11 February, 2010
आधा दिन और तीन जिंदगियाँ
एक हलकी नीली शाम, बादलों के कुछ टुकड़े
आधे दिन में दो जिंदगियां पढ़ी
"रसीदी टिकट" और "सूरज का सातवाँ घोडा"
कुछ वाक्य बादलों की तरह आसमान में उड़ रहे थे
और मैं एक सरफिरे कवि से बात कर रही थी
जिसे शब्दों को सुघड़ बनाना नहीं आता
वो अगर चित्र बनाता तो यक़ीनन
उसके कपड़े भी उसके कैनवास का हिस्सा होते
एक ही दिन मंटो की १९ कहानियां पढ़ीं
उसे बताया तो उसने पूछा, कैसी लगी
कोई उसे समझाए कि कैसे पढ़ सकता है कोई
लगातार उन्नीस खराब कहानियाँ
शायद उसे लगता होगा वैसे ही
जैसे इस हाद्सातों भरी जिंदगी में
एक कवि जिन्दा रहता है
कहता है "बोलती हो तो लगता है कि जिन्दा हो"
नहीं जानती तो सोचती
कि किस मिट्टी का बना है वो
ऐसी तपी हुयी कवितायेँ लिखता है
पढ़ने में आंच आती है
शायद ऐसी मिट्टी बिहार की ही हो सकती है
गंगाजल से सनी, जिंदगी की भट्ठी में झोंकी गयी
मूरत की भी जबान सलामत और तेज
जिसके लिए सत्य का सुन्दर होना अनिवार्य नहीं
कमरे में जलती तीन मोमबत्तियां
सांझ दिए गए धूप की महक
डूबे हुए सूरज का थोड़ा सा टुकड़ा
और राहत की साँस कि "सोच को मरने नहीं दिया जाएगा "
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कमरे में जलती तीन मोमबत्तियां
ReplyDeleteसांझ दिए गए धूप की महक
डूबे हुए सूरज का थोड़ा सा टुकड़ा
और राहत की सांस कि "सोच को मरने नहीं दिया जाएगा "
---बहुत ही खुबसूरत रचना
असाधारण शक्ति का पद्य, बुनावट की सरलता और रेखाचित्रनुमा वक्तव्य सयास बांध लेते हैं, कुतूहल पैदा करते हैं। आपका सत्य से साक्षात्कार दिलचस्प है। रचना दृष्टि की व्यापकता के चलते हर वर्ग में लोकप्रिय होगी।
ReplyDeleteशब्दों और भावनाओं का एक बेहतरीन ताल मेल...सुंदर रचना..
ReplyDeleteसोच को सच में मरने नहीं दिया जायेगा.१९ कहानिया खराब सही पर जाया नहीं गयी,
ReplyDeleteइक कविता की कोपल फूटी तो सही.
Hi nice article
ReplyDeleteवाह .... रसीदी टिकट की ज़िंदगी पूरे फलक पर फैली हुई है...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteऐसी तपी हुयी कवितायेँ लिखता है
ReplyDeleteपढ़ने में आंच आती है
...यह पढ़ कर तो दुष्यत कुमार याद आये
"मेरे सीने में ना सही तेरे सीने में सही
कहीं भी हो आग लेकिन आग जलनी चाहिए"
इसी पर एक और...
"सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी खवाहिश है की सूरत बदलनी चाहिए"
ये जो लिखा है- चौथी मोमबत्ती है
ReplyDelete..
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क्या अब मैं अपना जन्म सार्थकता की ट्रैक पर मान सकता हूँ ? समस्या यह है कि तुम्हारी दृष्टि उत्तम है.... जरा समझाओ तो क्या ये समस्या है ?
कोई पन्ना .कोई ख्याल जाया नहीं जाता....अगर सफ्हे पर ना भी आये .....तो जेहन के किसी गली कूंचे में पड़ा रहता है .....
ReplyDeleteमैं इधर बैठा गहरी साँस ले रहा हूँ और सोच रहा हूँ कि क्या लिखूं टिपण्णी में .
ReplyDeleteतुम और तुम्हारे शब्द पल - पल निखर रहे हैं ..
ReplyDeleteसच!
"बोलती हो तो लगता है कि जिन्दा हो"
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 13.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
shaanadaae rachanaa
ReplyDeletehttp://sharatkenaareecharitra.blogspot.com/
kavi jab chitr banata hai to uska canvas pathakon ka man hota hai jispar bikher deta hai wo dher sare rang, jindgi ke rang, mahsoos kie rang. yakinan soch ko marne nahi dia jayega ! behad khoobsoorat kavita aur shaandaar bunavat. roman me likhne ke lie muaafi chaahunga mobile par transliteration nahi hai na
ReplyDeletejeevant ..adhbhut ...aur aascharyajanak roop se SATYA !!
ReplyDeletebolti rahna hume bhi ahsaas rahega ki zinda ho.... :)
ReplyDeletebahut hi pyari rachna..
वाकई अच्छी कविता
ReplyDeleteकमरे में जलती तीन मोमबत्तियां
ReplyDeleteसांझ दिए गए धूप की महक
डूबे हुए सूरज का थोड़ा सा टुकड़ा
और राहत की साँस कि "सोच को मरने नहीं दिया जाएगा "
Bahut sundar panktiyan!
sorry to say par mujhe kisi v angle se laga hi nhi ki ye kavita hai..
ReplyDeleteye kavita ki koi nayi vidha to nhi..?
ar iske arth to kuchh samajh me hi nhi ate hain..
बहुत खूबसूरत!
ReplyDeleteकविता सुन्दर और मर्मस्पर्शी है ।
ReplyDeleteअच्छा तो ये बात है..
ReplyDeleteThanks for sharing this poem in buzz... :-)
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