कल कालोनी में बाईक चला रही थी...कुछ खास नहीं शाम की खरीददारी वही, सब्जी दूध वगैरह...लौटते हुए अचानक से ध्यान गया की हल्का कोहरा उतर रहा है पेडों पर से। बिल्कुल से दिल्ली की याद आ गई...ऐसे ही तो हलके हलके कोहरा उतरता था...gurgaon की सड़कों पर, कुछ यही फरवरी का वक्त था...और हमें कोई हाल में पसंद आने लगा था। एक सेकंड के लिए तो भूल ही गई की गाड़ी पर हूँ और किसी को ठोक भी सकती हूँ...वैसे १५-२० की स्पीड पर ठोक भी दूंगी तो ज्यादा कुछ नहीं बिगडेगा :) गाड़ी वापस की और सडकों पर यूँ ही निरुद्देश्य दौड़ाने लगी।
मुझे कोहरा बड़ा अच्छा लगता है, वो भी साल के इस वक्त जब हलकी ठंढ हो और हवाएं चल रही हों, सड़कों पर सूखे पत्तों का ढेर लगा हो...और स्ट्रीट लैंप अपनी पीली रौशनी से भिगो रहे हों...उसपर अभी हाल में पूर्णिमा थी तो चाँद शाम को बड़ा खूबसूरत लग रहा था...वही आधे से थोड़ा बड़ा...थोड़ा नारंगी पीला रंग का, पेड़ों के पीछे लुका छिपी खेलता हुआ। हमने सोचा घर जाने के पहले एक दो चक्कर लगा लेते हैं, थोडी देर पार्क में बैठेंगे फ़िर घर जायेंगे...सोच में पहला ही राउंड मारा था की लगा की कोई पीछे हैं बाईक पर, हमने अपनी स्पीड और कम कर ली...की भैय्या जाओ आगे, हमें तो कोई शौक नहीं है तेज़ चलाने का अभी...फ़िर अचानक से ध्यान आया की हम जूस खरीदना भूल गए हैं...और कई बार भूख लगने पर वही आखिरी सहारा होता है...
दुकान की और बढे तो फ़िर से लगा वही गाड़ी पीछे है...हम रुके...जूस ख़रीदा और वापस...सोचा पार्क में बैठेंगे...पर वही बाईक फ़िर से पीछे...मरियल सा कोई लड़का था, एक झापड़ मार देती तो पानी नहीं मांगता...पर लगा खामखा के पंगा लेने का क्या फायदा...दिल में जितनी गालियाँ आती थी सब दे डाली...और खुन्नस में घर आई। उस गधे ने मेरी शाम ख़राब कर दी थी ...मूड उखड गया। दिल्ली में इसी टेंशन के करण कभी गाड़ी नहीं ली थी, वहां पर ऐसा बहुत होता है कि लड़कियों के आगे पीछे लड़के रेस लगा रहे हैं। बंगलोर इस मामले में सेफ है यही सोच कर हाल में ही खरीदी है...पर ऐसे लड़कों का क्या करें...जाने कौन सा भूसा भरा रहता है इनके दिमाग में।
क्या मिल जाता है किसी को परेशान कर के...उसपर मैं कोई बहुत तेज़ गाड़ी भी नहीं चलती हूँ कि रेस लगाने का मन करे...मुहल्ले में तो कभी ४० से ऊपर जाती ही नहीं, नॉर्मली ३० के आसपास ही रहती है। ऐसे कुछ बेवकूफों के कारन सारे लड़कों पर गुस्सा आने लगता है...इसी चक्कर में कल कुणाल से लड़ गई :( उसकी कोई गलती भी नहीं थी.
अब सोच रही हूँ कि फ़िर से दिखेगा तो क्या करुँगी?
थपड़िया देना और क्या :)
ReplyDeleteलड़किया बचपन से कुछ चीज़ो को इग्नोर करना सीख जाती है.. ये बहुत ही हिम्मत का काम है. मैं होता तो कभी ना कर पाता... ऐसे लड़को को सबक तो सीखना ही चाहिए.. पर दिमाग़ से..
ReplyDeletehaan kush ji ne sahi kaha Dimag se na ki aise vichar ki mariyal sa hai 1 thappad maro to pani nahi maage :-) is tarike se :-)
ReplyDeleteसही कह रहे हो कुश...इग्नोर न करें तो क्या करें...एक बार एक लड़के को ऐसे ही बदतमीजी पर थप्पड़ मार दिया था...वो दुबारा तो नहीं दिखा पर घर पर ही इतनी डांट पड़ी थी की तब से इग्नोर किए आ रहे हैं.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteगुलाबी कोंपलें
क्या लिखूं? मुझे तो इग्नोर की स्पेलींग भी नही आती. हम जरा दुसरी पार्टी के लोग हैं.:)
ReplyDeleteखैर इस तरह के शोहदों के पीछे अपनी शाम नही खराब करनी चाहिये. कुछ ऐसा करती कि उसकी शाम खराब हो जाती.
रामराम.
हमारे यह समझ में नहीं आता कि क्या ऐसा कर के किसी को पाया जा सकता है. बेवकूफ लोग. हमें तो तरस आ रहा है, पिटने जो वाला है.
ReplyDeleteदेखो यार, कहने सुनने के लिये बहुत सी बातें कही जा सकती है.. मगर व्यवहारिकता यही है कि उसे नजरअंदाज करके निकल लो.. जमाने के रंग भी यही कहते हैं, शायद इसलिये घर पर तुम्हें डांट सुननी पड़ी थी.. तुम सोचो, अगर उस दिन तुम उस लड़के को थप्पड़ मारी थी और वो लड़का इसे अपने ईगो पर लेकर तुम्हें चाकू या तेजाब मार देता तो? इस जमाने के रंग ने कई मामलों में लड़का-लड़की का भेद खत्म कर दिया है.. कई बार रास्ते में हुई कुछ नजरअंदाज ना कर पाने वाली घटनाओं को हम भी नजरअंदाज कर जाते हैं..
ReplyDeleteहां मूड खराब करने की कोई जरूरत नहीं थी, बस अपनी मस्ती में घूम-घाम कर वापस आ जाती.. दक्षिण भारत की यह एक खूबी है कि जल्दी कोई क्राईम नहीं करता है(अगर वो प्रोफेशनल क्रिमिनल नहीं है तो), उत्तर भारत में होती तो कहता की ऐसे लड़कों से बच कर रहने में ही भलाई है..
वैसे इग्नोर करना ही अच्छा होता है....व्यर्थ के झमेले में पडने से अच्छा।
ReplyDeleteआपके इस किस्से से एक किस्सा याद आ गया ....हम लोग जब विद फॅमिली पुलिस कोलोनी में रहते थे तब वहां के महिला पुलिस थाने की पुलिस कर्मियों को इसी तरह के मजनुओं को पकड़ने का काम सोंपा जाता था ...उसमे से कुछ खूबसूरत सी महिला पुलिस सादा कपडों में रोड पर बाइक चलाती या यूँ ही खड़ी हो जाती ...जब कोई इस तरह का मजनू होता तो उसे पकड़ कर थाने ले आती फिर उसकी खंभे से बाँध कर जो मार पड़ती ...आए हाय हमें देख कर बड़ा मजा आता था ..... पहले तो इग्नोर करना ...नही तो धर देना दो चार ....मरियल है ...२-४ में ही टूट टाट जायेगा
ReplyDeletesahi liya ignore kiya,ba apna sundar mood bna ligiye,apni bike ka suhana kohre mein safar yaad karle:),ukhade mood mein pooja ji achhi nahi lagti,hame to allad si poojaji bhati hai:)happy valentines day
ReplyDeleteलीजिए मैं तो कल्पना कर रहा था कि झड़ते हुए पत्तों के बीच उतरते हुए कोहरे का मंज़र कैसा होता होगा। उस लड़के ने आपकी शाम तो खराब की ही, मन में पैदा होते खुशनुमा अहसास पर भी ब्रेक लगा दिया !
ReplyDeleteज्यादा अच्छा है अनदेखा करना।वैसे सड़को पर यूंही भटकना बहुत अच्छा लगता है।
ReplyDeleteज्यादा अच्छा है अनदेखा करना।वैसे सड़को पर यूंही भटकना बहुत अच्छा लगता है।
ReplyDeleteसावधान रहना बहुत जरुरी है। उम्मिद किजिये कि जो भी था वो फिर से पीछे ना पड़े। बंगलुरु अब पहले जैसा नहीं रहा।
ReplyDeleteमुझे कोहरा बड़ा अच्छा लगता है, वो भी साल के इस वक्त जब हलकी ठंढ हो और हवाएं चल रही हों, सड़कों पर सूखे पत्तों का ढेर लगा हो...और स्ट्रीट लैंप अपनी पीली रौशनी से भिगो रहे हों...उसपर अभी हाल में पूर्णिमा थी तो चाँद शाम को बड़ा खूबसूरत लग रहा था...
ReplyDeleteअब मैं इन हसीन वादियों में खो रहा था की.......... उस लड़के ने आपकी शाम के साथ-साथ मेरी भी ख़राब कर दी.
वैसे मैं ताऊ से सहमत हूँ.
●๋• लविज़ा ●๋•
अनदेखा करने का तो पता नहीं, but enjoy
ReplyDeleteare apni bike ke baare mein bhi kuchh bataiye!
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