पिछली पोस्ट में हम दुखी थे, फ़िर शिव कुमार जी ने समझाया की देश बेगाना नहीं है बहुत से लोग हमारी पोस्ट का समर्थन कर रहे हैं...और उन्होंने पुलिस को एक एक गिलास ठंढई भेजने की भी जरूरत बताई...अब उसके बाद अनूप जी आए, और उन्होंने कहा की शिवजी ठंढई भेज रहे हैं उसे पियो और पोस्ट लिखो...वैसे तो शिव जी पुलिस वालों के लिए ठंढई भेज रहे थे पर हम अनूप जी की बात कैसे टाल सकते हैं...तो हम आज पहली बार ठंढई पी कर पोस्ट लिख रहे हैं। तो आज पहले बता देते हैं की इस पोस्ट में लिखी चीज़ों के लिए हमें नहीं अनूप जी को दोषी ठहराया जाए। वैसे आप पूछ सकते हैं की आज पहली बार क्या हुआ है, पहली बार ठंढई पी है या पहली बार ठंढई पी कर पोस्ट लिख रहे हैं। तो ये बात हम साफ़ नहीं करेंगे....ये राज़ है :) (राज ठाकरे वाला नहीं)
मिजाज प्रसन्न है तो हमने सोचा क्यों न ये ही लिख दिया जाए की ब्लॉग पोस्ट लिखी कैसे जाती है...तो भैय्या मैं नोर्मल ब्लॉग पोस्ट की बात कर रही हूँ, मेरी इस वाली जैसे पोस्ट की नहीं की भांग चढ़े और कुर्सी टेबल सेट करके लैपटॉप पर सेट हो गए...कि जो लिखाये सो लिखाये डिस्क्लेमर तो पहले ही लगा दिए हैं। क्या चिंता क्या फिकर...
आजकल ब्लॉग पर भी बड़ा सोच समझ के लिखना पड़ता है...क्या पता पुलिस पकड़ के ले जाए, वैसे भी आजकल पुलिस को ऐसे निठल्ले कामों में ही मन लगता है...मैं तो सोच रही हूँ पुलिस वालो को ब्लॉग्गिंग का चस्का लगवा दिया जाए, एक ही बार में मुसीबत से छुटकारा मिल जायेगा। तो आजकल डर के मारे ब्लोग्स के ज्यादा आचार संहिता पढ़ती हूँ, सोचा तो था की लॉ कर लूँ पर शायद कोई फरमान आया है की २५ साल से कम वाले ही admission ले पायेंगे(इस ख़बर की मैंने पुष्टि नहीं की है) "शायद" लिखने से या फ़िर "मैं ऐसा सोचती हूँ" लिखने से आप कई मुसीबतों से बच जाते हैं इसलिए मैं इनका धड़ल्ले से इस्तेमाल करती हूँ। वैसे तो मेरी सारी मुसीबत इस मुए ब्लॉग की वजह से है और इस बीमारी का कोई इलाज मिल नहीं पाया है अब तक तो खुन्नस में सारी पोस्ट्स ब्लॉग पर ही लिखे जा रही हूँ।
अब इस सोच समझ के लिखने वाली पहली शर्त के कारण हम जैसे लोगों का जो हाल होता है वो क्या बताएं...कविता लिखने से बड़ी प्रॉब्लम कुछ है ही नहीं...अब मैं लिखूंगी कि आजकल धूप कम निकलती है मेरे आँगन में और सोलर पैनल वाले आ जाएँ झगड़ा करने कि मैडम आपलोगो को सोलर एनर्जी इस्तेमाल करने से रोक रही हो। अब लो, अर्थ का अनर्थ, बात का बतंगड़। या फ़िर मैं लिखूं कि आजकल रोज आसमान गहरा लाल हो जाता है और बीजेपी वाले चढ़ जाएँ त्रिशूल लेकर कि आप गहरा लाल कैसे लिख रही हैं आसमान तो केसरिया होता है, आप ऐसे कवितायेँ करके कम्युनिस्टोंको खुल्लेआम सपोर्ट नहीं कर सकती। कविता में से तो कुछ भी अर्थ निकले जा सकते हैं, अब आप चाहे कुछ भी समझाने कि कोशिश कर लो...मुसीबत आपके सर ही आएगी। और हम ठहरे छोटे से ब्लॉगर कम से कम जर्नलिस्ट भी होते तो कुछ तो धमकी दे सकते थे।
अब इतना सोच समझ के कविता किए तब तो हो गया लिखना...भाई कविता लिखने का तरीका है कि बस धुंआधार कीबोर्ड पर उँगलियाँ पटके जाओ, थोड़ी थोड़ी देर में इंटर मार दो...बस हो गई कविता। अब सोचे लगे तो थीसिस न कर लें जो कविता लिख के मगजमारी कर रहे हैं। हमारा तो कविता लिखने का स्टाइल चौकस है, हम तो बस चाँद, बादल, प्यार, बारिश या फ़िर दिल्ली पर लिखेंगे इससे ज्यादा हमसे मेहनत मत करवाओ जी...कभी कभी बड़े बुजुर्गों का आदेश हो तो कुछ और पर भी लिख लेते हैं, जैसे देखिये शिव जी के गुझिया सम्मलेन में हमने गुझिया पर कविता लिखी।
कवियों को कहीं भी ज्यादा भाव नहीं दिया जाता, उसपर कोई भी टांग खींच लेता है, लंगडी मार देता है...कवि का जीवन बड़ा दुखभरा होता है उसपर ऐसा कवि जो ब्लॉगर हो...उसे तो जीतेजी नरक झेलना पड़ता है जी, अपनी आपबीती है, कितना दुखड़ा रोयें, वैसे भी और भी गम है ज़माने में ब्लोग्गिन के सिवा।
समाज के बारे में पता नहीं लोग कैसे इतना लिख लेते हैं, हमारे तो कुछ खास पल्ले नहीं पड़ता...अब पिछली पोस्ट लिखी थी कि भैय्या हमें अपना देश बिराना लग रहा है...कोई योगेश गुलाटी जी आकर कह गए कि एक बार फ़िर विचार कीजिये, देश पराया हो गया है कि आपकी सोच विदेशी हो गई है? डायन, आधुनिक लड़कियां, छोटे कपड़े, जाने क्या क्या कह गए जिनका पोस्ट से कोई सम्बन्ध नहीं था...कहना ही था तो शिष्टाचार तो बरता ही जा सकता था चिल्लाने की क्या जरूरत थी...इन्टरनेट पर रोमन में कैपिटल लेटर्स में लिखना चिल्लाना माना जाता है. इतना लम्बा कमेन्ट वो भी मूल मुद्दे से इतर, भई इससे अच्छा आप पोस्ट ही लिख देते अपने ब्लॉग पर...मेरे कमेन्ट स्पेस को पब्लिक प्रोपर्टी समझ कर इस्तेमाल करने की क्या जरूरत थी. मेरे होली पर जो विचार थे मैंने लिखे आप असहमत थे आप लिखते, बाकी चीज़ें क्यों लपेट दी?
तो समाज के प्रति लिखने का ठेका कुछ लोगो ने ले रखा है, जिनका अपने ब्लॉग पर लिखने से मन नहीं भरता तो दूसरो के कमेन्ट स्पेस भरते चलते हैं...वैसे मेरा पाला इन लोगो से कम ही पड़ा है. कह तो देती की इनसे भगवान बचाए पर भगवान ने इनसे बचने का सॉफ्टवेर अभी तक इजाद नहीं किया है, शायद कुछ दिन बाद ऐसी अर्जियां वहां एक्सेप्ट होने लगें. तब तक इनको झेलना तो हमारी मजबूरी है.
हम वापस आ कर कविता पर ही टिक जाते हैं...इसपर हमें गरियाया जाए तो क्या कर सकते हैं.
ये वाली पोस्ट हमारी रिसर्च का hypothesis है आगे आगे देखें क्या नतीजा निकलता है।
लिखने का ठेका कुछ लोगो ने ले रखा है......
ReplyDelete... ये दर्द बयां नही कर सकता । केवल महशुश कर सकता हूँ ।
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ReplyDeleteहम बहुत देर तक सोचते रहे की क्या लिखा जाए. सोचते सोचते बहुत देर हो गया. जो सोचा था वह भी भूल गए. बहरहाल एक सुन्दर पोस्ट बन गयी है भांग चढी. अबकी एक पोस्ट लिखियो कि कैसन कमेन्ट करा जाए.ई ऊपर का है ससुरा समझ लियो है कि advertisement के लिए जगह bani है?
ReplyDeletee लो पूजा जी अभी तोहार ब्लोगिंग के दर्द को महसूस कर के टिपयाने ही लगे थे कि देखा कोई अपनी फ्री एड दे गया है यहाँ ..फीस लगा दो जी आप तो की पोस्ट के अलावा औ र्कोई बात करने पर पैसे लगेंगे
ReplyDeleteअपनी टैग लाईन भवानी जी की कविता को बना लो:
ReplyDelete’ये मस्त चला इस बस्ती से,
थोड़ी थोड़ी मस्ती ले लो....’
ऐसी फ्री फंड की एडवाईस और ऊल जूलूल कमेन्ट के लिए गुगल ने एक बटन तो दिया है डिलिट नाम का-वो इस्तेमाल करना सीखो न!! जब इतना सीख लिया तो उसे सीखने में क्या समय लगेगा.
इन लोगों का कोई उपचार अभी बना नहीं है सिवाय डिलिट कर इग्नोर करने के.
अच्छा अब जरा कविता सुनाना वो भांग वाली.. :)
क्या कीजियेगा, पूजा जी.
ReplyDeleteलोगों के अन्दर भडास भरी है; सुनने वाला कोइ मिलता नहीं
अब आपके ब्लॉग पर ही आकर निपट लेते हैं
जाने दीजिये. ये "एंटर" बटन दबाकर कविता लिखने वाला फार्मूला पहले बताया होता तो आज हमारे पास भी १००-२०० कविताओं और १०००-२००० टिप्पणियों (झूठी तारीफों) का स्टॉक होता.
यहाँ आज पहली कविता से शुरू कर रहे है.
खैर आगे से आपकी टिप्स पर ध्यान दूंगा.
कविता इतना आसान है?! हम भी ट्राई कर लेते हैं टिप्पणी में -
ReplyDeleteनक्व्फ़्ह्व्न्व्क्ल्न्च क्ल्व्ह्च्द्न्ण ,.झ्खःडण
ख्ळःछ्झ्खभ्णाख्ण छ्छ्ण .भ्ळीःड्ळ ,भ ळॊ
:)
बेहतरीन पोस्ट! गजब की किस्सा गोई। मन प्रसन्न हो गया पढ़कर!
ReplyDelete@ज्ञान जी, इसलिए हम कविता लिखने का पूरा और सही तरीका नहीं बता के खाली हिंट दिए थे, देखिये इतने में ही ज्ञान जी इतना अच्छा लिख लिए हैं. कीबोर्ड पर ऊँगली चलते वक़्त इतना तो ध्यान रखना ही होगा न कि , . ; - : इत्यादि का इस्तेमाल न किया जाए. बस इतना ध्यान रखिये और बस instant कविता तैयार.
ReplyDelete@अनूप जी, इस पोस्ट का श्रेय आपको जाता है, अगर आप भंग पी के लिखने का बेहतरीन आईडिया नहीं देते तो कैसे लिख पाते हम.
@रंजना जी, आपका आईडिया तो कमाल का धाँसू आईडिया है, इसे कमेन्ट में बेकार दाल दिया आपने, मैं तो कहती हूँ इसपर एक पोस्ट लिखिए और गूगल को आईडिया भेज दीजिये...पैसे कमाने का मौका भला कौन छोड़ना चाहेगा.
@समीर जी...भंग वाली कविता जल्दी ही आ रही है :)
आप जमकर थीसीस लिखिये ये पहला प्रकरण पढकर ही मन प्रसन्न है !
ReplyDelete- लावण्या
सुन्दर . सुखी रहो. कविता लिखने वाला आईडिया पसंद आया. और हाँ , मेरी समझ से योगेश गुलाटी जी से इतना खफा होने की जरूरत नहीं है. तुमने खुला निमंत्रण दे रखा है लोगों को , अपना मंतव्य प्रकट करने का . लोग अपनी समझ के अनुसार टिप्पणी करते हैं. स्वस्थ बहस की गुंजाईश बनी रहे ,बस . हाँ टिप्पणी अगर सामान्य शिष्टाचार के दायरे में ना हो तो जैसा कि उड़न तश्तरी पर सवार ब्लॉगर भाई ने कहा, वीटो का इस्तेमाल करो.
ReplyDeleteवरुण.
ठेले रहिये . :) हमे लिखना आये ना आये कुछ को हिंदी पढना तो आ ही जायेगा :) ( ये हमारा हमारे लेखन के बारे मे वेद वाक्य है )
ReplyDeleteऔर ये अचार संहिता क्या है हम इसको काफ़ी पहले रोटी के साथ खा चुके है बहुत स्वादिष्ट होती है आप भी सैंड्विच के डाल कर खा जाईये फ़िर जो मरजी ठेलिये :)
बढ़िया पोस्ट है. अनूप जी ने जो आईडिया दिया उसके कारण ही पोस्ट लिखी जा सकी. इसलिए अनूप जी को आईडिया देने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteकेवल कविता लिखना ठीक नहीं है. आप कवितायें लिखें. हमें आपकी कवितायें पसंद हैं. लेकिन गद्य भी लिखें. आपके पिछले जितने लेख मैंने पढ़े, मुझे बहुत अच्छे लगे. गुलाटी जी लम्बा कमेन्ट लिख सकते ही हैं. अपनी बातों के समर्थन में कुछ लोगों को लम्बा लिखना पड़ता है. खुद को साबित करने की ज़रुरत के कारण ऐसा हुआ होगा.
इसलिए लिखती रहें.
तो समाज के प्रति लिखने का ठेका कुछ लोगो ने ले रखा है, जिनका अपने ब्लॉग पर लिखने से मन नहीं भरता तो दूसरो के कमेन्ट स्पेस भरते चलते हैं............थोडा-थोडा तो मैं खुद भी ऐसा ही हूँ....मगर अब तो डर-सा लग रहा है...."पोएम" जी......प्लीईज मेरा यह डर भगायिये....जरा खुद को किनारे तो कीजिये ना......मैंने भी इक कमेन्ट पास करना है.....वैसे आपने लिखा तो अच्छा है....मगर ये तो मैं झूठ बोल रहा हूँ......हा-हा-हा-हा-हा-हा-बुरा ना मानों होली है......सारा-रा-रा-रा-रा-.........!!
ReplyDeleteअजीब बात है लावान्या जी के बाद अब आप ?ऐसा लगता है कोम्पुटर ओर नेट सिर्फ कहने भर के लिए आधुनिक उपकरण है पर इन्हें इस्तेमाल करने वाले वही दिमाग ओर वही सोच अभी भी इसके पीछे बैठे है ...हिंदी ब्लोगिंग में ये हाल तब है जब स्त्रियों की मुखरता ना के बराबर है.....अगर इंग्लिश ब्लॉग की तरह यहाँ भी मुखर हो जाए तो बवाल मच जाए ..... अपने गांधी वाले लेख पर भी मैंने देखा की लोग विषय को जाने पढ़े बगैर त्वरित प्रतिक्रिया देते है .......ओर जिस विषय में जानते नहीं है उसे आगे जानने की कोशिश भी नहीं करते है ...बिना किताब खोले या नेट पर अच्छी तरह सर्च किये हुए ....या किताबो को खंगाले ... ये कौन सी फिलोसफी है जिसमे आप एलन सोली या इंडियन टेरन की शर्ट पहनकर गांधी या बुद्ध की किताब नहीं पढ़ सकते या जींस पहनकर आपकी भारतीयता या संस्क्रति के प्रति समझ कम हो जाती है ?
ReplyDelete.
लाजवाब किस्से हैं जी. अब वो भांग वाली कविता का इंतजार करते हैं.
ReplyDeleteरामराम.