याद आते हैं वो फोकट में मुस्कुराने के दिन
दिन भर बाहर खेलने वाले बहाने के दिन
याद आती है वो राखी पर मिली टाफियां
और उसे सबको दिखा कर चिढ़ाने के दिन
वो तितिलियों से दोस्ती वो चिड़ियों सा गाना
पिल्लों और बिल्लियों से याराने के दिन
बारिशों में दिन भर सड़कों पे खेलना वो
वो शाम को मम्मी से डांट खाने के दिन
कित कित की गोटियाँ थी सबसे बड़ा खजाना
जमीं में गाड़ कर भाइयों से छुपाने के दिन
चिनियाबदाम में खुश हो जाने वाले लम्हे
कुल्फी के लिए रोज मचल जाने के दिन
तस्वीरों सा धुंधला है बचपन का वो मौसम
उफ़ वो बेफिकर उठने और सो जाने के दिन
नोट: फोटो में मैं अपने छोटे भाइयों के साथ हूँ। clockwise मैं चंदन, जिमी और कुंदन हैं। (कुणाल कहता है की मैं सबमें सबसे ज्यादा बदमाश लगती हूँ)
बचपन के दिन भी क्या दिन थे....उड़ते फिरते तितली बन...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है...
नीरज
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteतस्वीरों सा धुंधला है बचपन का वो मौसम
उफ़ वो बेफिकर उठने और सो जाने के दिन
न समय की चिंता न भविष्य की फिक्र
हर पल बीते जैसे त्योहारों के दिन
तस्वीरों सा धुंधला है बचपन का वो मौसम
ReplyDeleteउफ़ वो बेफिकर उठने और सो जाने के दिन
क्या बात है, जी बहुत ख़ूब।
सच में वो दिन नहीं लौट सकते। लौटते भी हैं, तो सिर्फ़ स्मृतियों में।
बारिशों में दिन भर सड़कों पे खेलना ....उड़ते फिरते तितली बन.
ReplyDeleteतस्वीरों सा धुंधला है बचपन का वो मौसम
बहुत सुन्दर लिखा है---
जब स्कूल में था, तो ये दुनिया बड़ी अजीब लगती थी . सबकुछ बड़ा ही अजीब लगता था . बाल मन में कई अजीब सवाल उठते थे ....उन सवालों के जबाब कोई देने वाला नही था । आज जब कई लोग उनका जबाब दे सकते है तो सवाल ही नही उठते । वो बचपन कहाँ गया ....वो इक्षाशक्ति और जानने की लालशा कहाँ गई ....भाई मै तो बड़ा ही परेशान हूँ । कहतें है अतीत को याद नही करना चाहिए लेकिन मै अपनी बचपन की यादों को कैसे छोड़ दूँ ? वो मस्त जीवन , वो मीठी यादें .....नही भूल सकता । गाँव की गलियों में घूमना । कोई चिंता फिकर नही .... डांट खाना और फ़िर वही करना ,आगा पीछे सोचने की कोई कोशिश नही । घर से ज्यादा दोस्तों की चिंता ....कौन क्या कर रहा है .....इसकी ख़बर रखना । आज कई यादें धुंधली हो गई है ....कुछ तो लुप्त हो गई है ....हाय रे मेमोरी । याद करने की कोशिश बेकार हो जाती । वो बचपन छोटा सफर था लेकिन अकेला सफर तो कतई नही था । आज तो मन भीड़ में भी अकेला लगता है ....
बहुत प्यारी कविता!
ReplyDeleteआपका बचपन तो बस अभी अभी बीता है और हम तो यहाँ अपने बच्चों का बचपन बीत जाने पर भी बचपन को वैसे ही उतने ही प्यार से सहेजे बैठे हैं और जब तब याद करते रहते हैं।
घुघूती बासूती
सिर्फ याद ही तो कर सकते हैं ... बचपन को लौटा तो सकते नहीं .. सुंदर प्रस्तुतीकरण।
ReplyDeleteबचपन के दिन भी क्या दिन होते हैं ...सचमुच फिर से जब तब बचपन में लौट जाने को दिल करता है
ReplyDeleteनया..?बचपन भी अच्छा है ..!
ReplyDeleteचिनियाबदाम में खुश हो जाने वाले लम्हे
ReplyDeleteकुल्फी के लिए रोज मचल जाने के दिन
तस्वीरों सा धुंधला है बचपन का वो मौसम
उफ़ वो बेफिकर उठने और सो जाने के दिन
soooooooo swettt:);),sahi,sunder khoya bachpan yaad aa gaya.
बहुत ही कोमल. गुद गुदी होने लगी. चित्र सिंह की ग़ज़ल याद आ रही है . वो कागज़ की किश्ती वो बारिश का पानी.... आभार..
ReplyDeletevery well presented
ReplyDeleteसच...........
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
अच्छा लगा पढ़ के. कुछ पुरानी स्मृतियाँ उभर आईं।
ReplyDeleteशायद बचपन की कोई जात और धर्म नही होता. बिना भेदभाव सबके लिये एक सा होता है.
ReplyDeleteबहुत आभार बचपन एक बारगी फ़िर याद दिलाने के लिये. जो कि शायद हम भूल ही चुके हैं.
रामराम.
बचपन के दिन भी क्या दिन होते। जिदंगी भर साथ साथ चलते है। याद आने पर मीठा सा अहसास देते है।
ReplyDeleteतस्वीरों सा धुंधला है बचपन का वो मौसम
उफ़ वो बेफिकर उठने और सो जाने के दिन
बहुत उम्दा।
टाइअम मशीन ऐसी बने कि आदमी मन चाहे तरीके से उन पलों की अनुभूति कर सके!
ReplyDeleteइन चीज़ों को पढ़ते हुए हमेशा सुदर्शन फ़कीर की ग़ज़ल और जगजीत सिंह की आवाज़ कानों में उतर आया करती है......ये दौलत भी ले लो....ये शोहरत भी ले लो......हाँ बेशक आपने भी अच्छा ही लिखा है,,,,!!
ReplyDeleteइन चीज़ों को पढ़ते हुए हमेशा सुदर्शन फ़कीर की ग़ज़ल और जगजीत सिंह की आवाज़ कानों में उतर आया करती है......ये दौलत भी ले लो....ये शोहरत भी ले लो......हाँ बेशक आपने भी अच्छा ही लिखा है,,,,!!
ReplyDeleteबचपन के दिन हाँ वो मस्ती के दिन बेफिक्री के दिन ..कभी नहीं भूलते न ..:) सुन्दर लिखा
ReplyDeletebahut khoobsurat, bahut pyari kavita, bade dino baad aap laut aayi :-)
ReplyDeleteVery nice....
ReplyDeleteBahut siddat se likhte ho..
Ye andaz kahan se paya hai.
Aapki kavita ka naya roop
Hame bahut hi pasand aaya hai.
Tejaram suthar pranjak
bachpan kabhi puraana nahi hota...
ReplyDeletebahot khub likha hai aapne...
arsh
मैडम हम पहिले बचपन की कहानी तो सुन लिये और अच्छा लगा भी कह दिये। अब दूसरे बचपन की कहानी सुनने का इंतजार कर रहे हैं। आपको बचपन शीर्षक से लिखी एक ठो कविता भी पढ़ा दे रहे हैं। शायद आपको अच्छी लगे:इमली की कच्ची फलियों से
ReplyDeleteभरी हुई फ्राकों के दिन
मोती-मनकों-कौड़ी
टूटी चूड़ी की थाकों के दिन।
अम्मा संझा-बाती करतीं
भउजी बैठक धोती थीं
बाबा की खटिया पर
मुनुआ राजा की धाकों के दिन।
वो दिन मनुहारों के
झूलों पर झूले और चले गये
वो सोने से मंडित दिन थे
ये नक्सों-खाकों के दिन।
ये कविता स्व.सुमन सरीन ने लिखी थी। और पढ़ने का मन हो तो इस लिंक पर पढ़ियेगा।
http://hindini.com/fursatiya/?p=169
हो सकता है कुणाल ;जी सही ही कहते हों
ReplyDeleteबचपन की याद आ गई।
ReplyDeleteएक बेहद दिल के करीब की रचना।
बधाई।
ये बात है! अहा !
ReplyDeleteतस्वीरों सा धुंधला है बचपन का वो मौसम
उफ़ वो बेफिकर उठने और सो जाने के दिन
बहुत बहुत बहुत ख़ूब पूजा जी। दिल जीत लिया जी आपने। हमारा बहुत बहुत आशीर्वाद क़ुबूल फ़रमाएँ। ख़ूब तरक्की करें आप अपने इस सुन्दर साहित्यिक जीवन में।
बहुत खूब...
ReplyDeleteआपने तो बचपन याद दिला दिया....
(बुहुहू सुबुक सुबुक).....
kunal ka kehna sahi hai...
ReplyDeletearey waah favicon bhi laga liya :)
मुझे तो इस बच्चा पोस्ट मे बडा आनन्द आया डाक्टर आंटी.
ReplyDeleteनए बचपन की खोज जारी है अभी :-)
ReplyDeletebahut khubh...........
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