21 December, 2011

कभी मिलोगे मुझसे?

मैंने जिंदगी से ज्यादा बेरहम निर्देशक अपनी जिंदगी में नहीं देखा...मुझे इसपर बिलकुल भी भरोसा नहीं. दूर देश में बैठे हुए सबसे वाजिब डर यही है कि तुमसे मिले बिना मर जायेंगे. एक बेहद लम्बा इंतज़ार होगा जिसे हम अपना दिल बहलाने के लिए छोटे छोटे टुकड़े में बाँट कर जियेंगे...यूँ ऐसा जान कर नहीं करेंगे पर जीना बहुत मुश्किल हो जाएगा अगर ये जान जायें कि इंतज़ार सांस के आखिरी कतरे तक है.

हो ये भी सकता है कि कई कई बार हम मिलते मिलते रह जायें...कि कोई ऐसा देश हो जो मेरे तुम्हारे देश के बीच हो...जिसमें अचानक से मुझे कोई काम आ जाए और तुम्हें भी...तुम्हें धुएं से अलेर्जी है और मुझे नया नया सिगरेट पीने का शौक़...तो जिस ट्रेन में हमारी बर्थ आमने सामने है...उसमें मैं अपनी सीट पर कभी रहूंगी ही नहीं...कि मुझे तो सिगरेट फूंकने बाहर जाना होगा. जब मैं लौटूं तो तुम किसी अखबार के पीछे कोई कहानी पढ़ रहे हो...और जिंदगी, हाँ हाँ वही डाइरेक्टर जो सीन में दीखता नहीं पर होता जब जगह है...जिंदगी अपनी इस लाजवाब कहानी की बुनावट पर खुश जो जाए. सोचो कि उसी ट्रेन में, तुम्हारी ही याद में सिगरेट दर सिगरेट फूंकती जाऊं और सपने में भी ना सोचूं कि जो शख्स सामने है बर्थ पर तुम ही हो. जिंदगी के इन खुशगवार मौकों पर हमें यकीन नहीं होता न...तो कह ये भी सकते हैं कि जिंदगी जितनी बुरी डायरेक्टर है...हम कोई उससे कम बुरे एक्टर भी नहीं हैं. हमेशा स्क्रिप्ट का एक एक शब्द पढ़ते चलते हैं...थोड़ी देर नज़र उठा कर अपने आसपास देखें तो पायेंगे कि हमारी गलती से कई हसीन मंज़र छूट गए हैं हमारे देखे बिना.

कोई बड़ी बात न होगी कि उस शहर की सड़कों पर हम पास पास से गुजरें पर एक दूसरे को देख ना पाएं...तब जबकि मेरी भी आदत बन चुकी हो इतने सालों में कि हर चेहरे में तुम्हें ढूंढ लेती हूँ पर जब तुम सामने हो तो तुम्हें पहचान ना पाऊं कि अगेन, जिंदगी पर भरोसा न हो कि वो तुम्हें वाकई मेरे इतने करीब ले आएगी. उस अनजान शहर में जहाँ हमें नहीं मिलना था...जहाँ हमें उम्मीद भी नहीं थी मिलने की...मैं अपने उन सारे दोस्तों को फोन करती हूँ जिनके बारे में जानती हूँ कि उन्होंने मुझे इश्क हो जाने की दुआएं दी होंगी...सिगरेट के अनगिन कश लगते हुए फ़ोन पर बिलखती हूँ...कि अपनी दुआएं वापस मांग लो...इश्क मेरी जान ले लेगा. एक सांस भी बिना धुएं के अन्दर नहीं जाती...एक एक करके सारे दोस्तों को फोन कर रही हूँ...सिगरेट का पैकेट ख़त्म होता है, नया खुलता है, शाम ढलती है...कुछ दिखता नहीं है धुएं की इस चादर के पार...मैंने अपनेआप को एक अदृश्य कमरे में बंद कर लिया है और उम्मीद करती हूँ कि तुम्हारी याद यहाँ नहीं आयगी...इस बीच शहर सो गया है और बर्फ पड़नी शुरू हो गयी है. स्कॉच का पैग रखा है...प्यास लगी है...रोने से शरीर में नमक और पानी की कमी हो जाती है, उसपर अल्कोहल से डिहाईडरेशन भी हो रहा है.

अगली बदहवास सुबह सर दर्द कम करने के लिए कॉफ़ी पीने सामने के खूबसूरत से कॉफ़ी शॉप पर गयी हूँ...तुम्हारे लिखे कुछ मेल के प्रिंट हैं...कॉफ़ी का इंतज़ार करती हुयी पढ़ रही हूँ...चश्मा उतार रखा है टेबल पर. इस अनजान शहर में किसी चेहरे को देखने की इच्छा नहीं है...कोई भी अपना नहीं आता यहाँ...सामने देखती हूँ...सब धुंधला है...दूर की नज़र कमजोर है न...कोई सामने आता हुआ दिखता है...सफ़ेद कुरते जींस में...तुम्हारी यादों के बावजूद मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आते हैं जब मेरा सबसे पसंदीदा हुआ करता था कुरते और नीली जींस का ये कॉम्बिनेशन. ऐसा महसूस होता है कि कोई मेरी ओर देख कर मुस्कुराया है. मैं चश्मा पहनने के लिए उठाती हूँ कि सवाल आता है...आपके साथ एक कॉफ़ी पी सकता हूँ...तुम जिस लम्हे दिखते हो धुंधले से साफ़ ठीक उसी लम्हे तुम्हारी आवाज़ तुम्हारे होने का सबूत दे देती है.

एक लम्हा...अपनी बाँहें उठा चुकी हूँ तुम्हें गले लगाने के लिए फिर कुछ अपनी उम्र का ख्याल आ जाता है कुछ शर्म...तुम्हारी आँखों में झाँक लेती हूँ...अपने जैसा कुछ दिखता है...कंधे पे हाथ रखा है और सेकण्ड के अगले हिस्से में मैं हाथ मिलाती हूँ तुमसे. तुमने बेहद नरमी से मेरा हाथ पकड़ा है...मैं देखती हूँ कि तुम्हारे हाथ बिलकुल वैसे हैं जैसे मैंने सोचे थे. किसी आर्टिस्ट की तरह खूबसूरत, जैसे किसी वायलिन वादक के होते हैं...आमने सामने की कुर्सियों पर बैठे हैं. कहने को कुछ है नहीं...बहुत सारा शोर है चारों तरफ...कैफे में कोई तो गाना बज रहा था...ठीक इसी लम्हे ख़त्म होता है...अचानक से जैसे बहुत कुछ ठहर गया है...मुझे छटपटाहट होती है कुछ करने की...तुम्हारे माथे पर एक आवारा लट झूल रही है...मैं उँगलियों से उसे उठा कर ऊपर कर देती हूँ...कैफे में नया गाना शुरू होता है...ला वि एन रोज...फ्रेंच गाना है...जिसका अर्थ होता है, जिंदगी को गुलाबी चश्मे से देखना...मेरा बहुत पसंदीदा है...तुम जानते हो कि मुझे बेहद पसंद है...तुम भी कहीं खोये हुए हो.

ये कितनी अजीब बात है कि जितनी देर हम वहाँ हैं हमने एक शब्द भी नहीं कहा एक दूसरे को...यकीन नहीं होता कि कुछ शब्द ही थे जो हमें खींच के पास लाये थे...कुछ अजीब से ख्याल आ रहे थे जैसे कि क्यूँ नहीं तुम मेरा हाथ यूँ पकड़ते हो कि नील पड़ जाएं...कि किसी लम्हे मुझे कहना पड़े...हाथ छोड़ो, दुःख रहा है...कि मैं सोच रही हूँ कि मैंने कितनी सिगरेट पी है...और तुम्हें सिगरेट के धुएं से अलेर्जी है...या कि तुमने सफ़ेद कुरता जो पहना है, क्या मैंने कभी तुम्हें कहा था कि मेरी पसंदीदा ड्रेस रही है कोलेज के ज़माने से और आज मैंने इत्तिफाकन सफ़ेद कुरता और नीली जींस नहीं पहनी है...ये लगभग मेरा रोज का पहनावा है. कि तुम सामने बैठे हो और जिंदगी से शिकायत कर रही हूँ कि तुम पास नहीं बैठे हो!

इसके आगे की कहानी नहीं लिख सकती...मुझे नहीं मालूम जिंदगी ने कैसा किस्सा लिखा है...पर उसकी स्क्रिप्टराइटर होने के बावजूद मेरे पास ऐसे कोई शब्द नहीं हैं जो लिख सकें कि किन रास्तों पर चल कर तुमसे अलग हुयी मैं...कि तुमसे मिलने के बाद वापस कैसे आई...कि तुम्हारे जाने के बाद भी जीना कैसे बचता है...इश्क में बस एक बार मिलना होना चाहिए...उसके बाद उसकी याद आने के पहले एक पुरसुकून नींद होनी चाहिए...ऐसे नींद जिससे उठना न हो. 

15 comments:

  1. लहरों का स्वभाव अचरज में डालता है, चारों विमाओं में गति रहती है उनकी, अनिश्चित सी निश्चितता।
    तुम्हें पढ़ना लहरों को देखने सा लगता है, एक ऊँची, अगली और ऊँची, फिर सदियों की प्रतीक्षा, अब अनियन्त्रित उफान।

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  2. क्या कहूँ पूजा .. हर बार आपको पढ़ती हूँ जब भी वक़्त रहता है .. और हर बार कहीं खो जाती हूँ (थोड़ी देर को ही सही) और निह्स्तेज़ ताकती हूँ अपने उस बेबस आसमान को .. जो अब सिर्फ मेरा है

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  3. कभी कभी खुद को भी ये लगे है जैसे ये ज़िन्दगी एक आत्मालाप सी होती जा रही है....

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  4. amazing..so soooo touched i am :)

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  5. जिंदगी कभी बेरहम निर्देशक तो कभी सच्ची दोस्त होती है. अनगिनत रंग है इसके और रंग भी ऐसे जो पल-पल में बदलते रहते है.

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  6. tum ho koun yaar...pichli baar kishore choudharyji ke account par tumhare likhe ko pasand kiya tha aur tumhara shukriya pakar achcha laga tha. aaj fir vaisi hi post hai...kamaal, safar par jaane se theek pahle.

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  7. रोचक प्रवाहमयी रचना,जीवन की तरह सगं बहा ले गई। अद्भुत...

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  8. जिंदगी जितनी बुरी डायरेक्टर है...हम कोई उससे कम बुरे एक्टर भी नहीं हैं. हमेशा स्क्रिप्ट का एक एक शब्द पढ़ते चलते हैं...थोड़ी देर नज़र उठा कर अपने आसपास देखें तो पायेंगे कि हमारी गलती से कई हसीन मंज़र छूट गए हैं हमारे देखे बिना...
    ...sach... jindagi n jaane kitne hi ubad-khabad aur pyarbhare raahon se yun hi gujar kar nikal jaati hai..
    ..sundar prastuti..

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  9. आपकी प्रवि्ष्टी की चर्चा कल बृहस्पतिवार 22-12-2011 के चर्चा मंच पर भी की या रही है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

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  10. तुम्हे पढना जैसे लहरों के साथ बह जाना ! शब्द हैं या समंदर !

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  11. बहुत कमाल की लेखनी. एक सांस में पढ़ गई. ज़िन्दगी को क्या चाहिये ये बस मन चाहता है मन जानता है. बधाई.

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  12. बहुत ही बढ़िया!!!!लाईट, कैमरा, ज़िन्दगी!!!!!

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  13. Pure Pure Pure awesome.

    ऐसा लग रहा है किसी बहुत बड़े प्रोफेशनल राइटर को पढ़ रहा हूँ.
    यकीन करो ये एक पोस्ट तुम्हें ब्लोगर से बहुत ऊपर उठाने का माद्दा रखती है. दुःख था की पहले क्यूँ नहीं पढ़ा. एक एक शब्द, वाक्य विनायास, पेरा अगर 'निर्मल वर्मा' या 'मन्नू भंडारी' का कहकर पढ़ा दिया जाए मुझे तो भी में यकीन कर जाऊँगा.


    Highly Proffesional writing. Highly appreciated.

    I can't quote a single line or paragraph....


    Read it throughly more than twice.

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