उदास दुपहरें
ठिठके खड़े हुए से पेड़
हौले हौले गिरते पत्ते
जाने क्यों यादों जैसे लगते हैं
जैसे कोई ठौर न हो
यूँ चलती हुयी हवाएं
बिना राग के चहचहाते पंछी
सड़कों पर चुप चाप
मेरे साथ चलती परछाई
कहीं दूर से आता हुआ
गाड़ियों का शोर
कुछ ठहरा नहीं है...
रीत गया है
इस बेजान दोपहर में
धड़कनें गा रही हैं विदाई
धूप चिता की गर्मी सी लग रही है
झुलसाती, तड़पाती...और बेबस
फाग के मौसम में
इस शहर में पलाश नहीं दिखे
शायद मैं बहुत दूर आ गयी हूँ
यहाँ तक वसंत नहीं आता...
और मैंने तुमसे फूल मांग लिए थे
होली का रंग बनाने के लिए
लगता है तुम बहुत दूर चले गए हो
सुनो, फूल ना भी मिले तो
तुम लौट आना...
तुमसे ही मेरा वसंत है
so nice words and also about you.
ReplyDeleteहमेशा की तरह बेहद उम्दा. अगली रचना का इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteसुनो, फूल ना भी मिले तो
ReplyDeleteतुम लौट आना...
तुमसे ही मेरा वसंत है
waah in mein hi saare ehsaas mil gaye,bbahut sundar.
सुनो, फूल ना भी मिले तो
ReplyDeleteतुम लौट आना...
तुमसे ही मेरा वसंत है
क्या लाजवाब शब्द हैं. आज फ़िर से नमन. बेहद खूबसूरत.
रामराम
खुबसूरत शब्दों से सजी पलाश पहली दफा देखा और पढ़ा भी .. बहोत खूब ढेरो बधाई आपको..
ReplyDeleteअर्श
खोने और बचाए रखने की कशमकश साफ झलकती है इस कविता में..
ReplyDeleteKeep writing.
इन चाहतों के दरमियान एक प्यारी सी चाहत ....
ReplyDeleteफूल अगर न भी मिले तो लौट आना ...
आपकी चाहत पसंद आयी
शब्दों के साथ आपका खिलवाड़ बड़ा अनूठा है. आभार.
ReplyDeletepichhale kuchh dino me yah tumhari sabse khoobsoorat rachna hai..
ReplyDeletemujhe udas kar gayi.. :(
ये नाइंसाफी है
ReplyDeleteइतने सुंदर फूल के साथ इतनी सुंदर कविता
आप ही बताइए हम फूल देखें या कविता पढ़ें
आख़िर पलास हमारा पसंदीदा फूल है.
बसंत तभी आता है जब उससे जुड़ी चीजें आती हैं
जब पलास के दहकते फूल आग बरसाते से होते हैं,
जब सरसौ के फूलों का पीलापन ढक लेता है,
जब गुजरते हुए किसी अमराई के पास से पहुँच जाती हैं आम की मंजरियों की भीनी भीनी खुशबू.
बसंत आता नही उसके पास जाना होता है ऐसे ही
किसी को वापस बुलाने से ज्यादा अच्छा नही होता उसके पास जाना ?
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteतुम लौट आना...
ReplyDeleteतुमसे ही मेरा वसंत है
यही पंक्तियां अपने आप में एक पूर्ण कविता हैं
मेरी बड़ी मौसी(अब स्व)की ससुराल का नाम ही है पलासखेड़ ।गांव जाने के रास्ते सिर्फ़ और सिर्फ़ पलाश के पेड़ खडे मिलते थे।फ़ाल्गुन से पहले जब पलाश खिलते थे तो ऐसा लगता था कि पेड़ मे आग लग गई हो।बेहतरीन रचना। खासकर अंतिम पंक्ति,तुमसे ही मेरा वसंत है।
ReplyDeletebahut pyari rachna Puja ji :-)
ReplyDeleteतुम लौट आना...
ReplyDeleteतुमसे ही मेरा वसंत है
बहुत सुंदर लिखी है यह पंक्तियाँ आपने पूजा .
यू आर द बेस्ट!
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