बुखार देहरी पर खड़ा उचक रहा है. आजकल बड़ा तमीजदार हो गया है, पूछ कर आएगा. ऑफिस का काम कैसा है, अभी बीमार पड़ने से कुछ ज्यादा नुकसान तो नहीं होगा, काम कुछ दिन टाला जा सकता है या नहीं. उम्र के साथ शरीर समझने लगता है आपको...कई बार आपके हिसाब से भी चलने लगता है. किसी रात खुद को बिलख कर कह दो, अब आंसू निकलेंगे तो आँखें जलन देंगी तो आँखें समझती हैं, आज्ञाकारी बच्चे की तरह चुप हो जाती हैं.
एक दिन फुर्सत जैसे इसलिए मिली थी की थकान तारी है. थकान किस चीज़ की है आप पूछेंगे तो नब्ज़ पर हाथ रख कर मर्ज़ बतला नहीं सकती. अलबत्ता इतना जरूर पता है कि जब किताबों की दुकान में जा के भी चैन न पड़े तो इसका मतलब है कि समस्या बेहद गंभीर होती जा रही है.
सोचती हूँ इधर लिखना कम हो गया है. बीते सालों की डायरी उठती हूँ तो बहुत कुछ लिखा हुआ मिलता है. तितली के पंखों की तरह रंगीन. इत्तिफ़ाक़न ऐसा हुआ है कि कुछ पुराने दोस्त मिल गए हैं. यही नहीं उनके अल्फाज़ भी हैं जो किसी भटकी राह में हाथ पकड़ के चलते हैं...कि खोये ही सही, साथ तो हैं. विवेक ने नया ब्लॉग शुरू किया, हालाँकि उसने कुछ नया काफी दिन से नहीं लिखा. पर मुझे उम्मीद है कि वो जल्दी ही कुछ लिखेगा.
इधर कुछ दिनों से पंकज से बहुत सी बात हो रही है. पंकज को पहली बार पढ़ा था तो अजीब कौतुहल जागा था...समंदर की ओर बैठा ये लड़का दुनिया से मुंह क्यूँ फेरे हुए है? आखिर चेहरे पर कौन सा भाव है, आँखें क्या कह रही होंगी. उस वक़्त की एक टिपण्णी ने इस सुसुप्तावस्था के ज्वालामुखी को जगा दिया और वापस ब्लॉग्गिंग शुरू हुयी. मुझे हमेशा लगता था कि एकदम सीरियस, गंभीर टाइप का लड़का है...पता नहीं क्यूँ. वैसे लोगों को मैं इस तरह खाकों में नहीं बांटती पर ये केस थोड़ा अलग था. इधर पंकज का एक नया रूप सामने आया है, PJs झेलने वाला, इसकी क्षमता अद्भुत है. कई बार हम 'missing yahoo' से 'ROFL, ROFLMAO' और आखिर में पेट में दर्द होने के कारण सीरियस बात करते हैं. जहर मारने और जहर बर्दाश्त करने की अपराजित क्षमता है लड़के में. कितनी दिनों से अवसाद से पंकज ने मेरी जान बचाई है...यहाँ बस शुक्रिया नहीं कहूँगी उसका...कहते हैं शुक्रिया कहने से किसी के अहसानों का बोझ उतर जाता है. काश पंकज...तुम थोड़ा और लिखते.
आज ऐसे ही मूड हो रहा है तो सोच रही हूँ दर्पण को भी लपेटे में ले ही लिया जाए. दर्पण मुझे हर बार चकित कर देता है, खास तौर से अपनी ग़ज़लों से. मुझे सबसे पसंद आता है उसकी गज़लें पढ़कर अपने अन्दर का विरोधाभास...ग़ज़ल एकदम ताजगी से भरी हुयी होती हैं पर लगता है जैसे कुछ शाश्वत कहा हो उसने. अनहद नाद सा अन्तरिक्ष में घूमता कुछ. कभी कभार बात हुयी है तो इतना सीधा, सादा और भला लड़का लगा मुझे कि यकीन नहीं आता कि लिखता है तो आत्मा के तार झकझोर देता है. पहली बार बात हुयी तो बोला...पूजा प्लीज आपको बुरा नहीं लगेगा...मुझे कुछ बर्तन धोने हैं, मैं बर्तन धोते धोते आपसे बात कर लूं? दर्पण तुम्हारी सादगी पर निसार जाएँ.
ज्यादा बातें हो गयीं...बस आँखें जल रही हैं तो लिखा हुआ अब पढूंगी नहीं...इसे पढ़ के किसी को झगड़ा करना है तो बुखार उतरने के बाद करना प्लीज...
कुछ अच्छे लोग जो मेरी जिंदगी में हैं...जाहिर है कुछ बुरे लोग बाहर:)
ReplyDeleteमगर उदधृत लोग सचमुच होनहार है -एक झलक देख आया !
पंकज बाबू तो स्टार आदमी है...हम भी जब पहला बार पढ़े थे तो लगा की बहुत खतरनाक किस्म का प्राणी होगा लेकिन जब बातचीत हुई तो भ्रम टूटा...
ReplyDeleteवैसे पहली बार पंकज से बातचीत भी मस्त रही थी..पंकज को तो याद होगा ही...
और दर्पण साहब को अक्सर पढता हूँ..
कुछ लोगों को पढना सच में बहुत अच्छा लगता है...
ReplyDeleteचाहे कितना भी व्यस्त रहूँ उन्हें पढना नहीं भूलता...
अनिल कान्त भाई और कुश भाई भी कातिलाना लिखते हैं... और आपका तो वैसे भी जवाब नहीं.... :)
Wah! Maza aa gaya padhke!
ReplyDeleteagar tabiyat sach mein kharab hai to get well soon....:)
ReplyDeleteमैं पंकज और दर्पण से निजी तौर पर परिचित नहीं हूँ..मगर आज तुम्हारी इस पोस्ट से इन दोनों को थोडा बहुत जानने का मौका मिल गया. जल्दी विदा कर दो इस बुखार को..
ReplyDeleteबुखार उतर जाने दीजिये, तन और मन दोनों ही हल्के हो जाते हैं उसके बाद। स्वास्थ्य लाभ के लिये शुभकामनायें। विचार लिखने के स्थान पर रिकार्ड कर लें, मोबाइल पर।
ReplyDeleteअब तो बुखार उतर गया होगा. दोनों को पढ़कर आ रहा हूँ. दोनों ही जयशंकर प्रसाद लग रहे हैं. .
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके 'दोस्तों' से मिलकर।
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मायावी मामा?
रूमानी जज्बों का सागर..
"इसे पढ़ के किसी को झगड़ा करना है तो बुखार उतरने के बाद करना प्लीज"
ReplyDeleteठीक
@saagar: :-P :-D
ReplyDeleteअगर ज़हमत ना हो तो क्या ज़रा सा काम कर देंगी..
ReplyDeleteहमारा नाम ले-लेकर हमारा नाम कर देंगी?
ये शेर अभी पढ़ा था, तुमने नाम ले ही लिया है तो बता दूं कि अनिल अंबानी के धोखे का शिकार हुआ हूं। साढ़े सात सौ रुपए महीने में भी 60केबी स्पीड का नेट देता है(वादा 512 का था) और उसपे भी वो पिछले एक हफ्ते से बीमार है(तुम तो ब्लॉग लिख पा रही हो वो लाख कोशिश करके गूगल तक नहीं पहुंच पा रहा)..तुम्हारी पोस्ट पर ये प्रतिक्रिया भी दफ्तर से भेज रहा हूं। मुमकिन है एक-दो दिन में ठीक हो जाए तो फिर से कुछ लिख पाऊंगा। तुम ध्यान रखो, और हां, बुखार से दोस्ती अच्छी नहीं। पंकज को पढ़ा, he is an amazing observer as well as writer.
अच्छा सुनो, लो बुखार ठीक कर लो...
ReplyDeletehttp://firstsignature.blogspot.com/2011/09/blog-post_21.html
V, शेर तो बहुत खूब है यार...अभी तुम्हें पढ़ा है...बुखार उतरा है या चढ़ा है उसे पढकर समझ नहीं आ रहा. ऐसे तिस्लिस्म मत रचो कि इंसान वापस ही न आ सके.
ReplyDelete@सुब्रमनियम जी...दोनों सुनेंगे तो आसमान पर चढ़ जायेंगे...ऐसी तारीफ मत किया कीजिये :)
@saagar:
ReplyDelete:-)
पंकज का केस तो सच में अलग ही है, दर्पण को पढ़ना अद्भुत होता है.
ReplyDeleteऔर एक बात जो सोलह आने सच है "जब किताबों की दुकान में जा के भी चैन न पड़े तो इसका मतलब है कि समस्या बेहद गंभीर होती जा रही है."
मेरा वायरल भी अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है, बुखार में कुछ दोस्त कितना साथ देते हैं.
:-)
ReplyDeleteशुक्र है दो ही अच्छे लोग जिंदगी में हैं..!
ReplyDeletekuch nae blogs(jinhe maine abhi tak nahi padha tha islie nae hai)se parichay karwane ke lie dhanyawad
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