साल का आखिरी दिन
है...हमेशा की तरह लेखाजोखा करने बैठी हूँ...भोर के पाँच बज रहे हैं...घर में सारे
लोग सोये हुये हैं...सन्नाटे में बस घड़ी की टिक टिक है और कहीं दूर ट्रेन जा रही
है तो उसके गुजरने की मद्धिम आवाज़ है। उधारीखाता...जिंदगी...आखिर वही तो है जो हमें
हमारे अपने देते हैं। सबसे ज्यादा खुशी के पल तनहाई के नहीं...साथ के होते हैं।
इस साल का हासिल
रहा...घूमना...शहर...देश...धरती...लोग। साल की शुरुआत थायलैंड की राजधानी बैंगकॉक
घूमने से हुयी...बड़े मामाजी के हाथ की बोहनी इतनी अच्छी रही साल की कि इस साल
स्विट्जरलैंड भी घूम आए हम। बैंगकॉक के मंदिर बेहद पसंद आए मुझे...पर वहाँ की सबसे
मजेदार बात थी शाकाहारी भोजन न मिलना...वहाँ लोगों को समझ ही नहीं आता कि शाकाहारी
खाना क्या होता है। स्विट्जरलैंड जाने का सोचा भी नहीं था मैंने कभी...कुणाल का एक
प्रोजेक्ट था...उस सिलसिले में जाना पड़ा। मैंने वाकई उससे खूबसूरत जगह नहीं देखी
है...वापस आ कर सोचा था कि पॉडकास्ट कर दूँ क्यूंकी उतनी ऊर्जा लिखने में नहीं आ
पाती...पॉडकास्ट का भविष्य क्या हुआ यहाँ लिखूँगी तो बहुत गरियाना होगा...इसलिए
बात रहने देते हैं. स्विट्ज़रलैंड में अकेले घूमने का भी बहुत लुत्फ उठाया...उसकी
राजधानी बर्न से प्यार भी कर बैठी। बर्न के साथ मेरा किसी पिछले जन्म का बंधन
है...ऐसे इसरार से न किसी शहर ने मुझे पास बुलाया, न बाँहों में भर कर खुशी
जताई। बर्न से वापस ज्यूरीक आते हुये लग रहा था किसी अपने से बिछड़ रही हूँ। दिन भर
अकेले घूमते हुये आईपॉड पर कुछ मेरी बेहद पसंद के गाने होते थे और कुछ अज़ीज़ों की
याद जो मेरा हाथ थामे चलती थी। बहुत मज़ा आया मुझे...वहीं से तीन पोस्टकार्ड गिराए
अनुपम को...बहुत बहुत सालों बाद हाथ से लिख कर कुछ।
इस साल सपने की तरह एक
खोये हुये दोस्त को पाया...स्मृति...1999 में उसका पता खो गया था...फिर उसकी कोई
खोज खबर नहीं रही। मिली भी तो बातें नहीं हों पायीं तसल्ली से...इस साल उसके पास
फुर्सत भी थी, भूल जाने के उलाहने भी और सीमाएं तोड़ कर हिलोरे
मारता प्यार भी। फोन पर कितने घंटे हमने बातें की हैं याद नहीं...पर उसके होने से
जिंदगी का जो मिसिंग हिस्सा था...अब भरा भरा सा लगता है। मन के आँगन में राजनीगंधा
की तरह खिलती है वो और उसकी भीनी खुशबू से दिन भर चेहरे पर एक मुस्कान रहती है।
पता तो था ही कि वो लिखती होगी...तो उसको बहुत हल्ला करवा के ब्लॉग भी बनवाया और
आज भी उसके शब्दों से चमत्कृत होती हूँ कि ये मेरी ही दोस्त ने लिखा है। उसकी
तारीफ होती है तो लगता है मेरी हो रही है।
स्मृति की तरह ही विवेक भी जाने कहाँ से
वापस टकरा गया...उससे भी फिर बहुत बहुत सी बातें होने लगी हैं...बाइक,
हिमालय, रिश्ते, पागलपन, IIMC, जाने क्या क्या...और उसे भी परेशान करवा करवा के
लिखवाना शुरू किया...बचपन की एक और दोस्त का ब्लॉग शुरू करवाया...साधना...पर चूंकि
वो लंदन में बैठी है तो उसे हमेशा फोन पर परेशान नहीं कर सकती लिखने के लिए...ब्लॉगर
पर कोई सुन रहा हो तो हमको एक आध ठो मेडल दे दो भाई!
और अब यहाँ से सिर्फ
पहेलियाँ...क्यूंकी नाम लूँगी तो जिसका छूटा उससे गालियां खानी पड़ेंगी J एक दोस्त जिससे लड़ना,
झगड़ना, गालियां देना, मुंह फुलाना, धमकी देना, बात नहीं करना सब किया...पर आज भी कुछ होता है तो
पहली याद उसी की आती है और भले फोन करके पहले चार गालियां दू कि कमबख्त तुम बहुत
बुरे हो...अनसुधरेबल हो...तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता...थेत्थर हो...पर जैसे हो,
मेरे बड़े अपने हो। कोई पिछले जन्म का रिश्ता रहा होगा जो तुमसे टूट टूट कर भी
रिश्ता नहीं टूटता। बहुत मानती हूँ उसे...मन से। कुछ लोगों को सुपरइंटेलेकचुअल (SI) के टैग से बाहर निकाल कर दोस्तों के खाने में रख दिया...और आज तक समझ नहीं आता कि
मुझे हुआ क्या था जो इनसे पहले बात करने में इतना सोचती थी। जाना ये भी कुछ लोगों
का नाम PJ क्योंकर होना चाहिए...नागराज का टाइटिल देने की भी
इच्छा हुयी। कुछ खास लोगों को चिट्ठियाँ लिखीं...जो जवाब आए वो कमबख्त कासिद ने
दिये नहीं मुझे। चिट्ठियाँ गिराने का अद्भुत रिदम फिर से लौट कर आया जिंदगी में और
लाल डब्बे से भी दोस्ती की।
एक आवाज़ के जादू में खो
गयी और आज तक खुद को तलाश रही हूँ कि नामुराद पगडंडी कहाँ गयी कि जिससे वापस आ
सकूँ...एक शेर भी याद आ रहा है ‘जिस रास्ते से हम आए थे,
पीते ही वो रास्ता भूल गए’...साल शायद अपने डर पर काबू पाने का साल ही था...जिस
जिस चीज़ से डरे वो किया...जैसे हमेशा लगता था कि बात करने से जादू टूट जाएगा पर
पाया कि बातें करने से कुछ तिलिस्म और गहरा जाते हैं कि उनमें एक और आयाम भी जुड़ जाता
है...आवाज़ का। कुछ लोग कितने अच्छे से होते हैं न...सीधे,
सरल...उनसे बातें करो तो जिंदगी की उलझनें दिखती ही नहीं। भरोसा और पक्का हुआ कि
सोचना कम चाहिए, जिससे बातें करने का मन है उससे बातें करनी चाहिए,
वैसे भी ज्यादा सोचना मुझे सूट नहीं करता। आवाज़ का जादू दो और लोगों का
जाना...कर्ट कोबेन और उस्ताद फतह अली खान...सुना इनको पहले भी था...पर आवाज़ ने ऐसे
रूह को नहीं छुआ था।
इस बार लोगों का दायरा
सिमटा मगर अब जो लोग हैं जिंदगी में वो सब बेहद अपने...बेहद करीबी...जिनसे वाकई
कुछ भी बात की जा सकती है और ये बेहद सुकून देता है। वर्चुअल लाइफ के लोग इतने
करीबी भी हो सकते हैं पहली बार जाना है...और ऐसा कैसा इत्तिफ़ाक़ है कि सब अच्छे लोग
हैं...अब इतने बड़े स्टेटमेंट के बाद नाम तो लेना होगा J अपूर्व(एक पोस्ट से क़तल मचाना कोई अपूर्व से
सीखे...और चैट पर मूड बदलना भी। थैंक्स कहूँ क्या अपूर्व?
तुम सुन रहे हो!), दर्पण(इसकी गज़लों के हम बहुत बड़े पंखे हैं और इसकी
बातों के तो हम AC ;) ज्यादा हो गया क्या ;)
? ), सागर(तुम जितने दुष्ट हो,
उतने ही अच्छे भी हो...कभी कभी कभी भी मत बदलना), स्मृति(इसमें तो मेरी जान
बसती है), पंकज(क्या कहें मौसी, लड़का हीरा है हीरा ;) थोड़ा कम आलसी होता और
लिखता तो बात ही क्या थी, पर लड़के ने बहुत बार मेरे उदास मूड को awesome किया है), नीरा(आपकी नेहभीगी चिट्ठियाँ जिस दिन आती हैं
बैंग्लोर में धूप निकलती है, जल्दी से इंडिया आने का प्लान कीजिये),
डिम्पल (इसके वाल पर बवाल करने का अपना मज़ा है...बहरहाल कोई इतना भला कैसे हो सकता
है), पीडी (इसको सिलाव खाजा कहाँ नहीं मिलता है तक पता है और उसपर
झगड़ा भी करता है), अभिषेक (द अलकेमिस्ट ऑफ मैथ ऐंड लव,
क्या खिलाते थे तुमको IIT में रे!), के छूटा रे बाबू! कोइय्यो याद नहीं आ रहा अभी
तो...
नए लोगों को जाना...अनुसिंह चौधरी...अगर आप नहीं जानते हैं तो जान आइये...मेरी एकदम लेटेस्ट
फेवरिट...इनको पढ़ने में जितना मज़ा है, जानने में उसका डबल मज़ा है। और मुझे लगता था कि एक
मैं ही हूँ अच्छी चिट्ठियाँ लिखने वाली पर इनकी चिट्ठियाँ ऐसी आती हैं कि लगता है
सब ठो शब्द कोई बोरिया में भर के फूट लें J अपने बिहार की मिट्टी की खुशबू ब्लॉग में ऐसे भरी
जाती है। कोई सुपरवुमन ऑफ द इयर अवार्ड दे रहा हो तो हम इनको रेकमेंड करते हैं।
नए लोगों में देवांशु ने
भी झंडे गाड़े हैं...इसका सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का है...आते साथ चिट्ठाचर्चा
...अखबार सब जगह छप गए...गौर तलब हो कि इनको ब्लॉगिंग के सागर में धकेलने का श्रेय
पंकज बाबू को जाता है...अब इनको इधर ही टिकाये रखने की ज़िम्मेदारी हम सब की बनती
है वरना ये भी हेली कॉमेट की तरह बहुत साल में एक बार दिखेंगे।
अनुपम...चरण कहाँ हैं
आपके...क्या कहा दिल्ली में? हम आ रहे हैं जल्दी ही...तुमसे इतना कुछ सीखा है
कि लिख कर तुम्हें लौटा नहीं सकती...तुम्हें चिट्ठियाँ लिखते हुये मैं खुद को
तलाशा है। बातें वही रहती हैं, पर तुम कहते हो तो खास हो जाती हैं...मेरी सारी
दुआएं तुम्हारी।
कोई रह गया हो तो बताना...तुमपर
एस्पेशल पोस्ट लिख देंगे...गंगा कसम J बाप रे! कितने सारे लोग हो गए...और इसमें तो आधे ऐसे हैं कि
मेरी कभी तारीफ भी नहीं करते ;) और हम कितना अच्छा अच्छा बात लिख रहे हैं।
ऊपर वाले से झगड़ा लगभग
सुलट गया है...इस खुशगवार जिंदगी के लिए...ऐसे बेमिसाल दोस्तों के लिए...ऐसे
परिवार के लिए जो मुझे इतना प्यार करता है...बहुत बहुत शुक्रिया।
मेरी जिंदगी चंद शब्दों और
चंद दोस्तों के अलावा कुछ नहीं है...आप सबका का मेरी जिंदगी में होना मेरे लिए
बहुत मायने रखता है...नए साल पर आपके मन में सतरंगी खुशियाँ बरसें...सपनों का इंद्रधनुष
खिले...इश्क़ की खुशबू से जिंदगी खूबसूरत रहे!
एक और साल के अंत में कह
सकती हूँ...जिंदगी मुझे तुझसे इश्क़ है!
इससे खूबसूरत भी और क्या होगा।
आमीन!