सुनो, तुम मुझे इतने सुरूर में दिल्ली के मौसम का हाल न बाताया करो...तुमसे ही प्यार न हो जाए मुझे. दिल्ली से तो जानते हो न किस तरह का इश्क हो रखा है. तुम क्यूँ उस कड़ी में अपने नाम की बोगी जोड़ रहे हो...शंटिंग में जाने वाली है गाड़ी...इसकी कोई मंजिल नहीं है फिलहाल. वहां रात के अँधेरे में मेरी बातें सुनने के अलावा कोई चारा भी नहीं होगा. कैसे रात काटोगे? बताओ भला...नींद भी आएगी?
कोहरा ऐसे मत सुनाओ मुझे...जानते हो न की दिल्ली की ठंढ मेरी कमजोरी है...ना न वैसी नहीं कि हड्डियों में या जोड़ों में दर्द उठ जाए...वैसी कि हाल सुनूं फ़ोन पर और सिसकारी निकल जाए. सिगरेट की तलब तो समझते हो...जैसे कोई लम्बी मीटिंग दो -चार की जगह छह घंटे चल जाए जिसमें सुबह से खाना न खाने के कारण पेट में चूहे कूद रहे हों और पानी पर चल रहे हो...मीटिंग ख़त्म होते ही बाहर निकलते हो और सिगरेट का एक लम्बा कश खींचते हो...कैसा महसूस होता है? जानते हो उस भाव को...मैंने तुम्हारे चेहरे पर कई बार उसे पढ़ा है...सुबह नाश्ता करके निकला करो घर से...कोई समझाता नहीं है ये सब तुम्हें. अपनी माँ से बात कराओ मेरी, मैं कहती हूँ कि बेटा एकदम बिगड़ा हुआ है आपका...न न बाबा, माँ से तुम्हारी सिगरेट और दारू की शिकायत थोड़े करूंगी...पर ये खाने के लिए रोज रोज बोलना तो करेगी माँ...मेरा कौन सा हक है तुमपर.
तुम मेरी दिल्ली की यादों में ऐसे कैसे घुसपैठ करते जा रहे हो...इतनी कम तस्वीरों में कोई कैसे याद आता है बताओ भी भला...तुम्हें क्यूँ फर्क पड़ता है कि मैं दिल्ली से कितना प्यार करती हूँ...बारिश होती है तो बारिश सुनाने लगते हो, कोहरा छाता है तो कोहरा दिखाने लगते हो...तुम जानते भी हो कि तुम्हारी आँखों से इतनी बार देखा है पुराने किले के उस रास्ते को कि अब लगता है कि हर शाम तुम्हारे साथ मैं भी उसी रास्ते चलती हूँ उसी वक़्त. तुम्हारा पार्क, तुम्हारे लैम्पोस्ट्स, तुम्हारी वो बेंच...सबका हिस्सा हो गयी हूँ. तुम्हें कभी दिखी है परछाई सी तुम्हारे साथ चलते हुए उस रास्ते पर...वो मेरी प्रोजेक्शन है...मैं यहाँ होकर भी तुम्हारे साथ होती हूँ उन लम्हों में.
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तुम तो जानते हो मुझे...जैसे कि कोई नहीं जानता...जैसे कि कोई नहीं समझता...तुमसे कौन सा रिश्ता है समझ नहीं आता...पर कुछ तो है कि तुम कहीं जाओगे नहीं इतना पता है. बस इतना प्यार मत करो मुझसे...बड़ी कमजोर सी हूँ, बहुत जल्दी प्यार हो जाता है मुझे. तुमसे प्यार हो गया न तो बाद में मुझसे झगड़ा करोगे...मुझे तुमसे झगड़ा करना एकदम अच्छा नहीं लगता. किसी बात में मेरा मन नहीं लगता फिर...न लिखने में न पढने में...न कुछ शेयर करने में. सारा ध्यान इसी बात पर कि तुमसे मुंह फुला के बैठना है...तुम तो जानते ही हो मुझे ज्यादा देर गुस्सा भी होना नहीं आता. मुझे जल्दी मना क्यों नहीं लेते हो तुम...भला इतनी देर किसी को गुस्सा थोड़े होने देते हैं. तुम एकदम दुष्ट और बदमाश हो!
अबरी आये न हम दिल्ली तो तुमरा कम्बल कुटाई कर डालेंगे...मन कर रहा है तुमसे खूब खूब सारा झगड़ा करने का...पागल लड़के, तुझे मालूम भी है...मुझे तुमसे प्यार हो गया है!
कोहरा ऐसे मत सुनाओ मुझे...जानते हो न की दिल्ली की ठंढ मेरी कमजोरी है...ना न वैसी नहीं कि हड्डियों में या जोड़ों में दर्द उठ जाए...वैसी कि हाल सुनूं फ़ोन पर और सिसकारी निकल जाए. सिगरेट की तलब तो समझते हो...जैसे कोई लम्बी मीटिंग दो -चार की जगह छह घंटे चल जाए जिसमें सुबह से खाना न खाने के कारण पेट में चूहे कूद रहे हों और पानी पर चल रहे हो...मीटिंग ख़त्म होते ही बाहर निकलते हो और सिगरेट का एक लम्बा कश खींचते हो...कैसा महसूस होता है? जानते हो उस भाव को...मैंने तुम्हारे चेहरे पर कई बार उसे पढ़ा है...सुबह नाश्ता करके निकला करो घर से...कोई समझाता नहीं है ये सब तुम्हें. अपनी माँ से बात कराओ मेरी, मैं कहती हूँ कि बेटा एकदम बिगड़ा हुआ है आपका...न न बाबा, माँ से तुम्हारी सिगरेट और दारू की शिकायत थोड़े करूंगी...पर ये खाने के लिए रोज रोज बोलना तो करेगी माँ...मेरा कौन सा हक है तुमपर.
तुम मेरी दिल्ली की यादों में ऐसे कैसे घुसपैठ करते जा रहे हो...इतनी कम तस्वीरों में कोई कैसे याद आता है बताओ भी भला...तुम्हें क्यूँ फर्क पड़ता है कि मैं दिल्ली से कितना प्यार करती हूँ...बारिश होती है तो बारिश सुनाने लगते हो, कोहरा छाता है तो कोहरा दिखाने लगते हो...तुम जानते भी हो कि तुम्हारी आँखों से इतनी बार देखा है पुराने किले के उस रास्ते को कि अब लगता है कि हर शाम तुम्हारे साथ मैं भी उसी रास्ते चलती हूँ उसी वक़्त. तुम्हारा पार्क, तुम्हारे लैम्पोस्ट्स, तुम्हारी वो बेंच...सबका हिस्सा हो गयी हूँ. तुम्हें कभी दिखी है परछाई सी तुम्हारे साथ चलते हुए उस रास्ते पर...वो मेरी प्रोजेक्शन है...मैं यहाँ होकर भी तुम्हारे साथ होती हूँ उन लम्हों में.
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तुम तो जानते हो मुझे...जैसे कि कोई नहीं जानता...जैसे कि कोई नहीं समझता...तुमसे कौन सा रिश्ता है समझ नहीं आता...पर कुछ तो है कि तुम कहीं जाओगे नहीं इतना पता है. बस इतना प्यार मत करो मुझसे...बड़ी कमजोर सी हूँ, बहुत जल्दी प्यार हो जाता है मुझे. तुमसे प्यार हो गया न तो बाद में मुझसे झगड़ा करोगे...मुझे तुमसे झगड़ा करना एकदम अच्छा नहीं लगता. किसी बात में मेरा मन नहीं लगता फिर...न लिखने में न पढने में...न कुछ शेयर करने में. सारा ध्यान इसी बात पर कि तुमसे मुंह फुला के बैठना है...तुम तो जानते ही हो मुझे ज्यादा देर गुस्सा भी होना नहीं आता. मुझे जल्दी मना क्यों नहीं लेते हो तुम...भला इतनी देर किसी को गुस्सा थोड़े होने देते हैं. तुम एकदम दुष्ट और बदमाश हो!
अबरी आये न हम दिल्ली तो तुमरा कम्बल कुटाई कर डालेंगे...मन कर रहा है तुमसे खूब खूब सारा झगड़ा करने का...पागल लड़के, तुझे मालूम भी है...मुझे तुमसे प्यार हो गया है!
bahut hi badiya ,sardi ka asar dikh reha hai
ReplyDelete...पढ़ते-पढ़ते पढ़ने की स्पीड अपनी भी तेज हो गई थी!
ReplyDeleteइस पोस्ट के सारे लेबल्स/टैग्स खुद में एक अब्सट्रैक्ट पोस्ट है..
ReplyDeleteamazing thoughts ... aur pyaar !
ReplyDeletehum to bhai jald hi delhi jaa rahe hain....:)
ReplyDeleteहम भी जा रहे हैं...१९ जनवरी को :) २२ जनवरी को...दो चार दिन टिकेंगे भी :)
ReplyDeleteसब दिखते दिखते छिप जाते
ReplyDeleteढूढ़ो कहीं नजर न आते,
लुका छिपाई खूब मची है,
दिल्ली में अब धुंध बड़ी है,
Bahut khubsurat rachna.,...
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