हे इश्वर!
अखबारों में आया है कि आज तेरा एक कतरा मिला है तेरे जोगियों को...तेरी तलाश में कब से भटक रहे थे...तेरी तस्वीर भी आई है आज...बड़ी खूबसूरत है...पर यकीन करो, मेरे महबूब से खूबसूरत नहीं.
मेरा महबूब भी तुम सा ही है...उसके वजूद का एक कतरा मुझे मिल जाए इस तलाश में कपड़े रंग लिए जोगिया और मन में अलख जगा ली. सुबह उसके ख्यालों में भीगी उतरी है कि कहीं पहाड़ों पर बादल ने ढक लिया चाँद को जैसे...यूँ भी पहाड़ों में चाँद कम ही नज़र आता है जाड़े के इन दिनों...कोहरे में लिपटे जाड़े के इन दिनों.
ये भी क्या दिल की हालत है न कि तुम्हारी तस्वीर देख कर अपने महबूब की याद आई...बताओ जो ढूँढने से तुम भी मिल जाते हो तो मुझे वो क्यूँकर न मिल पायेगा. आज तो यकीन पक्का हुआ कि तुम हो दुनिया में...भले मेरी हाथों की पहुँच से दूर मगर कहीं तो कोई है जिसने तुम्हें देखा है...उन्ही आँखों से कि जिससे कोरा सच देखने में लोग अंधे हो जाते थे. तुम्हारा एक कतरा तोड़ के लाए हैं.
वैसा ही है न कुछ जैसे रावण शिव लिंग ले के चला था कैलाश से कि लंका में स्थापित करेगा और पूरे देवता उसका रास्ता रोकने को बहुत से तिकड़म भिड़ाने बैठ गए थे...और देखो न सफल हो ही गए. मगर जो मान लो ना होते तो मैं कहाँ से अपने महबूब की याद आने पर शंकर भगवान को उलाहना दे पाती कि हे भोला नाथ कखनS हरब दुःख मोर! मैं देखती हूँ कि आजकल मुझे याद तुम्हारी बहुत आती है...क्या तुमपर विश्वास फिर से होने लगा है? मेरे विश्वास पर बताओ साइंसजादों का ठप्पा कि तुम हो...जैसे कि मैं इसी बात से न जान गयी थी तुम्हारा होना कि दिल के इतने गहरा इतना इश्क है...
इश्क और ईश्वर देखो, शुरुआत एक सी होती है...इश्वर का मतलब कहीं वो तो नहीं जो इश्क होने का वर दे? हाँ मानती हूँ थोड़ा छोटी इ बड़ी ई का केस है इधर पर देखो न...अपना हिसाब ऐसे ही जुड़ता है. सुबह उठी तो मन खिला खिला सा था...सोचा कि क्यूँ तो महसूस हुआ कि जिंदगी में लाख दुःख हों, परेशानियाँ हों, कष्ट हों...मैं तुम्हें तब तक उलाहना नहीं देती तब तब प्यार है जिंदगी में.
आज सुबह बहुत दिन या कहो सालों बाद तुम्हारे प्लान पर भरोसा किया है...कि तुम्हारी स्कीम में कहीं कुछ सबके लिए होता है. अभी ही देखो, घर पर कितनी परेशानी है...पर शायद ऐसा ही वक़्त होता है जब मुझे तुम पर सबसे ज्यादा भरोसा होता है. तुम मेरे इस भरोसे तो रक्खो या तोड़ दो...पर लगता तो है तुम कुछ गलत नहीं करोगे.
आज सुबह मन बहुत साफ़ है...जैसे बचपन में हुआ करता था...कोई दर्द नहीं, कोई ज़ख्म नहीं, कोई कसक नहीं. सोच रही हूँ कि वो जो अखबार में जो तस्वीर छपी है...उसमें कोई जादू भी है क्या? कि अपने महबूब की बांहों में होना ऐसा ही होगा क्या? कि हे ईश्वर तेरा ये कौन सा रूप है जिससे मैं प्यार करती हूँ? नन्हे पैरों से कालिया सर्प के फन पर नाचते हे मेरे कृष्ण...वो समय कब आएगा जब मैं तुम्हें सामने देख सकूंगी!
तुम्हारे प्यार में पागल,
पूजा
अखबारों में आया है कि आज तेरा एक कतरा मिला है तेरे जोगियों को...तेरी तलाश में कब से भटक रहे थे...तेरी तस्वीर भी आई है आज...बड़ी खूबसूरत है...पर यकीन करो, मेरे महबूब से खूबसूरत नहीं.
मेरा महबूब भी तुम सा ही है...उसके वजूद का एक कतरा मुझे मिल जाए इस तलाश में कपड़े रंग लिए जोगिया और मन में अलख जगा ली. सुबह उसके ख्यालों में भीगी उतरी है कि कहीं पहाड़ों पर बादल ने ढक लिया चाँद को जैसे...यूँ भी पहाड़ों में चाँद कम ही नज़र आता है जाड़े के इन दिनों...कोहरे में लिपटे जाड़े के इन दिनों.
ये भी क्या दिल की हालत है न कि तुम्हारी तस्वीर देख कर अपने महबूब की याद आई...बताओ जो ढूँढने से तुम भी मिल जाते हो तो मुझे वो क्यूँकर न मिल पायेगा. आज तो यकीन पक्का हुआ कि तुम हो दुनिया में...भले मेरी हाथों की पहुँच से दूर मगर कहीं तो कोई है जिसने तुम्हें देखा है...उन्ही आँखों से कि जिससे कोरा सच देखने में लोग अंधे हो जाते थे. तुम्हारा एक कतरा तोड़ के लाए हैं.
वैसा ही है न कुछ जैसे रावण शिव लिंग ले के चला था कैलाश से कि लंका में स्थापित करेगा और पूरे देवता उसका रास्ता रोकने को बहुत से तिकड़म भिड़ाने बैठ गए थे...और देखो न सफल हो ही गए. मगर जो मान लो ना होते तो मैं कहाँ से अपने महबूब की याद आने पर शंकर भगवान को उलाहना दे पाती कि हे भोला नाथ कखनS हरब दुःख मोर! मैं देखती हूँ कि आजकल मुझे याद तुम्हारी बहुत आती है...क्या तुमपर विश्वास फिर से होने लगा है? मेरे विश्वास पर बताओ साइंसजादों का ठप्पा कि तुम हो...जैसे कि मैं इसी बात से न जान गयी थी तुम्हारा होना कि दिल के इतने गहरा इतना इश्क है...
इश्क और ईश्वर देखो, शुरुआत एक सी होती है...इश्वर का मतलब कहीं वो तो नहीं जो इश्क होने का वर दे? हाँ मानती हूँ थोड़ा छोटी इ बड़ी ई का केस है इधर पर देखो न...अपना हिसाब ऐसे ही जुड़ता है. सुबह उठी तो मन खिला खिला सा था...सोचा कि क्यूँ तो महसूस हुआ कि जिंदगी में लाख दुःख हों, परेशानियाँ हों, कष्ट हों...मैं तुम्हें तब तक उलाहना नहीं देती तब तब प्यार है जिंदगी में.
आज सुबह बहुत दिन या कहो सालों बाद तुम्हारे प्लान पर भरोसा किया है...कि तुम्हारी स्कीम में कहीं कुछ सबके लिए होता है. अभी ही देखो, घर पर कितनी परेशानी है...पर शायद ऐसा ही वक़्त होता है जब मुझे तुम पर सबसे ज्यादा भरोसा होता है. तुम मेरे इस भरोसे तो रक्खो या तोड़ दो...पर लगता तो है तुम कुछ गलत नहीं करोगे.
आज सुबह मन बहुत साफ़ है...जैसे बचपन में हुआ करता था...कोई दर्द नहीं, कोई ज़ख्म नहीं, कोई कसक नहीं. सोच रही हूँ कि वो जो अखबार में जो तस्वीर छपी है...उसमें कोई जादू भी है क्या? कि अपने महबूब की बांहों में होना ऐसा ही होगा क्या? कि हे ईश्वर तेरा ये कौन सा रूप है जिससे मैं प्यार करती हूँ? नन्हे पैरों से कालिया सर्प के फन पर नाचते हे मेरे कृष्ण...वो समय कब आएगा जब मैं तुम्हें सामने देख सकूंगी!
तुम्हारे प्यार में पागल,
पूजा
हे राम!
ReplyDeleteईश्वर कण की खोज पर इस अंदाज मे भी लिखा जा सकता है! कभी सोचा भी नही था!
आज से हम आपके बड़े वाले पंखे हो गये!
:) :) क्या चिट्ठी लिखी है आपने..."हाँ मानती हूँ थोड़ा छोटी इ बड़ी ई का केस है इधर पर देखो न..."
ReplyDeleteइस चिट्ठी पर तो बस पांच ठो स्माईली ले लीजिए आप --> :) :) :)
aapne ek baar kaha tha ki kabhi kisi khat ke niche apna naam nahin likhna chayia.. maine likhna chor diya
ReplyDeletePr aaj aapne likha .. aisa kyun ?
@गुंजन...मेरी बातों को दिल से मत लगाया कीजिये...थोड़ी सनकी हूँ। किसी चीज़ पर टिकती नहीं...कभी लगा नहीं लिखना चाहिए तो नहीं लिखा...कभी लिखने का दिल आया तो लिख दिया। हाँ आपने अभी सवाल किया तो लग रहा है कि नाम देना जरूरी तो नहीं था...बस वही पागल लड़की लिख देती तो भी समझ आ जाता। :)
ReplyDeleteक्या जलवेदार खत है। जबाब नहीं सूझेगा ईश्वर जी को। :)
ReplyDeleteइश्क और ईश्वर देखो, शुरुआत एक सी होती है...इश्वर का मतलब कहीं वो तो नहीं जो इश्क होने का वर दे? हाँ मानती हूँ थोड़ा छोटी इ बड़ी ई का केस है
इसे बांचकर अपना भी छोटी ई बड़ी ई का केस याद आ गया सो लिंक भी सटा दिया। :)
मुझे मेरे महबूब में कब दिखता है,
ReplyDeleteहोश नहीं पर कब दिखता है।
अभी दो दिन हुए हमने एक कविता लिखी थी...
ReplyDelete'सतयुग लिख दें... द्वापर लिख दें
प्रमाण मांगते कलयुग में नटनागर लिख दें
युग कालखंड का मोहताज नहीं
है वह अपने अन्दर ही-
अपनी भावभूमि पर
सतयुग का विस्तृत सागर लिख दें'
आपने लिख दिया नटनागर... इस प्रमाण मांगते कलयुग में विश्वाश और श्रद्धा में उसे पा लिया... प्रेम से भिन्न कहाँ उसका स्वरुप!!!
इस पोस्ट/पत्र के लिए आपका कोटि कोटि आभार... हृदय की अतल गहराईयों से...!
ये पागल लड़की ही यह लिख सकती थी... उसके प्रेम में पागल तो होना ही पड़ता है न ... तभी तो दीखते हैं वो:)
पूजा, आपको ढ़ेर सारा प्यार!
इतनी दीवानगी से लिखी चिट्ठी पढकर तो उसे आना ही पडेगा।
ReplyDelete$ महबूब में रब दिखता है।
ReplyDeleteसनकी-पागल लड़की. सारे उपाधियाँ खुद ही ले लो. कभी कुछ दूसरों के लिए भी छोड़ दो :)
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