आवाजों का एक शोर भरा समंदर है जिसमें हलके भीगती हूँ...कुछ ठहरा हुआ है और सुनहली धूप में भीगा हुआ भी. पाँव कश्ती से नीचे झुला रही हूँ...लहरें पांवों को चूमती हैं तो गुदगुदी सी लगती है. हवा किसी गीत की धुन पर थिरक रही है और उसके साथ ही मेरी कश्ती भी हौले हौले डोल रही है.
आसमान को चिढ़ाता, बेहद ऊँचा, चाँद वाली बुढ़िया के बालों सा सफ़ेद पाल है जो किसी अनजान देश की ओर लिए जा रहा है. नीला आसमान मेरी आँखों में परावर्तित होता है और नज्मों सा पिघलने लगता है...मैं ओक भर नज़्म इकठ्ठा करती हूँ और सपनों में उड़ेल देती हूँ...जागी आँखों का सपना भी साथ है कश्ती में.
शीशे के गिलासों के टकराने की मद्धम सी आवाज़ आती है जिसमें एक स्टील का गिलास हुआ करता है. मुझे अचानक से याद आता है कि मेरे दोस्त मेरे नाम से जाम उठा रहे होंगे. बेतरतीब सी दुनिया है उनकी जिसमें किताबें, अनगिन सिगरेटें और अजनबी लेकिन अपने शायरों के किस्से हैं...मैं नाव का पाल मोड़ना चाहती हूँ, फिर किसी जमीन पर उतरने की हूक उठती है. जबकि अभी ही तो नयी आँखों से दूसरी दुनिया देखने निकली थी. उनकी एक शाम का शोर किसी शीशी में भर कर लायी तो थी, गलती से शीशी टूट गयी और अब समंदर उनके सारे किस्से जानता है.
जमीन पर चलते हुए छालों से बचने के लिए इंसान ने जूते बनाये. नयी तकनीकें इजाद हुयी और एक से बढ़कर एक रंगों में, बेहद सुविधाजनक जूते मिलने लगे. जिनसे आपके पैर सुरक्षित रहते हैं...हाँ मगर ऐसे में पैर क्या सीख पाते हैं? दुनिया देख आओ, हर शहर से गले मिल लो, नदियों, पहाड़ों, रेगिस्तानों भटक आओ...मगर पैर क्या मांगते हैं...मिट्टी. तुम्हारे घर की मिट्टी, भूरी, खुरदरी कि जिसमें पहली बार खेल कर बड़े हुए. आज समंदर में यूँ पैर भीग रहे हैं तो समंदर उन्हें मिट्टियों की कहानी सुना रहा है. समंदर के दिल में पूरी दुनिया की मिट्टी के किस्से हैं.
शोर में कुछ बेलौस ठहाके हैं, कि जिनसे जीने का सलीका सीखा जाए और अगर गौर से सुना जाए तो चवन्नी मुस्कान की खनक भी है. इतनी हंसी आँखों में भर ली जाए तो यक़ीनन जिंदगी बड़े सुकून से कट जाए. तो आवाजों के इस समंदर में एक ख़त मैं भी फेंकती हूँ, महीन शीशी में बंद करके. कौन जाने कभी मेरा भी जवाब आये...कि क़यामत का दिन कोई बहुत दूर तो नहीं.
कोई हमें फुसला के वापस घर ले जाए
इस उम्मीद में कि मनाने आएगा कोई इक दिन,
ReplyDeleteहमने दिल के दरवाजों को खोल रक्खा है !!
बावरे से मन की देखो बावरी हैं बातें... :-)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लिखा है पूजा...
इस आस में किनारे पे ठहरा किये सदियों तलक
ReplyDeleteकोई हमें फुसला के वापस घर ले जाए
सच कहा पूजा जी……………उम्मीद के जुगनू जलते रहने चाहियें।
जिंदगी से पूछा साथ चलोगी?...इस आस मे किनारे पे.......
ReplyDeleteऔर बस !!!
काश लहरों की उमड़ती भीड़ में,
ReplyDeleteकोई पहचानी पुरानी आ रही हो
इस आस में किनारे पे ठहरा किये सदियों तलक
ReplyDeleteकोई हमें फुसला के वापस घर ले जाए
Bahut khoob!
बड़े दिनों के बाद इतना खूबसूरत कुछ पढ़ने को मिला है... अभी एक दो बार और पढूंगी.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. "लहरें पांवों को चूमती हैं तो गुदगुदी सी लगती है" यह तो हम भी जानते थे लेकिन तुमने लिखा तो गुदगुदी होने लगी.
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
ऐसी पोस्ट पढकर मुझे अब्स्ट्रेक्ट मैथेमेटिक्स याद आता है. पता नहीं क्यों ! :)
ReplyDelete@अभिषेक...हमको लगता है आपका दिमाग differently wired hai :-O
ReplyDeleteऐसी पोस्ट पढ़ कर मैथ...हमको तो सुनकर ही चक्कर आने लगा ;)
AAP KA LEKHAN ADBHUT HAI...POORI BHASHA KAVY MAY HAI...ADBHUT...BADHAI SWIIKAREN
ReplyDeleteNice post.....Hamne aaj hamare weekly public forum "Mangal Sandhya" mein aapki teen rachnayein padhi aur charchayein bhi hui. Sabhi pratibhagiyon aur shrotaon kee taraf se dher sari shubhkamnayein.
ReplyDeleteNavnit Nirav
Jamshedpur
nice post pooja.accha laga padhkar
ReplyDeleteBeautiful thoughts presented beautifully...
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