इधर कुछ दिनों से फाउन्टेन पेन से लिख रही हूँ. कहानियां, डायरी, चिट्ठियां...कुछ से कुछ, हर दिन लगभग. आज सुबह अख़बार पढ़ने के बाद कुछ लिखने बैठी थी. आजकल एक सवाल अक्सर परेशां कर रहा था मुझे...सवाल ये कि लिख कर भी चैन क्यूँकर नहीं मिलता. मेरे लिए लिखना हमेशा से अपने तनाव, दर्द, घुटन या किसी भी नकारात्मक विचार से मुक्ति पाना रहा है. इधर जब यंत्रणा हद से बढ़ जाती तो कोई रास्ता ही नहीं मिलता. शांति नहीं मिल रही थी...मन में असंख्य लहरें उठ रही थीं और समंदर पर सर पटक के जान दे देती थीं.
आज सुबह एक अद्भुत चीज़ हुयी. उठी तो मन बहुत व्यथित था, कारण ज्ञात नहीं, शायद कोई बुरा सपना देखा होगा या ऐसा ही कुछ...मैंने लिखना शुरू किया, मन में कुछ खास था नहीं. जो था लिखती गयी...जब तीसरे पन्ने पर पहुंची तो अचानक इस बात पर ध्यान गया कि मेरी सांसें धीमी चल रहीं थी और मन एकदम शांत हो गया था. पहले जैसा उद्वेलन नहीं था...खिड़की से सूरज की किरनें अन्दर गिर रहीं थी और सब कुछ अच्छा था. एक लम्हा जैसे जब ठहर गया था. ये वैसा ही था जैसे बहुत पहले हुआ करता था...लिखने पर मन का शांत हो जाना.
कीबोर्ड पर लिखना और फाउन्टेन पेन से लिखने का अंतर तब समझ आया...सोच रही हूँ आपसे भी बाँट लूँ. कीबोर्ड पर लिखने की गति बेहद तेज़ होती है...लगभग सोचने की गति इतनी ही या उससे थोड़ी कम. मैं यहाँ अपनी बात कर रही हूँ...जितनी देर में एक वाक्य या एक सोच उभरती है उसी गति से हम उसे लिख पाते हैं. तो अगर मन अशांत है तो कई विचार आयेंगे और आप लगभग उन सभी विचारों को लिख पायेंगे बिना मनन किये. ये वैसे ही होता है जैसे बिना सोचे बोलना...जैसा कि मैं अक्सर करती हूँ...ठेठ हिंदी में कहें तो इसे 'जो मन में आये बकना'. ब्लॉग लिखना मेरे लिए अक्सर ऐसा ही है. अक्सर पोस्ट्स यूँ ही लिखती हूँ...और पिछले कुछ सालों से कागज़ पर लिखना बहुत कम हो गया है. मैं यहाँ निजी लेखन की बात कर रही हूँ...ब्लॉग होने के बाद से डायरी में लिखना, या कहीं लिखना कम हो गया था. बंद नहीं पर नाम मात्र को ही था.
कुछ दिन पहले एक बेहद खूबसूरत फाउन्टेन पेन ख़रीदा था. कुछ दिन बाद कैटरिज मिल गए जिससे कलम में इंक भरने की समस्या न निदान हो गया. ये पेन बहुत ही अच्छा लिखता है. मैंने कई बार पेन से लिखने की कोशिश भी की थी पर कोई पेन ऐसा मिला ही नहीं था जिससे लिखने में मज़ा आये. पेन के बाद दो तीन अच्छी कॉपी भी खरीदी...हालाँकि घर में अनगिन कापियों की भरमार है पर मेरी आदत है नया कुछ लिखना शुरू करुँगी तो नयी कॉपी में करुँगी..पुरानी में फालतू काम किया करती हूँ.
पेन अच्छा आया तो हर कुछ दिन पर लिखना भी शुरू हुआ...चिट्ठियां लिखी, कहानियां लिखी और कुछ बिना प्रारूप के भी लिखा. फाउन्टेन पेन से लिखना एकाग्र करता है. पूरे मन से एक एक शब्द सोचते हुए लिखना क्यूंकि लिखे हुए को काटना पसंद नहीं है तो एक बार में एक पूरा वाक्य लिखा जाने तक कुछ और नहीं सोचना...फिर कलम के चलने में अपना सौंदर्य होता है. कुशल तैराक सी कलम की निब सफ़ेद कागज़ पर फिसलती जाती है...और मैं कुछ खोयी सी कभी उसकी खूबसूरती देखती कभी एक शब्द पर अपना ध्यान टिकाती...फाउन्टेन पेन धीमा लिखता है, जेल पेन या बॉल पेन के मुकाबले. तो हर शब्द लिखने के साथ मन रमता जाता है...कभी लिखे हुए के झुकाव/कोण को देखती कभी पूरे पन्ने पर बिखर कर भी सिमटते अपने वजूद को...हर वाक्य जैसे सबूत होता जाता है कुछ होने का. लिखने के बाद कम्प्यूटर के जैसा डिलीट बटन नहों होता उसमें इसलिए गलतियाँ करने की गुंजाईश कम करती हूँ.
कागज़ पर निब वाली कलम से लिखना यानी पूरे एकाग्रचित्त होकर किसी ख्याल को उतारना...ऐसा करना सुकून देता है...सब शांत होता जाता है...अंग्रेजी में एक शब्द है - Catharsis मन के शब्दों को उल्था करना जैसा कुछ होता है. लिखना फिर से मेरे लिए खूबसूरत और दिलकश हो गया है.
आपको यकीन नहीं होता? कुछ दिन फाउन्टेन पेन से लिख कर देखिये...कुछ खास खोएंगे नहीं ऐसा कर के. दोस्त आपके भी होंगे, चिट्ठियां लिखिए.
आपके शहर में लाल डिब्बा बचा है या नहीं?