वो शख्स जो अब अजनबी है
जाने कब हाथ छुड़ा कर आगे बढ़ गया
और हम हर मोड़ पर पशोपेश में पड़ जाते हैं
किधर जायें...जाने किधर का रुख किया होगा उसने
वो शख्स अब भी अनजाने चेहरों से झाँकता है
कई बार भीड़ में लगा है कि वोही है
और हम तेज़ी से चल कर उसे करीब से देखना चाहते हैं
मगर वो तो जैसे जिंदगी की तरह...भागता जाता है
किसी रोज मिलेगा तो पूछूंगी उससे
थकते नहीं हो? यूँ भागते भागते
भला मंजिल से भी यूँ पीछा छुड़ाता है कोई!
किसी रोज मिलेगा तो पूछूंगी उससे
ReplyDeleteथकते नहीं हो? यूँ भागते भागते
भला मंजिल से भी यूँ पीछा छुड़ाता है कोई!
b'ful poem
बहुत खूब..पर वो मंजिल ही क्या जो इतनी आसानी से मिल जाये?
ReplyDeleteरामराम.
क्या कहूं,कविता है हकीक़त या फ़िर दोनो,जो भी है दिल से लिखी गई बात है जिसकी तारीफ़ सच्चे दिल से ही हो सकती है।
ReplyDeleteइन दिनों तेजी से लिख रही हो...ठहर कर समझने की कोशिश कर रहा हूँ...ओर दोबारा पढता हूँ....तुम्हारी छाप इसमे दिखाई देती है...
ReplyDeleteकिसी रोज मिलेगा तो पूछूंगी उससे
ReplyDeleteथकते नहीं हो? यूँ भागते भागते
जवाब मिले तो हमें भी बताइयेगा....ये अजनबी जानकार, कैसे रह लेते है, यूँ मंजिलों से दूर.....!
मन को छूती कविता...!
खुशकिस्मत हो कवितए लिख रही हो.. वरना अपने यहा तो मंदी है.. कोई कविता लिख ही नही पाया.. कई दिनो से.. अब सोचता हू लिखना पड़ेगा..
ReplyDeleteआपकी कविताएं पसंद आयीं, कृप्या मेरा ब्लाग भी विजि़ट करें।
ReplyDeleteविप्लव
...
http://www.krantikatoofan.blogspot.com
बहुत अच्छी कविता है
ReplyDeleteगुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
ग़ज़लों के खिलते गुलाब
और हम हर मोड़ पर पशोपेश में पड़ जाते हैं
ReplyDeleteकिधर जायें...जाने किधर का रुख किया होगा उसने
वो शख्स अब भी अनजाने चेहरों से झाँकता है
कई बार भीड़ में लगा है कि वोही है
बहुत बढ़िया ..लगा मेरे दिल की बात तुमने कह दी .बहुत सुंदर
aapki poem mere blog pe :-)
ReplyDeletehttp://rohittripathi.blogspot.com
किसी रोज मिलेगा तो पूछूंगी उससे
ReplyDeleteथकते नहीं हो? यूँ भागते भागते
भला मंजिल से भी यूँ पीछा छुड़ाता है कोई!
sahi ye sawal hamare apne hi lagte hai,wo ajnabi hum se bhagta hai,aapko jawab milehame bhi bata dena,bahut gehre ehsaas nikle hai dil se aaj,bahut achhi lagi aapki kavita badhai
When I read your profile where you have mentioned " I love playing with words..." i said what's great?...
ReplyDeleteBut after reading this poem, I have to admit...liked the poem
Nice work..keep it up..
हर बार की तरह उम्दा लिखा है आपने।
ReplyDeleteकिसी रोज मिलेगा तो पूछूंगी उससे
थकते नहीं हो? यूँ भागते भागते
भला मंजिल से भी यूँ पीछा छुड़ाता है कोई!
वाह क्या बात हैं।
बहुत ही सरल और सुंदर अभिव्यक्ति. 'भला मंजिल से भी यूँ पीछा छुड़ाता है कोई!'. कहाँ तो लोग मंजिल की तलाश में लगे रहते हैं और यहाँ मंजिल ही तलाश रही है. बहुत खूब. आभार.
ReplyDeletemanzil se pichha chudate chudage kahan bhagte ho
ReplyDeletenice thoughts.
-tarun
http://tarun-world.blogspot.com
raste badal jain to manzile khud ba khud badal jati hain......
ReplyDeleteBahut pyari kavita hai