
शुक्रिया पूजा....अपनी माँ के संग दो बार हो आया हूँ पैदल काँवर ले कर...
ReplyDeleteउन दोनों यात्राओं की यादें-दस साल पहले की-एकदम से जीवंत हो उट्ठी....
दिनांक 24.02.2009 मंगलवार की जो अमावस्या है वो भौमवती अमावस्या है तथा चन्द्रमा भी शतभिषा नक्षत्र पर है। अतः इस दिन सम्पतिशाली बनने का देवी उपाय करनें का दिन है विस्तार से मेरे ब्लोग पर पढें
ReplyDeleteबहुत पहले बचपन में गये थे, बहुत अच्छा लगा भगवान का यह दर्शन
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा......महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं..
ReplyDeleteदेवघर का तो हमारा एक दोस्त भी है ..... उसने भी बहुत कुछ बता रखा था ....बहुत खूब
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बेशक कुछ कहानियां हमने पहले से भी हुई होती हैं.....फिर भी ना जाने क्यूँ किसी किसी के मुहं से सुन कर इक नया सा मजा आता है.....सच....!!
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि के इस पावन उत्सव पर श्री वैधनाथ धाम की पावन कथा का सौभाग्य आपके माध्यम से प्राप्त हुआ....आभार......
ReplyDeletehar har mahadev :-) aap to allrounder ho gayi hai :-)
ReplyDeleteमैं कहूंगा कि ऐसी पोस्टें ब्लॉगिंग को वैल्यू प्रदान करती हैं!
ReplyDeleteऐसी जगह हमेशा आकर्षित करती है .
ReplyDeleteऐसी जगह हमेशा आकर्षित करती है .
ReplyDeleteकितना सुंदर लिखती हैं आप..बहुत सुंदर भाव..बहुत अच्छा लगता है पढने पर।
ReplyDeleteशुभकामनाएं........ढेरो बधाई कुबूल करें...
bahut badhiya likha he..ab to vanhaa jaane ki ichcha balvati ho gai..
ReplyDeletenice post...
ReplyDeleteअच्छा हुआ तुमने बताया....मुझे ये सब पाता ही नहीं था! आलू की जलेबी खाने का मन कर रहा है!
ReplyDeleteI just back from baba dham on 21-07-2009, due to havy rush no darshan shivlinga, Realy nice information on babadham in simple language.
ReplyDeletethanks pooja
with regards
Dharmendra Singh
पूजा जी आपको यह बताना आवश्यक है की बैद्यनाथ धाम देवघर १२ जोतिर्लिंग में नहीं गिना जाता, प्रल्यान्म (महारास्ट्र) में स्थित है...
ReplyDeleteराज जी...बैद्यनाथ धाम हमेशा से १२ ज्योतिर्लिंग में गिना जाता है. मैंने जितने लोगों को जाना है अधिकतर लोग देवघर के बाबा मंदिर को ही बैजनाथ या वैद्यनाथ धाम मानते हैं...हाँ इन्टरनेट पर देखा तो पाया कि परली के वज्जिनाथ मंदिर को भी ज्योतिर्लिंग मानते हैं.
ReplyDeleteहालाँकि आप गूगल करके देख सकते हैं अधिकतर देवघर का ही पता मिलता है...मैं चूँकि बिहार की हूँ और उसी शहर में बड़ी हुयी हूँ तो यही जानते हुए बड़ी हुयी कि देवघर में बैद्यनाथ धाम है.
आपकी इच्छा है आप मानिये कि परली का वज्जिनाथ ज्योतिर्लिंग है...मैं देवघर मानती हूँ. धार्मिक आस्थाओं में सही गलत तो कहा नहीं जा सकता है.
DEOGHAR KA MANDIR KITNA PURANA HAI ?
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा। जय जय! बम बैद्यनाथ।
ReplyDeleteआप और भी लिखें बाबाके बारे में!
हरि: हर:!
Bhole baba ki jai ho...................
ReplyDeleteमें वैद्यनाथ धाम से परसों ही लौटा हूँ।
ReplyDeleteआजकल मेरी भूख ख़त्म हो गई है।
ये चमत्कार है या संयोग??
Hii there
ReplyDeleteNice blog
Guys you can visit here to know more
Vaidyanath Jyotirlinga
परंतु वैजनाथ ज्योतिर्लिंग तो परली में स्थित है और शिव पुराण में उसकी पुष्टि साफ-साफ मिलती है फिर यह कैसे हो सकता है शिव पुराण में बैद्यनाथ नाम नहीं है वैद्यनाथ नाम है वह जो परली में स्थित है
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