कल कुणाल कलकत्ता से वापस आ रहा था, चार दिन के लिए ऑफिस का काम था. कह के तो सिर्फ दो दिन के लिए गया था, पर जैसा की अक्सर होता है, काम थोड़ा लम्बा खिंच गया और रविवार की रात की जगह मंगल की रात को वापस आ रहा था.
मैंने कार वैसे तो पिछले साल जनवरी में सीखी थी, पर ठीक से चलाना इस साल शुरू किया. अक्सर कार से ही ऑफिस जा रही हूँ. इसके पीछे दो कारण रहे हैं, एक तो मेरा ऑफिस १० किलोमीटर से दूर जाने वाली जगह हो जा रहा है, और दूसरा स्पोंडीलैटिस का दर्द जो बाइक चलाने से उभर आता है. बंगलोर की सडकें बड़ी अजीब हैं...ये नहीं की पूरी ख़राब है, एकदम अच्छी सड़क के बीचो बीच गड्ढा हो सकता है. ऐसा गड्ढा किसी भी दिन उग आता है सड़क में. तो आपकी जानी पहचानी सड़क भी है तो भी आप निश्चिंत हो कर बाइक तो चला ही नहीं सकते हैं. अब मैं कार अच्छे से चला लेती हूँ. हालाँकि ये सर्टिफिकेट खुद को मैंने ही दिया है...और कोई मेरे साथ बैठने को तैयार ही नहीं होता. कुणाल के साथ जब भी कहीं जाती हूँ तो वही ड्राइव करता है. उसका कहना है कि हफ्ते भर ऑफिस की बहुत परेशानी रहती है उसे, फिर वीकेंड पर टेंशन नहीं ले सकता है. मैं कभी देर रात चलाती भी हूँ तो सारे वक़्त टेंशन में रहता है.
वर्तमान में लौटते हैं...सवाल था एअरपोर्ट जाने का...वैसे मेरे ममेरे भाई भी इसी शहर में रहते हैं तो पहले सोचा था उनके साथ चली जाउंगी. फिर पता चला उन्हें ऑफिस में बहुत काम है...और कुणाल की फ्लाईट ८ बजे पहुँच रही थी. इस समय ट्रैफिक भी इतना रहता है कि जाने में कम से कम दो घंटे लगते. आने के पहले कुणाल से पूछा था की क्या करूँ, बस से आ जाऊं तो उसने मना कर दिया था. बंगलौर में एअरपोर्ट जाने के लिए अच्छी वोल्वो बसें चलती हैं, जिनसे जाना सुविधाजनक है. अब जैसे ही कुणाल ने फ्लाईट बोर्ड की हमारा मन डगमग होने लगा कि जाना तो है. पहले तो सब्जी वगैरह बनाने की तैयारी कर रही थी, दूध फाड़ के पनीर निकाल लिया था और उसे टांग कर छोड़ दिया था. ताज़े पनीर से सब्जी में बहुत अच्छा स्वाद आता है.
अब मैं दुविधा में थी...या तो खाना बना सकती थी क्यूंकि पता था कुणाल और साकिब(उसका टीममेट) ने सुबह से कुछ ढंग का खाया नहीं था...तो एकदम भूखे आ रहे थे...या फिर मैं अकेले एअरपोर्ट जा सकती थी...जो कि कुणाल ने खास तौर से मना किया था. अब अगर आप मुझे जरा भी जानते हैं तो समझ गए होंगे की मैंने क्या किया होगा. रॉकस्टार के गाने सीडी पर बर्न किये और जो कपड़े सामने मिले एक मिनट में तैयार हो गयी...साथ में हैरी पोटर की किताब भी...की अगर इंतजार करना पड़े तो बोर न होऊं.
मैंने कभी इतनी लम्बी दूर तक गाड़ी नहीं चलाई थी...और तो और हाईवे पर सबके साथ होने पर भी नहीं चलाई थी...एअरपोर्ट नैशनल हाईवे नंबर सात से होते हुए जाना होता है. इस रास्ते पर जाने का कई बार मेरा दिल किया है...पर हमने खुद को समझा कर कहानी लिखने में संतोष कर लिया था. खैर...इतना किन्तु परन्तु हम करते तो इस दर्जे के मूडी थोड़े न कहलाते.
रास्ते में बहुत ट्रैफिक था...पर गाने सुनते हुए कुछ खास महसूस नहीं हुआ. रोज की आदत भी है सुबह ऑफिस जाने की. मज़ेदार बात ये हुयी की आजकल मेट्रो के लिए या फ़्लाइओवेर बनाने के लिए सड़कें खुदी हुयी हैं. पहले जब भी इस रास्ते पर गयी हूँ एकदम अच्छी सड़कें हैं. रेस कोर्स रोड तक तो सही थी, गोल्फ ग्राउंड भी आया था, उसके बाद विंडसर मैनर का ब्रिज भी आया था...आगे एक फ़्लाइओवेर आया, यहाँ मैं पूरा कंफ्यूज थी कि मैं कोई गलत रास्ता लेकर आउटर रिंग रोड पर आ गयी हूँ. रास्ता इतना ख़राब मैंने कभी नहीं देखा था इधर.
अब चिंता होने लगी...इतने ट्रैफिक में अगर गलत रस्ते पर आ गयी हूँ तो वापस जाने में देर हो जाएगी और कुणाल की फ्लाईट लैंड कर जायेगी...तब क्या कहूँगी कि मैं कहीं खोयी हुयी हूँ. फ़्लाइओवर पर ही गाड़ी रोकी और बाहर निकल कर पीछे वाली कार वाले से पूछा 'ये एयरपोर्ट रोड तो नहीं है न?' पूरा यकीन था कि बोलेगा तुम कहीं टिम्बकटू में हो...पर उसने कहा कि ये एयरपोर्ट रोड ही है. जान में जान आई.
उसके बाद अच्छा लगा चलाने में...डर तो खैर एकदम नहीं लगा. ७० के आसपास चलायी...गड़बड़ बस ये हुयी कि कभी पांचवे गियर में चलने की नौबत ही नहीं आई शहर में तो मुझे लगा था कि वो गियर ८० के बाद लगाते हैं. आकाश को फोन भी किया पूछने के लिए तो उसने उठाया नहीं. खैर...मैं दो घंटे में पहुँच गयी थी एअरपोर्ट. आराम से वहां काटी रोल खाया और मिल्कशेक पिया.
कुणाल जब लैंड किया तो मैंने कहा की मैं एअरपोर्ट में हूँ. एकदम दुखी होके बोलता है 'अरे यार!'. और फिर जब बाहर आया तो मैंने कहा ...कुणाल वाक्य पूरा करो...मैं एअरपोर्ट... और उसने कहा कार से आई हूँ. मैंने कहा हाँ...अब तो बस...उसकी शकल, क्या कहें...बाकी लोगों के सामने डांटा भी नहीं. बस बोला की ये गलत बात है यार....ऐसे भागा मत करो.
बस...अच्छी रही मेरी लौंग ड्राइव...और अब मैं उस झील किनारे जाउंगी किसी दिन. जब जाउंगी फिर एक कहानी बनेगी....देखते हैं कब आता है वो दिन.



