आज भी पुरानी डायरी के पन्ने ही हैं, बस इतना अन्तर है ये मेरे नहीं है...न मुझे मालूम है की ये किसकी लिखी कविता है...
तोड़कर रिश्ते पुरानी व्यस्त राहों से
चल रही बचकर जमाने की निगाहों से
जिंदगी है आजकल भागी हुयी लड़की...
छोड़कर अपनी पुरानी रूढियों के घर
आस्था, अनुशाषणों के बांधकर बिस्तर
फ़िर बढ़ा नाखून लंबे खोल कर निज केश
आ गई जो ख़ुद बगावत की नदी के देश
जिंदगी है आजकल बागी हुयी लड़की...
आज है जिस ठांव उसका नाम है जंगल
रह गए जिसके तिमिर में दस्युओं के दल
क्रूर भूखे भेड़ियों के चीखते स्वर से
चोर डाकू और लुटेरों के बढे डर से
जिंदगी है रात भर जागी हुयी लड़की...
एक दिन पूछा अचानक जबकि मैंने नाम
बहुत धीरे से बताया जिंदगी ने "शाम"
कर लिए हैं दांत तब से मौत ने पैने
और तब से नाम उस का रख दिया मैंने
वक्त की बन्दूक से दागी हुयी लड़की...
ये कविता बहुत बचपन में पढ़ी थी...और जाने इसमें कैसा आकर्षण है...कई बार पढ़ती थी...कुछ अपनी सी लगती थी ये लड़की, ये जिंदगी...ये बागी शब्द, शायद उस उम्र का असर हो। पर अब भी ये कविता अच्छी लगती है...सोचा आपसे भी बाँट लूँ, शायद आपमें से किन्ही को इसके लेखक का नाम पता हो.
hmmm lekhak ka naam to pata nahi
ReplyDelete:-( par kavita achi hai
लेखक का पता नही क्या नाम है, पर कविता बहुत ही अच्छी है....!
ReplyDeleteजिस भी इंसान ने लिखी है पर लिखी बडी जबरद्स्त हैं। हर लफ़्ज शानदार।
ReplyDeleteतोड़कर रिश्ते पुरानी व्यस्त राहों से
चल रही बचकर जमाने की निगाहों से
जिंदगी है आजकल भागी हुई लड़की
अद्भुत।
किस कलम से लिखती हो इतनी शानदार कविताएं...छुअन में रेशम सी..लेकिन तासीर में कभी तलवार की धार की तरह तो कभी जिंदगी के दुश्वर अहसास..हिंदी साहित्य आपसे उम्मीद बांध ले तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
ReplyDeleteएक खूबसूरत रचना बाँटने के लिये धन्यवाद.
ReplyDeletebahut hi achchhi rachana aur prastutikaraN. badhaai.
ReplyDeletemukesh kumar tiwari
ultimate ---superb ....jisne bhi likhi hai ...kamaal kar diya hai
ReplyDeletejisne bhi likhi hai ek bahut hi achhi kavita likhi hai,kuch apni si kuch tikhe nakhunsi.
ReplyDeleteजितनी तारीफ़ की जाए कम है। अच्छी और सच्ची कविता पढने का मौका देने के लिए आभार्।
ReplyDeleteकिस कलम से लिखती हो इतनी शानदार कविताए.
ReplyDeleteएक दिन पूछा अचानक जबकि मैंने नाम
ReplyDeleteबहुत धीरे से बताया जिंदगी ने "शाम"
कर लिए हैं दांत तब से मौत ने पैने
और तब से नाम उस का रख दिया मैंने
वक्त की बन्दूक से दागी हुयी लड़की.
कविता बहुत ही अच्छी.
अच्छी कविता है
ReplyDelete---
गुलाबी कोंपलें
छोड़कर अपनी पुरानी रूढियों के घर
ReplyDeleteआस्था, अनुशाषणों के बांधकर बिस्तर
फ़िर बढ़ा नाखून लंबे खोल कर निज केश
आ गई जो ख़ुद बगावत की नदी के देश
जिंदगी है आजकल बागी हुयी लड़की...
कुछ-कुछ जानी पहचानी सी लग रही है ये लड़की.
आकर्षक कविता !
ReplyDeletebahut achhi kavita hai...aisi aur kavitaon se milwaiye yahi guzarish hai
ReplyDeleteजिन की भी है, बहुत प्यारी रचना है.. बन्द्टने के लिए शुक्रिया...
ReplyDeleteपूजा, यह गीत डॉ कुंअर बेचैन का है. उनका पता है - II एफ- 51, नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ. प्र.), 201001 , उनका मोबाइल नंबर है- 09818379422
ReplyDeleteअजय मलिक