कोई तो बात होगी तुममें
जो तुमसे मिलकर...
जिंदगी मुकम्मल लगने लगी
हाशिये पर बिखरे पड़े अल्फाज़
खतों की मानिंद सुकून देने लगे
जिस रोज़ तुमने इन पन्नो को हाथ में उठाया
वो आधी नींद की बेहोशी में खटके से उठना
रुक गया है...
मैं पुरसुकून ख्वाबों के आगोश में ही जागती हूँ
वो लब जिनपर आंसू थामे रहते थे
तेरे नाम की सरगोशी से
मुस्कुराने लगे हैं...
तुममें ऐसी कितनी बातें हैं जान...
कि तुमसे मिलकर
जिंदगी मुकम्मल लगने लगी है।
तुममें ऐसी कितनी बातें हैं जान...
ReplyDeleteकि तुमसे मिलकर
जिंदगी मुकम्मल लगने लगी है।
sunder rachana
वो लब जिनपर आंसू थामे रहते थे
ReplyDeleteतेरे नाम की सरगोशी से
मुस्कुराने लगे हैं...
बेहतरीन रचना के लिए बधाई
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
वो आधी नींद की बेहोशी में खटके से उठना
ReplyDeleteरुक गया है...
मैं पुरसुकून ख्वाबों के आगोश में ही जागती हूँ
बहुत सुंदर तरीके से संजोया है शब्दों को अच्छी कविता
पूजा जी तुस्सी छा गए ...इतना शब्द संचय कहाँ से .....तारीफ के लिए कुछ शब्द उधार दे दीजिये न
ReplyDeleteअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
"तुममें ऐसी कितनी बातें हैं जान.../कि तुमसे मिलकर/जिंदगी मुकम्मल लगने लगी..."
ReplyDeleteआपके शब्दों का भावों के साथ इतना बढ़िया सामंजस्य बैठता है कि मैं कई बार ठगा सा रह जाता हूं...और उस अदने से शेर की इतनी तारीफ़!!!!!
प्रथम प्रेम का सजीव वर्णन । सुंदर कविता ।
ReplyDeleteप्यार से भरी, बताशे सी मीठी रचना लिखी है आपने। अद्भुत।
ReplyDeletekhubsurat ehsaas aur anubhuti sundar.
ReplyDeleteमैं पुरसुकून ख्वाबों के आगोश में ही जागती हूँ
ReplyDelete........
bahut bhawbheene ehsaas
Very very intense emotions....
ReplyDeleteबहुत लाजवाब. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बेमिसाल !
ReplyDeleteख़ास पुजाइश अंदाज !
लग रहा है जैसे चिट्ठी लिख गयी पहली-पहली। शब्दों की कशिश ने लुभाया बहुत ।
ReplyDeleteवो आधी नींद की बेहोशी में खटके से उठना
ReplyDeleteरुक गया है...
मैं पुरसुकून ख्वाबों के आगोश में ही जागती हूँ
sabhi shabd moti ke saman aur feelngs se bhare hue.. mujhe woh kavitaye ya shabd bahut pasand hai jispe bhawnaye bhari ho :-) isiliye aap aur Anurag sir aur Chhiyaishi mere favorite blogger ho gaye hai.. keep writing
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ऐसा लगता है जैसे किसी ने कानों में मिश्री घोल दी हो. लाजवाब रचना है.
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