30 September, 2011

फाउंटेन पेन से निकले अजीबो गरीब किस्से

'तुम खो गए हो,' नयी कलम से लिखा पहला वाक्य काटने में बड़ा दुःख होता है, वैसे ही जैसे किसी से पहली मुलाकात में प्यार हो जाए और अगले ही दिन उसके पिताजी के तबादले की खबर आये. 

'तुम खोते जा रहे हो.' तथ्य की कसौटी पर ये वाक्य ज्यादा सही उतरता है मगर पिछले वाक्य का सरकटा भूत पीछा भी तो नहीं छोड़ रहा. तुम्हारे बिना अब रोया भी नहीं जाता, कई बार तो ये भी लगता है की मेरा दुःख महज एक स्वांग तो नहीं, जिसे किसी दर्शक की जरूरत आन पड़ती हो, समय समय पर. इस वाक्य को लिखने के लिए खुद को धिक्कारती हूँ, मन के अंधियारे कोने तलाशती भी हूँ तो दुःख में कोई मिलावट नज़र नहीं आती. एकदम खालिस दुःख, जिसका न कोई आदि है न अंत. 

स्याही की नयी बोतल खोलनी थी, उसके कब्जे सदियों बंद रहने के कारण मजबूती से जकड़ गए थे. मैंने आखिरी बार किसी को दवात खरीदते कब देखा याद नहीं. आज भी 'चेलपार्क' की पूरी बोतल १५ रुपये में आ जाती है. बताओ इससे सस्ता प्यार का इज़हार और किसी माध्यम से मुमकिन है? अर्चिस का ढंग का कार्ड अब ५० रुपये से कम में नहीं आता. गरीब के पास उपाय क्या है कविता करने के सिवा. तुम्हें शर्म नहीं आती उसकी कविता में रस ढूँढ़ते हुए. दरअसल जिसे तुम श्रृंगार रस समझ रहे हो वो मजबूरी और दर्द में निकला वीभत्स रस है. अगर हर कवि अपनी कविता के पीछे की कहानी भी लिख दे तो लोग कविता पढना बंद कर देंगे. इतना गहन अंधकार, दर्द की ऐसी भीषण ज्वाला सहने की शक्ति सब में नहीं है.

सरस्वती जब लेखनी को आशीर्वाद देती हैं तो उसके साथ दर्द की कभी न ख़त्म होने वाली पूँजी भी देती हैं और उसे महसूस करके लिखने की हिम्मत भी. बहुत जरूरी है इन दो पायदानों के बीच संतुलन बनाये रखना वरना तो कवि पागल होके मर जाए...या मर के पागल हो जाए. बस उतनी भर की दूरी बनाये रखना जितने में लिखा जा सके. इस नज़रिए से देखोगे तो कवि किसी ब्रेन सर्जन से कम नहीं होता. ये जानते हुए भी की हर बार मरीज के मर जाने की सम्भावना होती है वो पूरी तन्मयता से शल्य-क्रिया करता है. कवि(जो कि अपनी कविता के पीछे की कहानी नहीं बताता) जानते हुए कि पढने वाला शायद अनदेखी कर आगे बढ़ ले, या फिर निराशा के गर्त में चले जाए दर्द को शब्द देता है. वैसे कवि का लिखना उस यंत्रणा से निकलने की छटपटाहट मात्र है. इस अर्थ में कहा नहीं जा सकता कि सरस्वती का वरदान है या अभिशाप.

ये पेन किसी को चाहिए?
तुम किसी अनजान रास्ते पर चल निकले हो ऐसा भी नहीं है(शायद दुःख इस बात का ही ज्यादा है) तुम यहीं चल रहे हो, समानांतर सड़क पर. गाहे बगाहे तुम्हारा हँसना इधर सुनाई देता है, कभी कभार तो ऐसा भी लगता है जैसे तुम्हें देखा हो- आँख भर भीगती चांदनी में तुम्हें देखा हो. एक कदम के फासले पर. लिखते हुए पन्ना पूरा भर गया है, देखती हूँ तो पाती हूँ कि लिखा चाहे जो भी है, चेहरा तुम्हारा ही उभरकर आता है. बड़े दिनों बाद ख़त लिखा है तुम्हें, सोच रही हूँ गिराऊं या नहीं. 


हमेशा की तरह, तुम्हारे लिए कलम खरीदी है और तुम्हें देने के पहले खुद उससे काफी देर बहुत कुछ लिखा है. कल तुम्हें डाक से भेज दूँगी. तुम आजकल निब वाली पेन से लिखते हो क्या?


8 comments:

  1. पोस्ट हमेश की तरह बेहतरीन है,
    पेन की फोटो इतनी बार नहीं लगनी चाहिए थी क्यूंकि....
    "तुम खो गए हो" और "तुम खोते जा रहे हो" के अलावा इन्हीं शब्दों एक और वाक्य विन्यास बनता है "तुम मिलने से पहले ही खो गयी"
    ता फ़िर ना इंतज़ार में नींद आए रात भर...
    ..प्रिय पेन जहाँ कहीं भी मेरे बिना आशा करता हूँ खुश होगी...
    कि तुम्हें भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूं तुम तो फ़िर भी हक़ीकत हो कोई ख़्वाब नहीं.

    Jokes apart loved this line:
    दरअसल जिसे तुम श्रृंगार रस समझ रहे हो वो मजबूरी और दर्द में निकला वीभत्स रस है. अगर हर कवि अपनी कविता के पीछे की कहानी भी लिख दे तो लोग कविता पढना बंद कर देंगे. इतना गहन अंधकार, दर्द की ऐसी भीषण ज्वाला सहने की शक्ति सब में नहीं है.


    "आह निकली है जो दाद के बदले उसकी
    कुछ तो समझा हे मेरे शे'र से मतलब मेरा."
    -मनु 'बेत्खल्लुस'

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  2. कवि,एक कुशल ब्रेन सर्जन, दिमाग के सारे neurons को खोलकर बैठा माथापच्ची करता है...और तुम कहते हो--"आह! इतना अच्छा कैसे सोच लेते हो!" इन neurons को सुलझाते हुए बेचारा कवि कभी खुद उलझ जाता है...सारे फंदे उसे चारो ओर से कसने लगते है...उसके अन्दर कही कुछ घुटने लगता है....इस उम्मीद में कि तुम उसे बचा लोगे वो तुम्हारे सामने इस घुटन के साथ प्रस्तुत होता है और तुम कहते हो ...

    " वाह!कैसी सुंदर कविता...





    हमेशा की तरह...लाजवाब!!

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  3. बहुत सुन्दर गद्यांश. कुशल ब्रेन सर्जन तो हो, कोई शक की गुंजाइश नहीं है. वह निब वाली पेन हमें बड़ी पसंद है.

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  4. इस पेन को निब वाली कहें या फाउंटेन, झर-झर बहते शब्‍द.

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  5. jab jab guzra hoon apki rachaon se khamoshi chain nahi lene deti hai...

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  6. लेखक का लेखनी के साथ आत्मिक संबन्ध होता है, सदा ही बना भी रहता है।

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  7. haan sach me pen kho se gae hain.....

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  8. सोच रहा हूँ आज ही एक फाउंटन पेन खरीदूं :) नीब वाली पेन से लिखने का अब मेरा भी दिल कर रहा है!!

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