26 September, 2011

इस आस में किनारे पे ठहरा किये सदियों तलक

आवाजों का एक शोर भरा समंदर है जिसमें हलके भीगती हूँ...कुछ ठहरा हुआ है और सुनहली धूप में भीगा हुआ भी. पाँव कश्ती से नीचे झुला रही हूँ...लहरें पांवों को चूमती हैं तो गुदगुदी सी लगती है. हवा किसी गीत की धुन पर थिरक रही है और उसके साथ ही मेरी कश्ती भी हौले हौले डोल रही है.

आसमान को चिढ़ाता, बेहद ऊँचा, चाँद वाली बुढ़िया के बालों सा सफ़ेद पाल है जो किसी अनजान देश की ओर लिए जा रहा है. नीला आसमान मेरी आँखों में परावर्तित होता है और नज्मों सा पिघलने लगता है...मैं ओक भर नज़्म इकठ्ठा करती हूँ और सपनों में उड़ेल देती हूँ...जागी आँखों का सपना भी साथ है कश्ती में. 

शीशे के गिलासों के टकराने की मद्धम सी आवाज़ आती है जिसमें एक स्टील का गिलास हुआ करता है. मुझे अचानक से याद आता है कि मेरे दोस्त मेरे नाम से जाम उठा रहे होंगे. बेतरतीब सी दुनिया है उनकी जिसमें किताबें, अनगिन सिगरेटें और अजनबी लेकिन अपने शायरों के किस्से हैं...मैं नाव का पाल मोड़ना चाहती हूँ, फिर किसी जमीन पर उतरने की हूक उठती है. जबकि अभी ही तो नयी आँखों से दूसरी दुनिया देखने निकली थी. उनकी एक शाम का शोर किसी शीशी में भर कर लायी तो थी, गलती से शीशी टूट गयी और अब समंदर उनके सारे किस्से जानता है. 

जमीन पर चलते हुए छालों से बचने के लिए इंसान ने जूते बनाये. नयी तकनीकें इजाद हुयी और एक से बढ़कर एक रंगों में, बेहद सुविधाजनक जूते मिलने लगे. जिनसे आपके पैर सुरक्षित रहते हैं...हाँ मगर ऐसे में पैर क्या सीख पाते हैं? दुनिया देख आओ, हर शहर से गले मिल लो, नदियों, पहाड़ों, रेगिस्तानों भटक आओ...मगर पैर क्या मांगते हैं...मिट्टी. तुम्हारे घर की मिट्टी, भूरी, खुरदरी कि जिसमें पहली बार खेल कर बड़े हुए. आज समंदर में यूँ पैर भीग रहे हैं तो समंदर उन्हें मिट्टियों की कहानी सुना रहा है. समंदर के दिल में पूरी दुनिया की मिट्टी के किस्से हैं.

शोर में कुछ बेलौस ठहाके हैं, कि जिनसे जीने का सलीका सीखा जाए और अगर गौर से सुना जाए तो चवन्नी मुस्कान की खनक भी है. इतनी हंसी आँखों में भर ली जाए तो यक़ीनन जिंदगी बड़े सुकून से कट जाए. तो आवाजों के इस समंदर में एक ख़त मैं भी फेंकती हूँ, महीन शीशी में बंद करके. कौन जाने कभी मेरा भी जवाब आये...कि क़यामत का दिन कोई बहुत दूर तो नहीं. 



इस आस में किनारे पे ठहरा किये सदियों तलक 
कोई हमें फुसला के वापस घर ले जाए

15 comments:

  1. इस उम्मीद में कि मनाने आएगा कोई इक दिन,
    हमने दिल के दरवाजों को खोल रक्खा है !!

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  2. बावरे से मन की देखो बावरी हैं बातें... :-)

    बहुत खूबसूरत लिखा है पूजा...

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  3. इस आस में किनारे पे ठहरा किये सदियों तलक
    कोई हमें फुसला के वापस घर ले जाए
    सच कहा पूजा जी……………उम्मीद के जुगनू जलते रहने चाहियें।

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  4. जिंदगी से पूछा साथ चलोगी?...इस आस मे किनारे पे.......
    और बस !!!

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  5. काश लहरों की उमड़ती भीड़ में,
    कोई पहचानी पुरानी आ रही हो

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  6. इस आस में किनारे पे ठहरा किये सदियों तलक
    कोई हमें फुसला के वापस घर ले जाए
    Bahut khoob!

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  7. बड़े दिनों के बाद इतना खूबसूरत कुछ पढ़ने को मिला है... अभी एक दो बार और पढूंगी.

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  8. बहुत सुन्दर. "लहरें पांवों को चूमती हैं तो गुदगुदी सी लगती है" यह तो हम भी जानते थे लेकिन तुमने लिखा तो गुदगुदी होने लगी.

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  9. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
    तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
    अवगत कराइयेगा ।

    http://tetalaa.blogspot.com/

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  10. ऐसी पोस्ट पढकर मुझे अब्स्ट्रेक्ट मैथेमेटिक्स याद आता है. पता नहीं क्यों ! :)

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  11. @अभिषेक...हमको लगता है आपका दिमाग differently wired hai :-O

    ऐसी पोस्ट पढ़ कर मैथ...हमको तो सुनकर ही चक्कर आने लगा ;)

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  12. AAP KA LEKHAN ADBHUT HAI...POORI BHASHA KAVY MAY HAI...ADBHUT...BADHAI SWIIKAREN

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  13. Nice post.....Hamne aaj hamare weekly public forum "Mangal Sandhya" mein aapki teen rachnayein padhi aur charchayein bhi hui. Sabhi pratibhagiyon aur shrotaon kee taraf se dher sari shubhkamnayein.

    Navnit Nirav
    Jamshedpur

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  14. nice post pooja.accha laga padhkar

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  15. Beautiful thoughts presented beautifully...

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