भूल जाउंगी तुम्हें...
जैसे लड़की भूलती है
सरस्वती पूजा के मंडप पर
रखना
आम के बौर
जैसे मंदिर भूल जाए
सुबह सुबह की घंटी
और लड़की के कंठ में फूटता
अलौकिक प्रेम का कोई स्वर
जैसे लड़की फिर से भूल जाए
गुरुवार को ओढ़ना
अपना वासंती दुपट्टा
तुम्हारे प्यार में रंगने पर भी
जैसे शिवरात्रि भूल जाए
भांग के नशे में
किसी लड़की का तुम्हें मांगना
व्रत न रखने के बाद भी
जैसे सावन भूल जाए
रचना तुम्हारे नाम की मेहंदी
और झूले के
आसमान तक की पींगें
जैसे शंख भूल जाए
पूजा ख़त्म होने का अंतिम नाद
आये हुए देवता
यज्ञभूमि में बस जायें
जैसे आत्मा भूल जाए
जिस्म के किसी बंधन को
तुमसे मांग बैठे
तुम्हें पूरा का पूरा
जैसे कौड़ियाँ भूल जायें
गिनती हमारे साथ के सालों की
और तुम हमेशा के लिए
हो जाओ मेरे
तू इस तरह भूलती है अगर तो ये क्यूँ न हो कि तू सिलसिलेवार भूले...
ReplyDeleteकि बौर तरसती रहे मंडप तक आने को,
कि देवता छटपटा जाएँ सुरलोक वापस जाने को, कि शिवरात्रि को भांग की तलब हो और वो बेकरारी से रास्ता देखे कि कोई लड़की किसी को पाने की गरज से ही एक बूटी ले आए भांग की, कि तुम्हारा वासंती दुपट्टा कहीं बालकनी में पड़ा सूख रहा हो और कमरे में उसकी खुशबू भर रही हो...
कि वो हर हिचकी पे सोचे कि कहीं तुमने ही तो याद नहीं कर लिया फिर से...
कि मैं तो समझा था कि तुम भूल गयी मुझे
- स्मृति
भूल गये तुम, लाख बहाने,
ReplyDeleteहम तकते पल, संग बिताने।
सवाल ये है कि तारीफ किसकी करूं, पोस्ट की या उसपे दिए गए स्मृति के कमेन्ट की..और अगर दोनों कि करूं तो किसकी ज्यादा करूं...दो दिन के "हैंगोवर" के बाद याददाश्त का चले जाना कोई नयी बात नहीं है..मेरी पसंदीदा लाइन..
ReplyDelete"जैसे आत्मा भूल जाए
जिस्म के किसी बंधन को
तुमसे मांग बैठे
तुम्हें पूरा का पूरा"
pooja lajawab thi aapki post par smriti ke comment ne jese jawab de diya....dono bahatreen...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...!
ReplyDeletesach ko kahti sunder rachna.
ReplyDelete'जैसे शंख भूल जाए
ReplyDeleteपूजा ख़त्म होने का अंतिम नाद
आये हुए देवता
यज्ञभूमि में बस जायें '
- वाह ,कितने सुन्दर बिंब !
बड़ी हसीन भुलक्कड़ी है जी :)
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