कहाँ दरख्वास्त दूँ...
खुदा के पास
मैं एक कतरा आवाज के लिए तरस रही हूँ
ऐसी खामोशियाँ क्यों लिख दी हैं
तकदीर शायद एक पन्ना है
फ़िल्म की तरह नहीं लिखी जाती
इसलिए कोई आवाज नहीं है...
बस एक खामोशी है
ए खुदा
मैं एक आवाज के कतरे के लिए तरस रही हूँ
तुम कब सुनोगे मेरी आवाज़?
"तकदीर शायद एक पन्ना है
ReplyDeleteफ़िल्म की तरह नहीं लिखी जाती
इसलिए कोई आवाज नहीं है..."
shabdon me asar hai, dua kabhi na kabhi kubul jarur hoti hai.
मैं एक आवाज के कतरे के लिए तरस रही हूँ
ReplyDeleteपूजा जी बहोत ही उम्दा सोच का असर ये है के ऐसे शब्द मानसपटल से बहार कागज पे आपने उकेर दिया बहोत ही बढ़िया अंदाजे बयां ..ढेरो बधाई आपको...
अर्श
sunne ki ummeed chod do phir shayad sunayi de jaaye.philosophy.
ReplyDeletenice poem.
हौसले यदि बुलंद हों तो सब कुछ क़दमों के नीचे होता है.
ReplyDeleteयदि आपके हौसले में कमी है तब खुदा भी मदद नहीं करता.
- विजय
अच्छी कविता।
ReplyDeleteतकदीर शायद एक पन्ना है
ReplyDeleteफ़िल्म की तरह नहीं लिखी जाती.........
बहुत सही कहा आपने.............हम बस इस पन्ने के पात्र हैं , जो अपनी अपनी भूमिका निभा रहे हैं....हमारी डोर तो खुदा के हाथ में है , जैसा वो चाहे वैसे घुमाए |
बस यहाँ एक ही चीज़ याद आती है |
कर बुलंदी को बुलंद इतना की
की खुदा भी पूछे बता बन्दे तेरी राजा क्या है ?
अच्छी कविता..
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने!
ReplyDelete!!!! ?? !!!!
ReplyDelete???? !! ????
अरे........अरे.......अरे........खुदा ने आपको आवाज़ दी थी..........मैंने तो सुनी.....सच हाँ.....आप कहाँ थी तब........खैर अब बाद में सही........अभी तो यही कि सारी पंक्तियाँ आपने सजीव सी लिख दीं हैं....सबको जज्ब कर रहा हूँ....आपने अच्छा लिखा है...सच...!!
ReplyDeleteसुनता है खुदा भी दिलों की आवाज़
ReplyDeleteपर दिल का होना जरूरी है...
खुदा भी चाहता है की उसके बन्दे उसे दिल से आवाज़ दें..
खुशी में भी और गम भी.....
तन्हाई में भी और अंजुमन मे भी....
बहुत बेहतरीन लिखा है......
अक्षय-मन
तकदीर शायद एक पन्ना है
ReplyDeleteफ़िल्म की तरह नहीं लिखी जाती
इसलिए कोई आवाज नहीं है...
--सुन्दर अभिव्यक्ति-जरुर जल्द सुनी जायेगी आपकी मौन की आवाज.
:-) bahut din abad aayi aap.. aap unme se hai jinka intezaar karte rahte hai hum ki kab kuch likhe aur hum jakar padh dale sab jaldi se :-)
ReplyDeleteमैं एक कतरा आवाज के लिए तरस रही हूँ
....... b'ful
.अच्छी लिखी है आपने .मकर सक्रांति की शुभ कामनाये ..
ReplyDeleteजिंदगी शायद सबसे बड़ी नियामत है खुदा ने जो दी है हमें.....अपने overload के बावजूद वो देर सवेर तुम्हारी खिड़की पे आता होगा मुझे यकीन है...
ReplyDeleteइत्तिफकान आज सुबह कोई पुरानी खोयी सी डी गाड़ी में मिली रास्ते में जो पहली गजल थी.....सुदर्शन फाकिर की गजल..जिसे जगजीत सिंह से बेहद दिल से गाया है....
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते है .न
जिसको देखा ही नही . उसको खुदा कहते है .
ज़िन्दगी को भी सिला कहते है . कहनेवाले
जीनेवाले तो गुनाहों . की सज़ा कहते है .
फासले उम्र के कुछ और बढ़ा देती है
जाने क्यों लोग उसे फिर भी iदवा कहते है .
चंद मासूम से पत्तो . का लहू है "फ़कीर "
जिसको महबूब के हाथो . की हिना कहते है .
तकदीर शायद एक पन्ना है
ReplyDeleteफ़िल्म की तरह नहीं लिखी जाती
बात तो ठीक है, पर ज़िन्दगी अपने आप में वो दस्तक है जो खामोश नही होती, किसी न किसी आवाज़ में आती ही रहती है हमारे करीब
मैं एक कतरा आवाज के लिए तरस रही हूँ
ReplyDeleteऐसी खामोशियाँ क्यों लिख दी हैं
किसी की याद की इससे गहनतम अभिव्यक्ति शब्दों मे व्यक्त करना मुश्किल है.
बिछडने की टीस अपनी जगह है पर आपने जिस खूबसुरती से इस पीडा को व्यक्त किया है उसके लिये बधाई कबूल किजिये.
रामराम.
मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteमेरे तकनीकि ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं
-----नयी प्रविष्टि
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तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
bahut hi achhi rachna hai......
ReplyDeleteBahut hi prababhshali rachna
ReplyDeletelikhtein rahiye :)
तकदीर शायद एक पन्ना है
ReplyDeleteफ़िल्म की तरह नहीं लिखी जाती
बहुत ही बढ़िया, मन को छू लेने वाली रचना,
वक़्त मिले तो मेरे ब्लॉग (meridayari.blogspot.com) पर भी विजिट करें,
puja. itna gehra kyun? jab bhi s tarah ka kuch padhta hoon to lagta hai ki mujh se is duniya mein aaur bhi hain, upar wala ek hi tarah ki soch ko kai jagha janm deta hai aur jab kabhi wo rubru hote hain to shabd apna mahtav kho dete hain bas soch hi zinda rehti hai.
ReplyDeletespeechlees thoughts
ReplyDeletesach poocho to samajh se pare ..jis bhaav tak sirf likhne vala hi pohach pa raha hai kam s kam mere jaise insan aapke bataye bina vahan tak nahi pohch payen.
bhaav or ahsaas ko chand shabdoN mein tumne piroya hai ni:sandeh kabil-e-tariif hai.
nice post with good words...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है.
ReplyDeleteपढकर एक शेर याद आ गया.
शायर तो याद नहीं कौन है लेकिन गायिका चित्रा सिंह हैं :
मुझको मेरी आवाज़ सुनाई नहीं देती
कैसा ये मेरे ज़ेह्न में इक शोर मचा है
वाह! बहूत खूब!
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