जिंदगी के सबसे खुशहाल दिनों में
कहीं, एक नदी सी खिलखिलाती है
सुनहरी धूपों में
गिरती रहती है मन के किसी गहरे ताल में
झूमती है अपने साथ लेकर सब
नयी पायल की तरह
कहीं तुम्हारी आँखों में संवरती हूँ तो
मन का रीता कोना भरने लगता है
धान के खेत की गंध से
पल याद बहती है, माँ की लोरी जैसी
पोंछ दिया करती है गीली कोर
टूटता है एक बूँद आँसू
उलीचती हूँ अंजुली भर भर उदासियाँ
मन का ताल मगर खाली नहीं होता
मेरी हथेलियाँ छोटी हैं
लिखने को कितनी तो कहानियां
सुनाने को कितनी खामोशियाँ
पर, मेरी आवाज़ अच्छी नहीं है