एक शब्द है
जो माँ से बना है...मायका
सोचती हूँ
जब माँ ही नहीं है
तो मायका भी नहीं
तो क्या छूटेगा?
फ़िर दर्द क्यों
क्या शहर भी कभी मायका हो सकता है?
अगर चंदा मामा हो सकता है
तो...शायद हाँ
कुछ रिश्ते
अजन्मे होते हैं
जैसा उस शहर के साथ
जिसने इस बिन माँ की बच्ची को
सीने से लगाया...
मेरे शहर
तुम मेरे क्या हो?
बहुत सुन्दर यादें. जहां जहां भी मां के साथ समय गुजारा है हर उस जगह मे मां है. यह एहसास कभी नही जाता. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
bahut gehra rishta hai shahar se,wo bhi maa ki tarah hai hume achal meinchupata,bahut marmik sundar bhav saji rachana,badhai
ReplyDeleteकभी कभी गहरा रिश्ता बन जाता है किसी जगह, शहर से, ता उम्र हम उसे याद करते रहते हैं। उस अह्सास को सुन्दर ढंग से पेश करने के लिये बधाई।
ReplyDeleteबहूत सुन्दरता से संजोया है माँ और मायका की परिकल्पना को
ReplyDeleteअति सुंदर
गहरी अनुभूति और संवेदना से परिपूर्ण!
ReplyDelete---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
मायका कभी नहीं छूटता है दोस्त.. चाहे वो एक शहर ही बन कर क्यों ना रह जाये.. किसी चुम्बक की तरह वह शहर आपको जीवन भर खींचता ही रहेगा.. इस आकर्षण में कभी कमी नहीं आने वाली है..
ReplyDeleteमैं लड़की नहीं हूं मगर अपनी मम्मी से बहुत जुड़ा हूं.. उनसे ही मिले अनुभव से कह रहा हूं..
आप ज़ज्बातों को इतनी खूबसूरती से शब्दों में ढालती हैं। कि मेरे जैसा आदमी भावुक हुए बगैर नही रह पाता। और नि:शब्द होकर रह जाता हैं।
ReplyDeleteबचपन जहाँ खेला हो,वो गली वो शहर वो कूचा सभी तो अपने हैं.....
ReplyDeleteयहाँ कौन अजनबी कौन पराया...न जानते हुए भी सब एक दुसरे को जानते हैं...
मायका क्यूँ नही माँ भी हैं और मायका भी वो याद वो प्यार वो आशीर्वाद हमेशा है एहसास कीजिये माँ को अपने ही घर मे पाओगी अपने पास......
और घर छोड़ते हुए भी दुःख होगा...
अक्षय-मन
मायका हमेशा ही कुछ ख़ास होता है......और जहाँ तक बात है माँ की तो मैं जितना कहूँ उतना कम है.....माँ से जुड़ी हर एक बातें , हर एक यादें अपने में पुरी दुनिया समेटी होती हैं |
ReplyDeleteजहाँ हम पले बड़े होते हैं वो जगह कुछ ख़ास तो होता हे है..हमारी बचपन की सारी यादें वहीँ से तो जुड़ी हुई होती है ......एक गहरा रिश्ता सा बन जाता है......और ये एहसास कभी नही जाता है.......
बहुत सुंदर संवेदना पूर्ण
ReplyDeleteकहाँ कहाँ ?
ReplyDeleteफ़िर दर्द क्यों
ReplyDeleteक्या शहर भी कभी मायका हो सकता है?
अगर चंदा मामा हो सकता है
तो...शायद हाँ
बहुत अच्छी कविता। बधाई
मर्मस्पर्शी रचना है,
ReplyDeleteआतंरिक पीड़ा की स्पष्ट झलक दिखाई दे रही है
पंक्तियाँ सुंदर हैं...
"फ़िर दर्द क्यों
क्या शहर भी कभी मायका हो सकता है?
अगर चंदा मामा हो सकता है
तो...शायद हाँ"
आपका
विजय
bahut achchhi kavita likhi hai aapane.
ReplyDeletelikhati rahen.
bahut-bahut badhai.
jahan bachpan ki ameet yaaden ho,jo aankhon me tairta rahta hai,wahi maykaa hai.......maa ki aankhen,saare rishte wahin baste hain dil ke kone me
ReplyDeletebahut bhawpravan rachna,jisme ek masumiyat bhi hai
बात तो सही कही है, लोग चले जायें भी तो शहरों को छोड़ा नही करते
ReplyDeletehar koi comment m yahi likhta h k aachi rahna h.lagta h yaha kisi m critisim nahi pada h.likhe hua ka critical appresiation zarrur hona chaiya.wahi improvement ki gunjiayes rahti h
ReplyDeleteमाँ शब्द ही सर्वोपरी है और इससे ज्यादा क्या हो...
ReplyDeleteबहोत ही बढ़िया लिखा है आपने ढेरो बधाई स्वीकारें ....
अर्श
कुछ रिश्ते
ReplyDeleteअजन्मे होते हैं
जैसा उस शहर के साथ
जिसने इस बिन माँ की बच्ची को
सीने से लगाया...
khoobsurat panktiya...
माँ से मायका होता है पर वह शहर भी अपना सा लगता है जहाँ बचपन गुजरा हो ..बहुत भावपूर्ण लिखा है आपने पूजा
ReplyDeleteसोचती हूँ
ReplyDeleteजब माँ ही नहीं है
तो मायका भी नहीं
तो क्या छूटेगा?..kitna kuch hai in panktiyon me!!
क्या शहर भी कभी मायका हो सकता है?
ReplyDeleteअगर चंदा मामा हो सकता है
तो...शायद हाँ
very sensitive and touching...
apne shaher ki baat hi kuch aur hoti hai ji ....
ReplyDeletebadhi is rachana ke liye
vijay
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कुछ रिश्ते
ReplyDeleteअजन्मे होते हैं
जैसा उस शहर के साथ
जिसने इस बिन माँ की बच्ची को
सीने से लगाया...
bahut pyari kavita hai. yah bilkul sahi hai ki shahar or galiya v apni hoti hain. mayke jitna hi pyar usse chppe& chppe se hota hai.
इस अनूठी सोच और प्रेम को इतने सुंदर ढ़ंग से कविता में उकेरना....भई वाह
ReplyDeleteशायद माँ का महत्त्व बेतिया ही समझ सकती हैं इसीलिए मायका माँ से जुडा है
ReplyDeleteफिर तो शहर ही माँ हुआ ना...........हुआ ना.........??
ReplyDelete"फ़िर दर्द क्यों
ReplyDeleteक्या शहर भी कभी मायका हो सकता है?
अगर चंदा मामा हो सकता है
तो...शायद हाँ"
क्या कहूं इस बात पे ... शब्द शेष रहने ही कहाँ देती हैं आप...
पर आपकी एक सबसे अच्छी बात जो मुझे लगती है की बात चाहे जो भी हो , कितना भी मर्म लिए हुए हो, आप उसके एक उजले कोने से मिलवा ही देती है....ur writings are always full of positivity... :)
isliye kahoongi... zindagi yadi janm leti to shayad bilkul aap si dikhti... :)
humesha yun hi rahiye, yeh dua ahi humari...