दो दिन पहले न्यूयॉर्क गयी थी। कुछ यूँ कि एक अधूरी नॉवल अटकी पड़ी है और कुछ ऐसे ही क़िस्से कि जिन्हें कोई ठहार नहीं मिलता। गयी थी तो ठीक थी मालूम नहीं था कि क्यूँ गयी हूँ, लेकिन लौटी हूँ तो मालूम है कि क्यूँ गयी थी।
मुराकामी के लिखना शुरू करने के बारे में एक घटना का ज़िक्र आता है। अंग्रेज़ी के शब्द, 'epiphany' के साथ। मुराकामी एक बार कोई बेस्बॉल मैच देखने गए थे। नोर्मल सा दिन था। उनकी उम्र उनतीस साल थी। ठीक प्लेयर ने एक बॉल को हिट किया, वो क्रैक पूरे म्यूज़ीयम में गूँज गया और ठीक उसी लम्हे मुराकामी के हृदय में इच्छा जागी, 'मैं एक नॉवल लिख सकता हूँ'। वे उस रात घर जाने के पहले काग़ज़ और कलम ख़रीद के ले गए, और इसके बाद उन्होंने कई नॉवल लिखे।
मैं न्यू यॉर्क से ह्यूस्टन लौटने के लिए ट्रेन में बैठी थी कि अचानक से कई सारे दृश्य मौंटाज़ बनाने लगे। कितना सारा कुछ ख़ुद में जुड़ने और खुलने लगा और मुझे महसूस हुआ। मैं न्यू यॉर्क अपने अटके हुए नॉवल के लिए एक नया शहर तलाशने गयी थी। कि लिखने के लिए बेस मटीरीयल बहुत सारा कल्पना से आता है लेकिन कल्पना के शहरों में सड़कों के नाम असली होते हैं।
न्यू यॉर्क की सबसे कमाल की याद एक थरथराहट है। जैसे किसी के सीने पर हाथ रख कर उसकी तेज़ धड़कन को सुनना। न्यू यॉर्क का सबवे सिस्टम बहुत बहुत साल पुराना है। मेन शहर के ठीक कुछ फ़ीट नीचे अंडर्ग्राउंड पटरियों का जाल बिछा है जहाँ ट्रेनें आती जाती रहती हैं। मुझे ये मालूम नहीं था और मैं टाइम्ज़ स्क्वेयर पर चल रही थी कि सड़क के नीचे थरथराहट महसूस हुयी। ज़मीन के नीचे चलती ट्रेन की रफ़्तार को सड़क पर महसूस करना एक कमाल का अहसास था। नब्ज़ पकड़ कर ख़ून की रफ़्तार देखने जैसा। एकदम अलहदा। मैंने ऐसा कुछ कभी महसूस नहीं किया था। टाइम्ज़ स्क्वेयर पर ही ट्रेन की थरथराहट को सड़क पर महसूसने से लगा, कि ये न्यू यॉर्क का दिल है और ये कुछ यूँ धड़कता है। रात के बारह बजे वहाँ अकेली गयी थी। हज़ारों नीआन लाइट्स में दुनिया के कैपिटलिस्ट शहर का मोलतोल देखने। अपना हिसाब लगा कर। कि म्यूज़ीयम देखने हैं। पेंटिंग्स के रंग देखने हैं। देखना है कि शहर में क्या कुछ बिकता है और क्या कुछ ख़रीदा जा सकता है...इश्क़ इतना लॉजिकल थोड़े होता है। वो तो बस हो जाता है।
मुहब्बत का यक़ीन दिल के तेज़ धड़कने से दिलाया जा सकता है ख़ुद को। या कि दिल के रुक जाने से ही। वो जो बहुत सारे " I ❤️ NY " के टीशर्ट या भतेरी चीज़ें बिकती हैं, वो वाक़ई इसलिए कि इस शहर को आप पसंद नहीं कर सकते, इश्क़ कर सकते हैं इससे बस। बेवजह। छोटी छोटी चीज़ों में सुख तलाशते हुए।
दिल्ली मेरी जान, नाराज़ मत होना। बहुत साल बाद कोई शहर यूँ पसंद आया है। साँस लेने की रफ़्तार में तेज़ भागता। और ठहर जाता। याद में।
किसी इन्फ़िनिट लूप में। हमेशा।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-09-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2741 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद