जरा सी, बस जरा सी आवाज़ की फाँक हाथ आई है...मज़ा भी उतने भर का है...आप कभी कॉफ़ी में डुबा कर बिस्किट खाते हैं? मैं खाती हूँ और इसका भी एक प्रोसेस है...बहुत दिन की प्रक्टिस के साथ ये परफेक्ट होता जाता है. वैसे तो कॉफ़ी अगर कैपचिनो मिल गयी तब तो आहा क्या मज़े वरना घर की खुद की बनायी हुयी कॉफ़ी भी चलती है. जो मुझे जानते हैं मेरे हाथ की कॉफ़ी के लिए कतल करने को तैयार है...अरे नहीं नहीं, किसी और का नहीं जी मेरा...मैं इतनी आलसी हूँ की मेरे से कॉफ़ी बनवाना अक्सर घर में कई सारे युद्ध एक साथ करवा देता है. उसपर सबको अलग अलग तरह की कॉफ़ी पसंद आती है. कुणाल को फेंट कर बनायी कॉफ़ी पसंद है...मुझे दालचीनी वाली कॉफ़ी...तो अगर मैं इस बात पर मान गयी हूँ कि कॉफ़ी बना ही दूँगी तो अगला युद्ध होता है कि किसके पसंद की कॉफ़ी बनेगी. वैसे तो कुणाल के पसंद की ही बनती है क्यों कि उसका लोजिक है कि मैं अपने पसंद की कॉफ़ी अकेले में बना के पीती ही हूँ...
कॉफ़ी...चोकलेट के बाद की मेरी सबसे पसंदीदा चीज़...उसमें दालचीनी के एक आध टुकड़े जादू जगा देते हैं...ये मिलीजुली खुशबू मुझे ऐसा लगता है कि मेरी खुद की है...यू नो...अगर मेरा सत्व निकला जाए तो वैसी ही कोई खुशबू आएगी. उसमें थोड़ा नशा है, थोड़ा नींद से जागने का खोया सा अहसास...थोड़ा जिंदगी को स्लो करने का रिमोट और थोड़ा जीने का जज्बा...बंगलौर की हलकी ठंढ के दिनों में बालकनी का एक टुकड़ा आसमान कॉफ़ी के भरोसे ही पूरा लगता है. मेरी बालकनी में धूप नहीं आती...धूप के टुकड़े चारो तरफ बिखरे हुए रहते हैं...पड़ोसी की छत पर, दुपट्टे में टंके कांच से रेफ्लेक्ट होते हुए मेरी आँखों में भी पड़ते हैं कभी. बालकनी के रेलिंग इतनी ही चौड़ी है कि जिसपर एक कॉफ़ी कप रखा जा सके...ख्यालों में खोये हुए. मैं कभी कभी उस चार मंजिल से नीचे देखती हूँ और सोचती हूँ कि कप गिरा तो!
कॉफ़ी में बिस्किट डुबाने का एक पूरा रिचुअल है...जब कैफे कॉफ़ी डे के ऑफिस में काम करती थी...सबने आदत पकड़ ली थी. मेरी ऑफिस की दराज, घर के डब्बों में हमेशा मारी(Marie) बिस्किट रहते हैं. पहले एक बिस्किट लीजिये...उसके डायमीटर पर तर्जनी से एक अदृश्य सीधी रेखा खींचिए, जैसे कि बिस्किट को निर्देश दे रहे हों कि यहीं से टूटना है तुम्हें...फिर बिस्किट के दो विपरीत तरफ उँगलियों से पकड़िये और दोनों अंगूठे बिस्किट के मध्य में रखिये...बिस्किट तोड़ते हुए प्रेशर का बराबर का डिस्ट्रीब्युशन होना जरूरी है...तो आधा प्रेशर अंगूठों पर बीच में और बाकी प्रेशर बाकी उँगलियों से यूँ लगाइए कि बिस्किट अन्दर की ओर टूट जाए. अगर आपने सारे स्टेप्स ठीक से फोलो किये हैं तो बिस्किट एक दो खूबसूरत अर्ध चंद्राकर टुकड़ों में टूट जायेगा...फिर आप उसकी तुलना चाँद या अपने महबूब के चेहरे से कर सकते हैं. थोड़ी प्रैक्टिस के बाद आपको बिस्कुट को दो एकदम बराबर हिस्सों में बांटने का हुनर आ जाएगा. ध्यान रहे, ये हुनर बच्चों के बीच में मारकाट होने से कई बार बचाता है.
कहानी यहाँ नहीं ख़त्म होती...बिस्किट के टुकड़ों को उँगलियों से हल्का सा झटका दीजिये, ठीक वैसे ही जैसे सिगरेट को देते हैं, ऐश गिराने के लिए...इससे बिस्किट के क्रम्बस बाहर ही गिर जायेंगे और आपकी कॉफ़ी बिस्किट खाने के बाद भी पीने लायक रहेगी. ये मेरा खुद का अविष्कार है...मैंने कितने लोगों को इस विधि से फायदा उठाते देखा है. अगर बिस्किट के क्रम्बस कॉफ़ी में नहीं गिरे तो आपकी कॉफ़ी का जायका भी नहीं गया और आपको बिस्किट खाने में भी मज़ा आया.
बिस्किट को कॉफ़ी में कितनी देर रखा जा सकता है इस गणित को फिगर आउट करना भी उतना जी जरूरी है...यहाँ टाइम फॉर व्हिच बिस्किट कैन बी डिप्ड इस डायरेक्टली प्रपोरशनल टु टेम्प्रेचर ऑफ़ कॉफ़ी...बहुत गर्म कॉफ़ी है तो बस डिप करके निकाल लीजिये और जैसे जैसे कॉफ़ी ठंढी हो रही है बिस्किट थोड़ी देर और रखा जा सकता है कॉफ़ी में. वैसे यही फंडा लगभग समोसे और चटनी में भी इस्तेमाल किया जाता है...या फिर जलेबी राबड़ी में :) कुछ दिन की प्रैक्टिस से आप इस फन में इस कदर माहिर हो सकते हैं कि सब आपसे सीखने को आतुर हो जाएँ जैसे मेरे ऑफिस में हुए थे. मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं...आप चाहें तो और टिप्स के लिए मुझसे संपर्क भी कर सकते हैं.
बात शुरू हुयी थी आवाज़ की एक फांक से...तो हुआ ये कि आज शाम बालकनी में एक बेहद हसीन आवाज़ की फाँक मिली...जाने कैसे, बिना उम्मीद के...तो इस हैप्पी सरप्राइज से ऐसा लगा कि कॉफ़ी मिल गयी हो गरमा गरम...मुझे ये भी लगा कि बहुत सीरियस लेखन हो रहा है...और हम एकदम सीरियसली मानते हैं कि चिरकुटपना इज द स्पाइस ऑफ़ लाइफ...तो मस्त समोसे खाइए...बिस्किट तोड़ने की कला में माहिर होईये...और जिंदगी में इन फालतू कामों के अलावा मज़ा क्या है. आप कभी मुझसे मिले तो मुझसे कॉफ़ी बनवा की पीना मत भूलियेगा...ऐसे कॉफ़ी पूरी दुनिया में नहीं मिलती, बिस्किट के लाइव डेमो के साथ :)
आज का प्रोग्राम समाप्त हुआ...हम आपको पकाने के लिए फिर हाज़िर होएंगे...तब तक के लिए नमस्कार. :)
कॉफ़ी...चोकलेट के बाद की मेरी सबसे पसंदीदा चीज़...उसमें दालचीनी के एक आध टुकड़े जादू जगा देते हैं...ये मिलीजुली खुशबू मुझे ऐसा लगता है कि मेरी खुद की है...यू नो...अगर मेरा सत्व निकला जाए तो वैसी ही कोई खुशबू आएगी. उसमें थोड़ा नशा है, थोड़ा नींद से जागने का खोया सा अहसास...थोड़ा जिंदगी को स्लो करने का रिमोट और थोड़ा जीने का जज्बा...बंगलौर की हलकी ठंढ के दिनों में बालकनी का एक टुकड़ा आसमान कॉफ़ी के भरोसे ही पूरा लगता है. मेरी बालकनी में धूप नहीं आती...धूप के टुकड़े चारो तरफ बिखरे हुए रहते हैं...पड़ोसी की छत पर, दुपट्टे में टंके कांच से रेफ्लेक्ट होते हुए मेरी आँखों में भी पड़ते हैं कभी. बालकनी के रेलिंग इतनी ही चौड़ी है कि जिसपर एक कॉफ़ी कप रखा जा सके...ख्यालों में खोये हुए. मैं कभी कभी उस चार मंजिल से नीचे देखती हूँ और सोचती हूँ कि कप गिरा तो!
कॉफ़ी में बिस्किट डुबाने का एक पूरा रिचुअल है...जब कैफे कॉफ़ी डे के ऑफिस में काम करती थी...सबने आदत पकड़ ली थी. मेरी ऑफिस की दराज, घर के डब्बों में हमेशा मारी(Marie) बिस्किट रहते हैं. पहले एक बिस्किट लीजिये...उसके डायमीटर पर तर्जनी से एक अदृश्य सीधी रेखा खींचिए, जैसे कि बिस्किट को निर्देश दे रहे हों कि यहीं से टूटना है तुम्हें...फिर बिस्किट के दो विपरीत तरफ उँगलियों से पकड़िये और दोनों अंगूठे बिस्किट के मध्य में रखिये...बिस्किट तोड़ते हुए प्रेशर का बराबर का डिस्ट्रीब्युशन होना जरूरी है...तो आधा प्रेशर अंगूठों पर बीच में और बाकी प्रेशर बाकी उँगलियों से यूँ लगाइए कि बिस्किट अन्दर की ओर टूट जाए. अगर आपने सारे स्टेप्स ठीक से फोलो किये हैं तो बिस्किट एक दो खूबसूरत अर्ध चंद्राकर टुकड़ों में टूट जायेगा...फिर आप उसकी तुलना चाँद या अपने महबूब के चेहरे से कर सकते हैं. थोड़ी प्रैक्टिस के बाद आपको बिस्कुट को दो एकदम बराबर हिस्सों में बांटने का हुनर आ जाएगा. ध्यान रहे, ये हुनर बच्चों के बीच में मारकाट होने से कई बार बचाता है.
कहानी यहाँ नहीं ख़त्म होती...बिस्किट के टुकड़ों को उँगलियों से हल्का सा झटका दीजिये, ठीक वैसे ही जैसे सिगरेट को देते हैं, ऐश गिराने के लिए...इससे बिस्किट के क्रम्बस बाहर ही गिर जायेंगे और आपकी कॉफ़ी बिस्किट खाने के बाद भी पीने लायक रहेगी. ये मेरा खुद का अविष्कार है...मैंने कितने लोगों को इस विधि से फायदा उठाते देखा है. अगर बिस्किट के क्रम्बस कॉफ़ी में नहीं गिरे तो आपकी कॉफ़ी का जायका भी नहीं गया और आपको बिस्किट खाने में भी मज़ा आया.
बिस्किट को कॉफ़ी में कितनी देर रखा जा सकता है इस गणित को फिगर आउट करना भी उतना जी जरूरी है...यहाँ टाइम फॉर व्हिच बिस्किट कैन बी डिप्ड इस डायरेक्टली प्रपोरशनल टु टेम्प्रेचर ऑफ़ कॉफ़ी...बहुत गर्म कॉफ़ी है तो बस डिप करके निकाल लीजिये और जैसे जैसे कॉफ़ी ठंढी हो रही है बिस्किट थोड़ी देर और रखा जा सकता है कॉफ़ी में. वैसे यही फंडा लगभग समोसे और चटनी में भी इस्तेमाल किया जाता है...या फिर जलेबी राबड़ी में :) कुछ दिन की प्रैक्टिस से आप इस फन में इस कदर माहिर हो सकते हैं कि सब आपसे सीखने को आतुर हो जाएँ जैसे मेरे ऑफिस में हुए थे. मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं...आप चाहें तो और टिप्स के लिए मुझसे संपर्क भी कर सकते हैं.
बात शुरू हुयी थी आवाज़ की एक फांक से...तो हुआ ये कि आज शाम बालकनी में एक बेहद हसीन आवाज़ की फाँक मिली...जाने कैसे, बिना उम्मीद के...तो इस हैप्पी सरप्राइज से ऐसा लगा कि कॉफ़ी मिल गयी हो गरमा गरम...मुझे ये भी लगा कि बहुत सीरियस लेखन हो रहा है...और हम एकदम सीरियसली मानते हैं कि चिरकुटपना इज द स्पाइस ऑफ़ लाइफ...तो मस्त समोसे खाइए...बिस्किट तोड़ने की कला में माहिर होईये...और जिंदगी में इन फालतू कामों के अलावा मज़ा क्या है. आप कभी मुझसे मिले तो मुझसे कॉफ़ी बनवा की पीना मत भूलियेगा...ऐसे कॉफ़ी पूरी दुनिया में नहीं मिलती, बिस्किट के लाइव डेमो के साथ :)
आज का प्रोग्राम समाप्त हुआ...हम आपको पकाने के लिए फिर हाज़िर होएंगे...तब तक के लिए नमस्कार. :)
इन्ही नहीं नहीं तकनीकों में जीवन की कलात्मकता और आनन्द की अनुभूति छुपी है :) मेरा काफी ज्ञान और समृद्ध हुआ :) :)
ReplyDelete*नन्ही नन्ही
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ReplyDeleteक्या जबरदस्त जानकारी दी है आपने :):)
ReplyDeleteकभी ट्राई करेंगे :)
बिस्किट को कितनी देर कॉफी में रखें , पढ़ते मेरी बेटी मेरी आँखों के आगे बिस्किट डुबोये घूम गई... दालचीनी सी खुशबू आपके पास से आई - कॉफी पीने की इच्छा ने ली अंगड़ाई
ReplyDeleteबाप रे बाप, इतनी मेहनत से खायेंगे तो कैलेंरू वहीं चढ़ेगी।
ReplyDeleteकैलोरी
ReplyDeleteLagta hai marie biscuit ki ad mein aap wala formula incorp. karna chahiye...
ReplyDeleteकभी जापानी अंदाज मे चाय पीकर भी देखीये!
ReplyDeleteअहा………… हमारे लिये जाड़े का कॉफी से वैसा ही संबंध है जैसा गुलज़ार साहब का चाँद से है। :)
ReplyDeleteबड़ी स्वादिस्ट और गर्मागर्म पोस्ट !मज़ा आ गया, सच्ची !
"इस डायरेक्टली प्रपोरशनल टु टेम्प्रेचर ऑफ़ कॉफ़ी" :)
ReplyDeleteयार यहाँ कॉफ़ी कागज के कपों में मिलती है. अब ढक्कन खोल के डिप तो नहीं कर सकता :) तो ये एक्सपेरिमेंट किये बहुत दिन हुए. वैसे अभी के अभी जा रहा हूँ - कॉफ़ी और चॉकलेट लाने. आइडियल टाइम हो रहा है उसके लिए.