30 January, 2009

बेतरतीब ख्याल

मुझे अँधेरा पेंट करना है, रौशनी तो अब तक कितने लोगो ने पेंट की है, कितने मौसमों की तरह...सूर्यास्त और चाँद रातों की तरह...

तुम ये क्यों नहीं कहती की मुझे खुशबू पेंट करनी है?

मैं क्यों कहूं और तुम मुझे क्यूँ बता रहे हो?

और तुम शोर पेंट क्यों नहीं करती?

जब मैं कह रही हूँ की मुझे क्या पेंट करना है तो तुम ये बाकी नाम गिनने की कोशिश क्यों कर रहे हो? तुम मेरी तरफ़ हो या अंधेरे की तरफ़...

मैं पेंटिंग हूँ, मुझे किसी की तरफ़ होने की क्या जरूरत है।

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क्या लेखक का कुछ भी अपना नहीं होता? इतना अपना की उसे किसी के साथ बांटने की इच्छा न हो ? जब तक ख्यालों को शब्द नहीं मिले हैं वह लेखक के हैं। शब्द क्या हैं? एक समाज से मान्य अर्थ की पुष्टि के यंत्र ...शब्दों से परे जो सोच है वही सत्य है। होना क्या है...existence?

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वो कौन से लोग होते hain जो माचिस की डिब्बियों पर साइन करते हैं, या १० रुपये के नोट पर अपना नाम और नम्बर छोड़ देते हैं।

मैं भी किसी पत्थर पर तुम्हारा नाम लिखना चाहती थी, बताओ न अगर मैंने लिखा होता तो क्या तुम पढ़ते? और अगर तुम पढ़ते तो क्या तुम्हें मालूम होता कि मैंने लिखा है?

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कल रात ऐसे ही कागज पर कलम घिस रही थी...बहुत दिन बाद कलम पकड़ी थी, अच्छा लग रहा था लिखना, हालाँकि लिखा हुआ खास पसंद नहीं आया. ऐसे कि बेतरतीब ख्यालों के टुकड़े हैं. कभी कभी यूँ ही ख्याल समेटना अच्छा लगता है.
PS: आज वेबदुनिया पर एक आर्टिकल आई है मेरे बारे में...आप उसे यहाँ पढ़ सकते हैं

16 comments:

  1. क्या बात है? आज तो बहुत शानदार शब्द सजाये हैं लेखन मे. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. आपका ख़याल तो बहुत खूबसूरत है ..........आपका लेख मुझे बहुत पसंद आया

    अनिल कान्त
    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  3. वाकई शब्दो से बहुत बढिया खेलती हैं आप।अद्भुत शब्द संसार्।

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  4. पूजा को पढ़ पाना कठिन है. यही हमने लिख दिया है उस ब्लॉग चर्चा में इस पोस्ट का तो जवाब इल्ले. आभार.

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  5. अप्रत्यक्ष प्रेम एवं अप्रत्यक्ष दुनिया का अच्छा चित्रण.

    वो कौन से लोग होते हैं जो माचिस की डिब्बियों पर साइन करते हैं, या १० रुपये के नोट पर अपना नाम और नम्बर छोड़ देते हैं।

    मैं भी किसी पत्थर पर तुम्हारा नाम लिखना चाहती थी, बताओ न अगर मैंने लिखा होता तो क्या तुम पढ़ते? और अगर तुम पढ़ते तो क्या तुम्हें मालूम होता कि मैंने लिखा है?

    इन शब्दों को बार-बार पढने का मन करता है.

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  6. बेतरतीब बिखरे इन खयालों को इतने खूब्सूरत अल्फ़ाजों में बिठाना कि उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़

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  7. आपका नज़रिया और विचारों की अभिव्यक्ति में सदैव साम्य रहता है, शायद इसीलिए आपके आलेख और पद्य सभी पठनीय होते हैं पूजा जी .
    बधाई.
    - विजय

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  8. बेतरतीब ख्‍यालों को भी इतने कायदे से रखा है....दिए गए लिंक पर जा रही हूं।

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  9. भाव और विचार के श्रेष्ठ समन्वय से अभिव्यक्ति प्रखर हो गई है । विषय का विवेचन अच्छा किया है । भाषिक पक्ष भी बेहतर है । बहुत अच्छा लिखा है आपने ।-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  10. अक्सर लोगों की जान एक पोस्ट लिखने में ही हलकान होती है, और तुम तो चार पोस्टों की एक पोस्ट लिख दी हो..

    अरे यार एक बात कहनी थी, मैं अपना डाक पता तुम्हें भेज दे रहा हूं.. जल्दी से अपना ऑटोग्राफ भेज दो.. क्या पता कल को बहुत बड़ी आदमी हो जाओ तो याद ही ना रहे की कौन प्रशान्त, कैसा प्रशान्त.. ;) वेब दुनिया में छपे लेख को पढ़कर बहुत खुशी हुई.. तुम्हें उसकी बधाई देकर फार्मैलिटी नहीं करना चाहता हूं.. मेरी शुभकामनायें हमेशा तुम्हारे साथ है.. :)

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  11. मैं क्या बोलो खास कहूँगा …
    कुछ बड़ी प्यारी टिप्पणियाँ आ चुकी हैं।
    और आपकी यह पोस्ट तो मनहर है ।

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  12. लीजिये अब फ़िर बिल बढेगा मोबाइल का.....

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  13. आज तो आप बता ही दें कि आप कैसे शब्दों से खेलती है? कुछ हमें भी सिखा दीजिए। अनुराग जी मोबाईल का बिल बढा रहे। प्रशांत जी आपसे आटोग्राफ ले रहे है और हम आपकी पुरानी पोस्टों को दुबारा पढने जा रहे है। क्योंकि हमारी तो ऐसे लिखने वालों से मिलने की होती और मिलने के लिए अनुराग जी ने मना किया हुआ है अपनी किसी पोस्ट में।

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  14. जब तक ख्यालों को लफ्ज़ नही मिलते,
    वो लेखक के हैं ......
    वाह ! आप के इस दावे की ताईद करते हुए
    फख्र महसूस करता हूँ .
    आपका लेखन, आपकी संवेदनाएं, आपकी परवाज़
    सब कुछ क़ाबिले-ज़िक्र है ....
    बधाई स्वीकारें . . . . .
    ---मुफलिस---

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  15. bahut sundar post, aapka webduniya wala article bhi padha woh bhi ravindra ji ne bahut acha likha hai..

    I also planng to write a blog on you.,. lekin aaapne hi jaise likha hai na ki khas chiz ko likhne ke liye khas khyal chahiye.. :-) daily socha hu jab khoob sara time hoga to aapke barein mein likhuga.. AAp bhi shayad kahbi kabhi nahi jaan pati ki aap kitna khoobsurat likhti hai.. ek ek shabd bhawnao se bhara hua pyara sa.. sach sa.. sach ke behad kareeb.. bahut hi khoobsurat..

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