आपने कभी ८०km प्रतिघंटा की रफ़्तार से चाँद को भागते देखा है?
मैंने देखा है...पर उसके लिए आपको पूरी कहानी सुननी पड़ेगी...वैसे ज्यादा लम्बी नहीं है :) तो किस्सा यूँ शुरू होता है...
अब रात भर अगर जाग के गप्पें करेंगे तो भूख तो लगेगी न? ११ बजे पिज्जा खा चुके थे हम...और वो पच चुका था, घर में चिप्स, बिस्कुट, मैगी, मिक्सचर जैसी जितनी चीज़ें थी, सब खा चुके थे...और भूख थी कि शांत होने का नाम नहीं लेती...तो ऐसे में बेचारा मजबूर क्या करेगा...बंगलोर में कुछ भी रात भर खुला नहीं रहता। कुछ देर तो हम बैठ कर दिल्ली के गुणगान करते रहे...convergys के पराठों के बारे में सोच कर पेट तो भरेगा नहीं न। तो हम दुखी आत्मा लीला पैलेस में फ़ोन किए(घर के सबसे पास में वही था)...कि भइया खाने को कुछ मिलेगा...उनका रेस्तौरांत खुला था...हम खुसी खुशी तैयार हो गए। हाँ जी रात के तीन बज रहे हैं तो क्या...फाइव स्टार में जाना है तैयार तो होएँगे ही।
अब निकलने की बारी आई तो जनाब को वक्त सूझा...रात के तीन बजे तेरे लिए जाना सेफ होगा कि नहीं, मैं जा के ले आता हूँ। और मैं रात के तीन बजे घर में अकेली तो खूब सेफ रहूंगी न...मैं नहीं रुक रही घर में अकेले। खूब झगडे के बाद डिसाइड हुआ कि भूखे मरो...नहीं ले के जायेंगे लीला।
हमारे लिए भूखे रहना प्रॉब्लम नहीं था...प्रॉब्लम थी कि हम तैयार हो गए थे, और एक लड़की जब तैयार हो जाती है और उसे घूमने जाने नहीं मिलता तो उसे बहुत गुस्सा आता है...तो जाहिर है हमें भी आया...तो हमने फरमान सुनाया कि नहीं लीला गए तो क्या हुआ...बाईक से एक राउंड लगाऊँगी चलो...
अब मैं आप लोगो को बताना भूल गई थी कि मैंने kinetic flyte खरीदी, एप्पल ग्रीन कलर में, और इतने दिन में कभी खाली सड़क पर चलने का मौका नहीं मिला था...और न ही उसके १२५ सीसी इंजन को टेस्ट करने का। तो हम घर से निकले...
मैं अपनी नई flyte पर और कुणाल पल्सर १५० सीसी पर, वैसे तो बात बस २५ सीसी की थी :) मैंने बहुत अरसे बाद इतनी खाली सड़कें देखी थी...और फ्लाईट का पिक उप इतना कमाल का था कि बयां नहीं कर सकती...स्टार्ट होते ही यह जा वह जा वाली बात हो गई...कुणाल जाने कितनी दूर रह गया था।
८० की स्पीड पर लगभग १० साल बाद कुछ चलाया था...लगा हवा से बातें कर रही हूँ। बंगलोर का हल्का ठंढ वाला मौसम...सड़क के दोनों ओर बड़े घने पेड़ और ऊपर चाँद...भागता हुआ, आश्चर्य कि ८५ पर भी चाँद मेरे से आगे ही भाग रहा था, टहनियों के ऊपर से तेज़ी में जैसे हम दोनों के अलावा कहीं कुछ है ही नहीं बस स्पीडोमीटर पर हौले हौले बढती सुई। शायद गाड़ी चलाते हुए चाँद को बहुत कम लोगो ने देखा हो...मैं लड़की हूँ शायद इसलिए....या शायद कवि हूँ इसलिए...पर यकीं मानिए वो चाँद मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत चाँद था। और मैंने उसे हरा नहीं सकी...इतना खूबसूरत नारंगी पीलापन लिए हुए उसका रंग...आधे से थोड़ा बड़ा...मुझे तो कोई खाने की मिठाई लग रही थी(जाहिर सी बात है भूख में घर से निकली थी न)।
अच्छा इसलिए भी लगा कि बहुत दिन बाद एक लम्हे के लिए जिंदगी को जिया था...यूँ लगा हम बेहोश पड़े थे और अभी अभी होश में आए हैं. बहुत दिनों बाद लगा कि बिना डरे जीना क्या होता है...thrill नाम की भी कोई चीज़ होती है मैं बिल्कुल भूल गई थी. फ़िर से लगा कि रगों में खून बह नहीं रहा, दौड़ रहा है.
कुछ देर बाद गाड़ी धीमी की...तब तक जनाब भी पहुँच गए थे :) बाप रे क्या मस्त पिक अप है इसका यार और कित्ते पे गाड़ी चला रही थी तू? मैंने कहा ८५ पर...उसका कहना था, गाड़ी की औकात से ज्यादा स्पीड में चला रही थी मैं. खैर मैंने उसे बहुत चिढाया कि एक लड़की से हार गया...वो भी स्कूटी से छि छि :D
मैंने उससे पूछा कि तूने चाँद देखा...कितना खूबसूरत लगता है भागते हुए...और उसने कहाँ कि नहीं, वो गाड़ी चलाते हुए सड़क देखता है. :) तो मैंने सोचा आप लोगो को भी बता दूँ...आपने भी शायद नहीं देखा हो चाँद कभी.
पर यकीं मानिए...८० की स्पीड पर भागता हुआ चाँद जितना खूबसूरत लगता है...खिड़की में अलसाया हुआ चाँद कभी लग ही नहीं सकता, या झील में नहाता हुआ भी नहीं।
आप में से किसी को try करना है तो कीजिये ...फ़िर हम बातें करेंगे :)
PS: गाड़ी की फोटो जल्दी ही लगाउंगी :)
mast likha hai aapne ,wah maze aagaye ,,... 3 baje parathe? samajha nahi .. ha ha ha .. dhero badhai ...
ReplyDeletearsh
आपकी कहानी पढ़कर मन तो किया की चलो आज रात को ही देखूंगा ...फिर याद आया की पहले बाइक चलाना तो सीख ले बेटा .....अब पहले बाइक चलाना सीखना पड़ेगा तब जाकर ये काम कर पाउँगा ...खैर करूँगा कभी न कभी
ReplyDeletesabse pahle aapko badhai ho aapki kinetic flyte hai liye aur uske baad doosri badhai, channd ka peecha karne ke liye :)
ReplyDeleteNicholas Sparks ki 'A Walk To Remember' ki nayika bhi raat main ek baar aise hi ghoomne jati hai aur nayak use us jagah par le jata hai jahan par uski city khatm hoti hai aur neighbouring city shuru hoti hai.
wo Dono us border line ke dono side apne pair rakhkar khade hote hain aur wo dono us ek moment mein, ek saath do jagahon per hota hain. aap bhi try kar sakti hain. ab to gadi wali ho gayin hain :)
kaafi accha likha hai as usual :)
Padhna bahut achha laga.
dhanyawaad
पूजा जी आपने हर बार की तरह इस बार भी अच्छा लिखा है...वैसे एक सलाह है, इस बार तो आप बच गयीं, लेकिन अगली बार गाड़ी चाँद को देखते हुए नही बल्कि सड़क को देखते हुए चलाना, नही तो दुर्घटना हो सकती है.
ReplyDeleteअनूठा वर्णन र्है....चांद की इस रफ़्तार पर शायद ही पहले किसी ने लिखा हो...
ReplyDeleteऔर मैं आपको कम रफ़्तार पे चलाने की सलाह नहीं दूंगा,क्योंकि मैं खुद ही स्पीडस्टर हूं.बुलेट रखा हूं और शर्तिया इसका ट्राय मारूंगा।
बुलेट से चांद----hmmmm sounds interesting
एक कवि ही ८० KM की स्पीड पर चांद देख सकता है. और वो भी टू व्हीलर पर.
ReplyDeleteसाधारण आदमी को तो अपनी जान के लाले पड जाते हैं. गनीमत है कुणाल साहब आपके पीछे नही बैठे थे.:)
रामराम.
डायरी या संस्मरण शैली में लिखी गई रचना अच्छी लगी ख़ास तौर पर उसका अंत. खूब स्सोरत रात , खूबसूरत चाँद, खूबसूरत बाइक और आपकी खूबसूरत सोच और देखने का नजरिया .-
ReplyDelete-विजय
अरे वाह.. तुम सही सलामत आ गयी, ८० पर चाँद को देखने के बाद भी? कुनाल ने सही कहा.. गाडी चलते समय सड़क देखना चाहिए, चाँद नहीं..
ReplyDeleteमैं जब ८०+ पर गाड़ी चलता हूँ तो ख़ूबसूरत लड़कियों को भी नहीं देखता हूँ.. अरे उस समय वे सभी मुझे जो देखती रहती हैं तो भाव खाना ही पड़ता है.. :D
हम तो नहीं ट्राई करने वाले हैं इसे.. वैसे एक बात बता दूँ, फ्लाईट ८५-९० से ज्यादा गति नहीं पकड़ता है.. मैंने ट्राई किया है चेन्नई-बैंगलोर हाइवे पर.. :) और पल्सर १५० का अधिकतम गति १०५ है, भले ही स्पीडोमीटर ११५ का दिखा दे..
@ गौतम भाई - अरे भाई, चेन्नई आ जाओ.. यहाँ एनफील्ड वालों का टूर है.. चेन्नई से ऊंटी के लिए.. दुनिया के विभिन्न हिस्सों से लोग आये हैं भाग लेने.. मेरे पास एनफील्ड नहीं है, नहीं तो मैं जरूर जाता..
kinetic flyte और चाँद देखी की टॉफी ड्यू रही. बधाईयाँ......
ReplyDeleteयूँ भी कोई सोचे तो क्या बुरा है, कुछ नया है!
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गुलाबी कोंपलें
अक्सर देखा है एक दोस्त की बाईक के पीछे बैठ कर १०५ से भागता हुआ भी देखा है :-) सुबह २-४ के बीच में कभी ढाबे जाते थे अब सीसीडी !
ReplyDeleteवाकई बाईक चलाने का अलग ही नशा है। बाईक चलाना छूटा जरूर है मगर चांद देखने के लिये ट्राई ज़रूर करुंगा।बहुत अच्छा लिखा।बधाई।
ReplyDeleteभागता चाँद .......सुंदर अति सुंदर.
ReplyDeleteट्राइ करूँगा... फिर बात करेंगे...
ReplyDeletebahut mast likha.. आश्चर्य कि ८५ पर भी चाँद मेरे से आगे ही भाग रहा था he he, bachpan mein gaon pe aasman ki or dekhte hue chandni raat mein bhagte the sir upar kiye hue chanda mama ko dekhte hue.. bada maza aata tha
ReplyDeletewah puja, tumne to dur aasman mai bethe chand ko wakai bahut karib la diya...aisa laga jaisa gaadi par piche mai hi baithi thi..hahaha...achanak tumare blog tak pahuch gai..but nice experionce.
ReplyDeleteहम तो दोस्तों को कहते कहते हार गए,कि दोस्तों एक बार रात को दिल्ली घूमनी है पर दोस्त पागल कहते कहते नही हारतें। वैसे कभी कभी सोचता हूँ कि ख्वाब कभी अधूरे नही रहते कही ना कही पूरे हो ही जाते है। आज की पोस्ट पढकर सच्ची मन ऐसा कर रहा है कि अभी बाईक निकाल कर ट्राइ करूँ। पर ठड़ है।
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