16 December, 2011

ओ री सखी, जा महबूब के देश!

तुम किस देस के वासी हो? कहीं से तुम्हारा फोन नंबर मिलेगा? किसी से पूछूँ जो तुम्हें जानता हो...जो मेरे दरकते दिल पर हाथ रख के कहे, सखी री फ़िक्र न कर, तेरा महबूब इसी दुनिया में है...तो क्या हुआ अगर वो तुझसे बहुत बहुत दूर है...एक न एक दिन तू मिलेगी उससे...सखी जो बताये कि पुरवा पे उड़ कर मेरे दिल का हाल तुम तक पहुँच जाएगा...मेरी सखी जो कहे कि जान न दो, मर जाओगी तो प्यार कैसे करोगी उससे.

सखी जो कहे कि मेरी जान...मैं हूँ रे...मैं सम्हाल लूंगी तुझे, तू आगे बढ़, टूट कर प्यार कर...जब तेरा दिल टूटेगा तो मैं मरहम लिए आउंगी...मैं तेरे लिए हिज्र की किताबें और फिराक के गीत ढूंढ के दूँगी...मैं तेरे लिए वो आवाजें तलाश लाऊंगी जो तेरे टूटे हुए दिल को राहत दें...सखी री, तू कहाँ रे...कि तुम न होगी तो मैं कैसे प्यार में पडूँगी कि मैं तो जानती हूँ कि एक दिन महबूब नहीं रहेगा...वो चाँद सितारों के देश का मेरा महबूब है. पर तुम, तुम तो मेरी ही मिटटी की हो न...तुम तो रहोगी न मेरे पास...बोलो न..रहोगी न मेरे पास, हमेशा, हमेशा?

कहाँ हो री सखी...कि महबूब की गलियों में बड़ा छलावा है...कि मुझे सारे शहर एक से लगते हैं...तू कहाँ रे, तुझे तो उससे प्यार नहीं है...तुझे तो देख के पता चल पायेगा कि किस शहर में उसका बसेरा है. तू ढूंढ के ला दे न मुझे उसके मकान का पता कि इश्क में बावरी मेरी आँखें कुछ देख नहीं पा रही हैं...तू जायेगी तेरी आँखों में प्यार नहीं छलकेगा कि दुनिया उसकी दुश्मन हो जाए...मेरी कासिद बनोगी? उन तक पहुंचाना मेरे दिल का सारा हाल पर याद रखना री कि 'कहना गलत गलत'.

सखी रे...मुझे तो लगता भी नहीं कि कभी उनका दीदार होगा...तेरा गाँव महबूब के देश में ही है कहीं...तू मेरी आँखों से उसे देख आ...मुझे सारा हाल बयान कर देना कि मुझे लगे कि मैंने देख लिया है उसे...मैं तेरे रास्ते के लिए निमकी और ठेकुआ बाँध देती हूँ और थोड़ा सत्तू भी...इतने में तो तू उसके घर पहुँच जायेगी. उससे जा के कहना कि एक लड़की तेरे इश्क में पागल हुयी है...उसने मुझे भेजा है एक बार तुम्हें छू कर आने के लिए और कुछ मत कहना कि उसे मुझसे प्यार हो जाएगा तो कैसे जियेगा वो...चुप क़दमों से लौट आना...उसे कुछ जियादा मत बताना मेरे बारे में.

दुनिया इश्क से बहुत जलती है...तो देख लेना सखी, मेरे महबूब से अकेले मिलना...शाम के किसी वक़्त जब सूरज डूब चुका हो और चाँद के निकलने में देर हो थोड़ी...खुले आसमान के नीचे, जहाँ दीवारें न हों...ऐसी जगह मिलना.



ओ री सखी री...उसके देश से मेरे गाँव का सफ़र बहुत लम्बा है...पर तू ये सफ़र तय करना...और जब तेरी आँखों उसका हाल सुनकर मेरा जान देने को जी चाहे तो मेरे लिए कनेल के फलों को पीस कर जहर तैयार कर देना...जब मैं बिलकुल न जी पाऊं उसके बगैर तो मुझे चुप चाप मर जाने देना. मेरे लिए इतना करेगी न सखी?
बोल?

5 comments:

  1. इस बेकसिये हिज्र में मजबूरिये नुक्स
    हम उन्हें पुकारें तो पुकारें न बने... ..
    यह कैसी कशिश है यह कैसा सफ़र है ...
    काश इस मुसाफिर को वो मंजिल मिल जाय :)

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  2. हाय इत्ता प्यार...कैसे लिख डाला???? :) :)
    सखी काफी विश्वासपात्र लगती है :) :)

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  3. सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  4. इश्क, जीना या मरना,
    हमपे तो इनायत करना।

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  5. आज हम भी किसी का फ़ोन नम्बर ढूंढ़ रहे हैं... उसे जन्मदिन पर विश करना है... पर सूत्र नहीं समझ आ रहे कि कैसे मिले वह नम्बर :(
    anyways, it was nice reading this piece too...
    'पर तुम, तुम तो मेरी ही मिटटी की हो न...तुम तो रहोगी न मेरे पास...बोलो न..रहोगी न मेरे पास, हमेशा, हमेशा?'

    touching lines, I would just say...

    'मैं तुम्हारी ही मिट्टी की हूँ... और विधाता ने जिस मिट्टी से तुम्हे गढ़ा होगा... शायद वही मिट्टी मेरा भी अंश होगी... कौन जाने! मैं रहूंगी साथ सदा...हमेशा, हमेशा!!!'

    Best wishes:)

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