निर्मोही रे
तन जोगी रे
मन का आँगन
अँधियारा
निर्मोही रे
लहरों डूबे
सागर ढूंढें
हरकारा
निर्मोही रे
आस जगाये
सांस बुझाए
इकतारा
निर्मोही रे
रीत निभाए
प्रीत भुलाए
आवारा
निर्मोही रे
गंगा तीरे
बहता जाए
बंजारा
?
ReplyDeleteSundar !
ye sawal hai?
ReplyDeletenahi. ? ka matlab aawaz kahan hai ?
ReplyDeletebaanki bahut khubsurat !
निर्मोही रे
ReplyDeleteपढ़ ले ये कविता
मोह टूट जायेगा
मोक्ष मिल जायेगा रे
wah bahut sunder shabdo ka prayog...!!
ReplyDeletewah bahut sunder shabdo ka prayog...!!
ReplyDeleteकल 12/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
'निर्मोही' को बहुत सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है आपने.
ReplyDeleteभावपूर्ण अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत खुबसूरत! Loved it!
ReplyDeletedo u charge for online tutorials??? havent been able to write in months...and u come out with such beauties everyday...not fair
ReplyDeleteयह शब्द संयोजन बड़ी सरल और मधुर गेयता से भरा है। स्वयं गाकर या किसी से गवाकर देखिये।
ReplyDeleteप्रवीण जी... इसे गा के रिकोर्ड किया था पर झिझक से खुद को उबार नहीं पायी और blog पर पोस्ट नहीं किया...शायद किसी दिन और :) ये पंक्तियाँ धुन के साथ ही आई थीं...पहले धुन आई या पहले शब्द कह नहीं सकती.
ReplyDeleteनिर्मोही की सर्वग्राह्य परिभाषा, निर्झर काव्य में ढल गई . माँ आल्हादित हुआ . आभार
ReplyDeleteमाँ ---मन
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत संयोजन.
ReplyDeleteशब्दों का सुन्दर प्रयोग किया है आपने.
ReplyDeleteवाह
ReplyDeletethode shabdon mein sundar kavita
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