बहुत गहरा कह गई आप। वैसे मुझे भी डाकिया का इंतजार रहता है। क्योंकि मेरे सर अक्सर मुझे कोई किताब या किसी कार्यक्रम का निमंत्रण भेजते रहते है। वही डाकिया लेकर आता है।
वाकई वक्त के साथ साथ हर चीज, हर बात, हर याद धुंधली होती जाती है पूजा जी .. सिलसिला कम होने लगता है, या तो नई बातें जुड़ती हैं या हम घटते -घटते दूसरी दुनिया में खो जाते हैं. हमने भी कभी लिखा था >>> दिन,महीने,साल क्या,सदियाँ गुजर जाएँ.. हम न भुला पायेंगे,वो आयें या न आयें - विजय तिवारी "किसलय"
Aap jab bhi mere blog pe aakar kuch likhti hai na to aapke shabd ek anoothi khushi se de jaate hai... pata nahi kyn :-) you are master of words with a b'ful heart
इन्तजार मे भी काफ़ी शुकुन रहता है. और इन्तजार बद्स्तूर जारी है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.. चित्र लाजवाब..
रामराम.
देके ख़त मुंह देखता है नामाबर
ReplyDeleteकुछ तो पैगाम-ऐ-ज़बानी और है...
आज के दौर में ,जहाँ सबकुछ ख़त्म हो गया,
ReplyDeleteवहां आपका इंतज़ार मुझे सुकून दे गया..........
कोई तो मेरी तरह इंतज़ार में है !
इन्तेजार का अपना ही मजा है|
ReplyDeletemain ab bhi intazaar karta hun is line pe main bhi hun........
ReplyDeletearsh
बहुत गहरा रचती हो...कम शब्दों में.
ReplyDeleteइंतजार की फितरत ही यही है. यहाँ कोई लॉजिक नही चलता
ReplyDeleteबस जो दिल को लग रहा है उसी का इंतज़ार होता है
बहुत गहरा कह गई आप। वैसे मुझे भी डाकिया का इंतजार रहता है। क्योंकि मेरे सर अक्सर मुझे कोई किताब या किसी कार्यक्रम का निमंत्रण भेजते रहते है। वही डाकिया लेकर आता है।
ReplyDeleteइतने कम शब्दों में इतने भाव कहां से ले कर आती हो?
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !
ReplyDeleteज़ख्म खिलखिला के फूल बन जाएँ
चारा अंदेशा-ए-रफ़ू क्यों हो ?
वाकई वक्त के साथ साथ हर चीज, हर बात, हर याद धुंधली होती जाती है पूजा जी ..
ReplyDeleteसिलसिला कम होने लगता है, या तो नई बातें जुड़ती हैं या हम घटते -घटते दूसरी दुनिया में खो जाते हैं.
हमने भी कभी लिखा था >>>
दिन,महीने,साल क्या,सदियाँ गुजर जाएँ..
हम न भुला पायेंगे,वो आयें या न आयें
- विजय तिवारी "किसलय"
इतनी छोटी कविता में इतना अच्छा भाव और उसी के अनुरूप चित्र भी...वाह !!
ReplyDeleteAchchhi kavita....
ReplyDeleteIntajar tere aane , tujha ko pane ka , intjar..intjar...intjar...
सुन्दर प्रविष्टि. ऐसा लगता है, अपनी सूक्ष्मता में सारा भाव समेटे यह प्रविष्टि पोस्टकार्ड तो नहीं!
ReplyDeleteकुछ खतो का इंतेज़ार हमेशा रहता है... कुछ रिश्ते अपने आप जुड़ जाते है..
ReplyDeleteदिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल ए-नादाँ-न धड़क,
ReplyDeleteकोई खत ले के पड़ोसी के घर आया होगा।
itne din aabd aayi aap aur itne kam shabdo mein itni sundar bat kah kar chali gayi aur hume phir se ho gaya aapki agali post ka intezaar..
ReplyDeleteइतने कम शब्दों में बहुत गहरा कह गई आप. वैसे भी इस जमाने में डाकिया कहा है अब तो इ-मेल और कोरिएर का ज़माना है.
ReplyDeleteपैगाम मिलता है अब दूसरे कासिदो से
ReplyDeleteकी खतो-ख्वात का अब जमाना ना रहा
bahut gahari baat
ReplyDeleteइंतज़ार अब भी बदस्तूर जारी है...
ReplyDeleteचाँद शब्दों से बोलती गहरी बात .....................
इंतज़ार अब भी बदस्तूर जारी है...
ReplyDeleteअब न अधिक डाकिया दिखता है न ही खतों खतूत का वो सिलसिला .अच्छा लिखा है आपने
dekhen men choten lage
ReplyDeleteghaav kare gambhir.....
4 line men itna kuch keh diya...
Aap jab bhi mere blog pe aakar kuch likhti hai na to aapke shabd ek anoothi khushi se de jaate hai... pata nahi kyn :-) you are master of words with a b'ful heart
ReplyDelete