16 December, 2011

दिल्ली की छत, ब्लू लेबल और दो लड़कियां

कोई बीस साल पुरानी दोस्ती थी उनकी और उसमें वो आज दस साल बाद मिल रही थीं...दो औरतें या कि लड़कियां, जैसा भी आपको कहने में सुविधा हो...

दिल्ली की एक बेहद सर्द सी रात थी...लड़की का घर एक चार मंज़िला इमारत के ऊपर कुछ असबेसटोस की शीट्स लगा कर बनाए एक कमरेनुमा मकान में था. इसे बरसाती या दुछत्ती कहते हैं. दिल्ली में वैसे भी घर ढूँढना बहुत मुश्किल है...या तो बेर सराय, जिया सराय जैसे मुहल्लों में दीमक के घरों जैसे कमरे जो कहीं अंतहीन अंधेरी गलियों में खुलते हैं या तो पॉश इलाकों में ऐसी बरसाती जिसमें रहने की जगह तो सही है पर उसमें जीना अपने आप में एक बहुत बड़ी जंग होती जाये हर रोज़.

गर्मियों में चारों तरफ से सूरज उस कमरे को किसी प्रेशर कुकर की मानिंद गरम कर देता था...दीवारें, छत सब कुछ धीपता रहता था और उसमें जिस दिन उसे घर पर रहना हो जीना मुहाल हो जाता. एक बड़ा सा देजेर्ट कूलर बमुश्किल कोई राहत दे पाता था...ऐसे कमरे में जीना उसे हर लम्हा उससे प्यार करने की याद दिलाता था...जानलेवा गरमियाँ और जानलेवा सर्दियाँ. सब होने पर भी वो कमरा उसे नहीं छोड़ता था तो शायद इसलिए कि कमरे के आगे का थोड़ा सा छत का हिस्सा उसके नाम लिखा था. उसकी अपनी बालकनी जिसमें से आसमान अधूरा या टुकड़ों में नहीं पूरा दिखता था औंधे कटोरे जैसा. चाँद सितारों और डूबते सूरज को देखने का मोह उसे कहीं और जाने नहीं देता...उनींदी शिफ्ट्स के बीच वो किसी शाम सूरज से मिलने का वक़्त निकाल लेती तो कभी चाँद से डेट पर जाने का वादा भी निभा ले जाती...इन दोनों से उसी बेतरह इश्क़ करने के बावजूद उसे बेवफ़ाई जैसा कुछ महसूस नहीं होता...कभी भी. इस बारे में सूरज या चाँद ने भी कभी उसे ताने नहीं मारे.

उसे क्या मालूम था कि इसी घर की किस्मत में वो क़यामत की मुलाक़ात भी लिखी है...उसकी एक बचपन की दोस्त थी, कुछ तीस साल की जिंदगी में दस साल का कुल जमा रिश्ता था और फिर २० साल लम्बा अंतराल...किस्मत ने उन्हें जोड़ा था और आज दोनों इस छत पर दिसंबर की किसी सर्द रात मिल रहीं थी...मकान मालिक अलग रहता था इसलिए लड़की को बहुत सी आज़ादियाँ मिली हुयी थीं उस घर में...इसमें कभी भी आना जाना सबसे जरूरी थी. गैर जरूरी चीज़ों में था व्हिस्की में कोहरा मिला कर पीना और कोहरे और सिगरेट के धुएं को आपस में गुन्थ्ते देखना...इसके अलावा कुछ ऐय्याशियाँ भी थीं जैसे कि लोहे की उस  भारी कड़ाही में अपनी अलग बोरसी जलाना...थोड़े कोयले और लकड़ियों से.

यहाँ से चूँकि किस्से में दो लड़कियां आने वाली हैं तो उनके नाम का पहला अक्षर ले लेते हैं कि इस कहानी के सभी किरदार नकली हैं...किसी का पूरा नाम लिख दिया तो उस नाम की कितनी लड़कियां उस नाम से खुद को जोड़ के देख लेंगी और इसमें लेखक की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. जिसका घर है वो बेहद खूबसूरत है उसकी आँखें गहरी काली हैं और घने बाल कमर तक झूल रहे हैं...खुले बालों में कुछ पानी की बूँदें भी ठहरी हुयी दिखती हैं. चलो मान लेते हैं कि इस लड़की का नाम पी है...पी से पिया होता है, पिहू होता है, पियाली भी होता है...आप चाहो तो मान लो उसका नाम पियाली है...दूसरी का नाम स रखते हैं...सा से सारिका, सरगम, सांझ भी होता है तो आप मान लो उसका नाम सरगम है...उसकी आँखों में बड़ी वार्मथ है...गर्माहट समझते हैं आप...कॉफ़ी के कप वाली नहीं...व्हिस्की वाली...उसकी आँखें गहरे भूरे रंग की हैं, जिसमें आग का लपकना दिख जाता है कभी कभी. 

दोनों ने एक दूसरे को बहुत दिनों बाद देखा है दिल भरा हुआ है. स को पी का घर बहुत पसंद आया है. घर के हर हिस्से से पी की खुशबू आती है, चाहे वो बिखरी हुयी किताबें हों...सिगरेट के करीने से लगे खाली डब्बे हों कि उसका व्हिस्की ग्लास का कलेक्शन. कितना हसीन है कि जाड़ों की सर्द रात में खुले आसमान के तले बैठी हुयी हैं. कोहरा गिर रहा है...बहुत देर तक ख़ामोशी भी रही...और फिर पी ने ही कहना शुरू किया. पता है स मुझे लगता है शराब का आविष्कार किसी ईर्ष्यालु मर्द ने हम औरतों को देख कर किया होगा...आगे की थ्योरी है कि मर्द समझ ही नहीं सकते कि औरतें बिना पिए ही अपने दिल के सारे राज़ एक दूसरे के सामने कैसे कह देती हैं...मर्दों ने कई बार चाहा कि वो भी अपनी भावनाओं का इज़हार कर सकें पर उन्हें कहना ही नहीं आ पाया...फिर एक दिन एक बेहद इंटेलेक्चुअल मर्द ने शराब का अविष्कार किया कि इसे पी कर वो अपनी हर बात कह सकें. थ्योरी सही थी लेकिन कुछ मर्दों ने कहा कि उनके साथ ऐसा कुछ नहीं होता...कि वो पी कर भी वैसी ही हालत में रहते हैं जैसा कि बिना पिए...तो मर्दों की उस सभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ कि ऐसे मर्दों को बाकी मर्दों की भलाई के लिए स्वांग रचाना होगा. तब से ये उनका अपना सीक्रेट है जो किसी औरत को नहीं बताया जाएगा. 

स कहीं जादू में खोयी हुयी थी...उसे अपना पहला प्यार याद आ रहा था...वो भी कुछ ऐसी ही बहकी बहकी बातें किया करता था जो उसे कभी समझ नहीं आती थी. 'पी, तुझे कैसे पता ये थ्योरी?'. अब पी का दूसरा सबसे फेवरिट सेंटेंस था 'मुझे दारु पीने वाले मर्द बड़े पसंद हैं'. उसके पीछे की थ्योरी भी...जो लोग दारू पीते हैं वो बड़े खतरनाक टाइप के कांफिडेंट लोग होते हैं...और उससे बड़ी बात कि बड़े सच्चे होते हैं. उन्हें इस चीज़ से डर नहीं लगता कि जब वो आउट होंगे कोई उनके मन के अन्दर झाँक के देख लेगा...वो जैसे होते हैं खुद को बेहद प्यार करते हैं...या कमसे कम पसंद तो करते ही हैं. तुझे कभी हुआ है ऐसे लड़के से प्यार जिसे अपनी ड्रिंक बेहद पसंद हो? यार पीकर वो ऐसी अच्छी अच्छी बातें करता है कि बिना पिए कभी भी न करे. कभी कभार तो मुझे लगता है उन्हें हमेशा थोड़े नशे में ही होना चाहिए...ज्यादा अच्छे लगते हैं. ऐसे मर्द कितने रूखे से जीव होते हैं...किसी चीज़ में ज्यादा सोचना नहीं...अपना खाना वक़्त पे मिल जाए...ऑफिस दिन भर ठीक ठाक बीत जाए बस...इसी में खुश. पर उन्हें उसकी पसंद की शराब मिल जाए फिर देखो कैसे मौसम में रंग घुलता है...कैसे इश्क परवान चढ़ता है और अगर दर्द देखना है तो तब देखो कि कैसे इश्क में फ़ना होते हैं लोग. बिना किसी से कहे किस तरह टूटे हुए होते हैं. ये एक ऐसा वक़्त होता है जब वो सच में वल्नरेबल होते हैं. मुझे उनपर जितना तरस आता है उतना ही प्यार भी आता है. 

पी को सदियों से ऐसा कोई नहीं मिला था जिससे वो सारी बातें कर सके...लड़कियां उसकी दोस्त बनती नहीं थीं और लड़को को उससे प्यार हो जाता था...जिंदगी बड़ी तनहा थी. आज जैसे उसने खुद को ही पा लिया था...स की भी बातें थी बहुत...पर आज पी का मौसम था...बोले जा रही थी. स तू मुझसे ज्यादा मत मिला कर, मुझसे बात भी मत कर...मैं वैसी लड़की हूँ जिसे माएँ अपनी बड़ी होती बेटियों को बचा के रखती हैं कि बिगड़ न जाएँ...मैं हर चीज़ को करप्ट कर देती हूँ...ओक्सिजन हूँ ना...पर ये लोग जानते नहीं कि मैं न हूँ तो ये सांस भी न ले पाएं. सुलगती हुयी पी ने कश छोड़ा था तो धुआं भी एक पल ठहर कर उसके चेहरे का भाव देखने लगा था. स तो खैर वैसे भी आज कहानी ही सुनने आई थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये लड़की इतनी अकेली कैसे हो सकती है...उसने हमेशा पी को पढ़ा था...उसके शब्दों में, उसकी बातों में, उसकी अनगिन तस्वीरों में...हर जगह. पार्टियों की जान हुआ करती थी पी...उसके हिस्से वाकई इतनी तन्हाई है ये स को एकदम समझ नहीं आ रही थी. दो एकदम विपरीत स्वाभाव वाली लड़कियां एकदम एक सी तनहा कैसे हो सकती हैं. 


स चकित थी पी का चेहरा देख कर, उसमें कहीं कोई शिकवा, कोई गिला नहीं था. वो एक ऐसी लड़की का चेहरा था जिसने बेहद शिद्दत से जिंदगी को प्यार किया हो...बिना किसी अफ़सोस के. इश्क के कितने अनगिन किस्से थे पी के पास...और स के पास भी. आज इस बेहतरीन शाम के लिए ब्लू लेबल खोली गयी थी...और दो पैग बचे हुए थे अब...रात भी बर्फ पिघलने के रफ़्तार से ही ढल रही थी...सुबह के पहले की सबसे अँधेरी घड़ी थी. आग में थोड़ा धुआं धुआं सा था...रात भर रिपीट मोड में गा के शायद नुसरत साहब भी थक गए थे...ऐसे दो कद्रदान फिर जाने कब मिले, इसलिए उन्होंने शिकायत भी नहीं की थी...मार्लबोरो का नया पैकेट खोला जा रहा था...माहौल था कि जैसे कोई रेडियो का सिफारिशी प्रोग्राम ख़त्म होने को आ रहा हो...और आज की आखिरी फरमाइश झुमरीतलैय्या के फलाना साहब से...स ने सवाल पूछा...पी तू शादी किससे करेगी? पी ने व्हिस्की का ग्लास उठाया...उसमें आखिरी घूँट बाकी थी और पिघले हुए बर्फ के टुकड़े, बॉट्म्स अप मारा...आखिरी पैग बनाते हुए बोली...कोई होगा जो मेरे इस नीट व्हिस्की के लिए बर्फ के टुकड़े ला दिया करे फ्रिज से? जब भी मैं पीने बैठूं...ऐसा लड़का जिस दिन मिल जाएगा उससे शादी कर  लूंगी
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स का तो पता नहीं...बेचारी भली लड़की है, कहाँ से ऐसा लड़का ढूंढेगी...पर मैं, मैं तो लेखक हूँ ना...अपनी पी को ऐसे कैसे रहने दूं, उसे लिए ऐसा लड़का भी रचना पड़ेगा एक दिन. तब तक के लिए...अगर आप ऐसे किसी लड़के को जानते हैं तो बताएं. मैं पी से बात करुँगी. बस आज के एपिसोड में इतना काफी है. अगली बार कभी स की कहानी भी सुनाती हूँ. वैसे मैं लड़का होती तो मुझे पी से प्यार हो जाता? आपको हुआ क्या? 

5 comments:

  1. लड़कियों के पास जा बातें भी बहक जाती हैं, रुक नहीं पाती हैं, पता नहीं नशा बातों में है या......

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  2. बीच के कुछ पैराग्राफ्स ऐसे हैं जिस पर घंटों बात की जा सकती है. जैसे 'शराब' यहाँ क्या है? क्या यह वही भर है शीशे की बोतलों में बंद या फिर जिसकी आँखों में नशा हो, जीवन रुपी हुस्न जिसके नज़रों में करवट लेती है, कुछ ख्याल जो सर्द रातों में भी हथेलियाँ रगडती है और तसल्ली दिखाती हुई कहती है जालिम बढती उम्र के साथ मेरा बदन बहुत टूटता जा रहा है इसे कुछ ऐसे अपने आगोश में लो कि में कई कई दिनों तक बेसुध पड़ा रहूँ... जैसे रेलवे प्लेटफोर्म पर कोई अफीम खा कर इस दुनिया से बेखर रहता है !
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    तुम बहुत अच्छा लिख रही हो.
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    वैसे मैं लड़का होती तो मुझे पी से प्यार हो जाता? आपको हुआ क्या?

    तुम्हें लड़की होकर भी उससे प्यार हो गया है. और रहा सवाल मुझसे पूछने का तो ये तो जगजाहिर है कि हमको तो होगा ही :)

    लेकिन सिर्फ प्यार होने भर से क्या होगा ?

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  3. एक बंद सा कमरा, दो इंसान और चार कैमरे | पूरी कहानी इतने में एक छोटी सी फिल्म की तरह शूट हो गयी, वही फिल्म जिसमे हर लाइन अपने आप में एक कहानी बन जाये| "स" और "पी" से मिला तो नहीं हूँ, पर लगने लगा है की जानता हूँ, और इसको पढ़ने के बाद शायद और करीब से| अगर इस शराब को एक बार के लिए केवल कहने का जरिया ही मान लिया जाये तो भी नशा पूरा ही आएगा, और नशे में इंसान वो सब भी कह देता है जो उसे नहीं कहना चाहिए| इसीलिए इस बात से भी सहमत हूँ की नशा कर पाना सबके बस की बात नहीं, पीते बहुत लोग हैं, कुछ नशे में खो जाते हैं, बाकी नशे में होने का नाटक कर लेते हैं| नशे में होने का नाटक, शराब को बदनाम कर देता है|

    और रही प्यार की बात, मुझे भी "नशे" में खो जाने वाले लोग बहुत पसंद है तो प्यार हो जाना लाज़मी है...

    बाकी "यारों मुझे माफ़ रखो, मैं नशे में हूँ"

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  4. This comment has been removed by the author.

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