I believe freedom is my right to make a few mistakes of my own and learn from them।
मंगलौर में जो हुआ, शर्मनाक है...अख़बारों ने चीख चीख कर कहा ये तालिबान का राज है वगैरह वगैरह...और इतने हो हंगामे के बाद कुछ गिरफ्तारियां हुयी हैं।
हम कहने को तो आजाद हवा में साँस लेते हैं, मगर क्या ये सच में आजादी है? जरा सा भी लीक से अलग हट कर चलिए तो दिखेगा कि सारी दुनिया विरोध में खड़ी है हर कोशिश की जायेगी आपको रास्ते पर लाने की, खास तौर से अगर आप एक महिला हैं तो।
एक लड़की पर हज़ार बंदिशें पहले तो उसके परिवार के तरफ़ से लगती हैं, उसके बाद खड़ा हो जाता है समाज और इन सब बंधनों को ठुकरा के अगर कोई अपने हिसाब से जीना चाहता है तो ये स्वयंसिद्ध ठेकेदार हैं जो जिम्मेदारी उठा लेते हैं। नैतिकता और सभ्यता के नाम पर गुंडागर्दी होती है सरेआम...और ऐसे माहौल में हम कुछ महीनो में वोट देने वाले हैं।
आज सुबह पेपर में ख़बर आई कि एक बच्चे कि बलि दी जाने वाली थी पर ऍन मौके पर वहां से गुजरते कुछ लोगो ने आवाजें सुनी और उसे बचा लिया गया...और बलि भी क्यों, गड़ा हुआ खजाना पाने के लिए! कभी कभी तो लगता है जाने हम किस सदी में जी रहे हैं. आज भी कई पुरानी मान्यताएं हैं जिनका कोई आधार नहीं है, सिर्फ़ इसलिए जीवित है कि सवाल उठाने की जहमत कोई नहीं करता.
मुझे आज एक आर्टिकल बड़ी पसंद आई...उसमें सिर्फ़ सवाल पूछे गए थे...सरकार से, पुलिस से, और उस संगठन से...जानती हूँ इन सवालों का जवाब कभी नहीं आएगा फ़िर भी देख कर सुकून मिलता है कि कोई सवाल तो कर रहा है। हमारे लिए जरूरी है कि जो जैसा होता है उसे वैसे ही स्वीकारें नहीं, सवाल हमारी असहमति का पहला कदम है.
पर हम बच्चो से तक इसलिए चिढ जाते हैं कि वो सवाल बहुत करते हैं...क्यों कैसे किसलिए कब तक ... RTI एक्ट एक ऐसे ही सवाल करने वाले लोगों को राहत देता है। कुछ सवाल बाकियों से और एक हमारा ख़ुद से...
हम इस बदलाव के लिए क्या कर रहे हैं?
सच तो यही है कि जिस तरह से भारत में पुराने रीति रिवाज , धर्म - जाती से जुड़े अंधविश्वास ...और इसी तर्ज़ पर राजनीति होती रहेगी और जनता उनकी सुनती रहेगी तब तक ऐसा ही होता रहेगा ...क्योंकि वो गुंडे होते तो इन नेताओं कि पार्टी के हैं ....जिस दिन ऐसी पार्टी , ऐसे नेताओं को आभास हो जाएगा कि देश कि जनता इन सब से बहुत ऊपर उठ चुकी है ...हमारी अब दाल नही गलेगी ...तो वो ठीक से काम शुरू कर देंगे ...नही तो तब तक अपनी दूकान चलने के लिए वो इसी तरह कि घटनाएं और कारनामे करते रहेंगे .....वैलेंटाइन डे , नया साल...ऐसी कई किस्से रहते हैं जब इनकी ये घटनाएं होती रहती हैं ....
ReplyDeleteजब हम लोग सबकी स्वतंत्रता का सही मौलिक अर्थ समझ जायेंगे और स्त्री को वो दर्जा दे सकेंगे कि वो स्वतन्त्रता पूर्वक अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सके ...तब ऐसी घटनाएं नही होंगी ...बस देर है तो सच्चाई को कबूल करने कि समझने कि और मानसिक रूप से अमल में लाने की ....
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
अच्छा आलेख एवं विचारणीय प्रश्न...जब हम इस सवाल का जबाब पा लेंगे तभी बदलाव की दिशा में कुछ बात बनेगी.
ReplyDeleteजायज सवाल हैं!
ReplyDeleteसवाल का जवाब यह है कि हम इस विषय मे कुछ नही कर रहे हैं. जब समस्या खडी होती है तब हम थोडे दिन हाय-हल्ला मचाते है. तब तक दुसरी समस्या खडी हो जाती है तब पहली को भूल कर उसके पीछे लग जाते हैं.
ReplyDeleteयह गोल गोल घूमना हमारी शाश्वत परमपरा रही है. इसलिये हम कुछ करेंगे भी नही और बोलेंगे भी नही.
रामराम.
ताऊ रामपुरिया जी ने सही कहा है "यह गोल गोल घूमना हमारी शाश्वत परमपरा रही है. इसलिये हम कुछ करेंगे भी नही और बोलेंगे भी नही." क्यो की हम ...........????
ReplyDeletesach.. jo gireftar hue the woh kya pata ab tak choot bhi gaye hoge.. hum kuch din is ghatna ke bar main sochege shok manayge aur phir mahesha ki tarah bhool jayege :-(..
ReplyDeleteशोर मचना भी विरोध का हिस्सा है ...
ReplyDeleteवैसे साडे तीन घंटे का लोक -अप या कुछ महीने की कैद वो भी जमानती ...मुख्यमंत्री का ये कहना हम विचार करेगे ..५ अलग अलग ऍफ़ आई आर .के बावजूद पुलिस की खामोशी.शायद कानून की अक्षमता है ओर सत्ता में साहस की कमी ..वरना जर्मन महिला से हुए बलात्कार के दोषियों की सजा सामान्य कोर्ट के तहत हुई है ,किस फास्ट ट्रेक कोर्ट से नही ...इस देश में टी एन शेषण से पहले किसे मालूम था की चुनाव आयोग के पास इतनी ताकत है .
सवाल या जवाब जो भी हो क्या हमने कभी सोचा है की हम किससे पूछ रहे हैं और किस को दे रहे हैं | जो मंगलौर में हुआ वो पहली बार ऐसा नही हुआ है , हर जगह किसी और रूप में किसी और शक्ल में ये होता रहता है | बस उन्हें तो बहाना चाहिए स्त्री जाति का अपमान करने के लिए |
ReplyDeleteसवाल ये नही है की हम क्या कर रहे हैं , ऐसा क्यूँ कर रहे हैं ?सवाल यह है की हर बार स्त्री जाति को ही क्यूँ भुगतना पड़ता है | नैतिकता का पाठ उन्हें ही क्यूँ पिलाया जाता है | यहाँ हम एक तरफ़ कहते हैं की बालक-बालिका सब समान हैं | उन्हें भी उतना ही हक़ है जितना एक पुरूष को , फिर ये भेद भाव कैसा ?
चाहे वो दिल्ली हो , मंगलौर हो हर जगह जब भी इस पुरूष प्रधान संमाज को मौका मिलता है वो अपनी आधिपत्य दिखाने से नही चुकते हैं |
और वजह साफ़ है , अभी भी हम स्त्री जाति को अबला समझते हैं , हम समझते हैं की उनपर जो थोप दिया जायेगा वो उन्हें आराम से स्वीकार कर लेंगी | तो मैं कहना चाहूँगा की ये स्त्री जाति का फ़र्ज़ है , कर्तव्य है की वो विरोध करे ऐसी घटिया , दकयानुसी बातों का | उठ खड़े हों ऐसे ओछी हरकत करने वालो के ख़िलाफ़ | दिखा दे आप उन्हें आप कमजोर नही है और ना ही आप ऐसी चंद मुट्ठी भर लोगो के डर से डरने वाली हैं |
जी हाँ सिर्फ़ मुट्ठी भर लोग हे हैं जिन्होंने ठेका लिया हुआ है ऐसे कामो का | बस जरुरत है आपके विरोध का , अगर वो आप पर हाथ उठाते हैं तो आप उनपर लात उठाये | किसी को इतनी स्वतंत्रता ना दे की वो आपकी जीने की राह तय करे |
Nice Blog..keep it up.
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