खत जिनके जवाब आने थे, मैंने लिखे नहीं...जिनसे बिछड़ना था उनसे मिलते रहे...तुम्हारे शहर में गिरवी रखा था खुद को कि जब्त हो कर भी शायद तुमसे मिलता रहूँ...
इक अजनबी शहर में शाम गुजारते हुए..आज भी समझ नहीं आता कि धोखा किसने दिया...शहर ने...जिंदगी ने...
या तुमने.
कौन किस पर, कौन पागल,
ReplyDeleteसूर्य किरणें और बादल,
एक तपता, एक छिपता,
एक ऊर्जा, एक आँचल।
मुई जिंदगी को कित्ते हिसाब चुकाने है !
ReplyDeleteब्लॉग खोलते ही आपका मैं तो दो मिनट तक बस ब्लॉग का टेम्पलेट और हेडर फोटो देखते रह गया...बेहद खूबसूरत..आवसम :)
ReplyDeleteबाकी इस पोस्ट पे इतना ही,
पढता हूँ बाकी के कुछ पोस्ट्स भी..:)
Na jane ham kyonkar itne dhoke kha jate hain?
ReplyDeleteadbhut ...!!jeevan ki kitaab ..bahut mushkil hai ....!!
ReplyDeleteक़तरे में दरिया होता है
ReplyDeleteदरिया भी प्यासा होता है
मैं होता हूं वो होता है
बाक़ी सब धोखा होता है
तेरे अंदाजों का कायल कौन न हो
ReplyDeleteपागल बनाते हैं, अफसोस भी जताते हैं
.बेहद खूबसूरत..
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