29 December, 2010

जिगसा पजल

वो हमेशा की तरह उस झील के किनारे पर खड़ी थी...बंगलोर शहर से बाहर नए एयरपोर्ट से थोड़ी दूर, नैशनल हाइवे नंबर सात  पर पहाड़ियों के पांवों तले लेटी वो झील जिया की जिंदगी में बहुत ख़ास हो गयी थी. उस झील के पार एयरपोर्ट था और हवाईजहाज जब गुजरते थे तो जैसे झील के पानी में हलचल मच जाती थी. झील से थोड़ा ही हट कर रेलवे लाइन भी गुज़रती थी और पास में हाइवे था. जिया को लगता था कि शहर में बस एक यही जगह है जिधर से शहर पहुँचने के तीनो रास्ते दिखते हैं...एक तरह का संगम...प्रयाग...मीटिंग पॉइंट.

नॅशनल हाइवे नंबर सात कन्याकुमारी तक जाता था...झील के किनारे बैठी वो अक्सर सोचती थी कि कार लेकर चलती जाऊं, चलती जाऊं जब तक कि सड़क ख़त्म ना हो जाए...और अगर वो NH 7 पर ड्राइव करती जाए तो सच में ऐसी जगह पहुँच जायेगी जहाँ से आगे जाने का कोई रास्ता नहीं होगा. सामने उछाल मारता समंदर...वैसा ही होगा जैसी ये झील है. समंदर पार करना बहुत मुश्किल है. कन्याकुमारी पहुँच कर आगे जाने का कोई रास्ता नहीं होता. सब ख़त्म हो जाता है पानी की कुछ लहरों तक आ कर. उनके रिश्ते की तरह.

अभी कल ही की बात लगती है जब तुषार और वो शाम को काफी सालों बाद मिले थे. उसे बहुत दिनों बाद बर्फ का गोला नज़र आया था एक ठेले पर तो वो काफी खुश थी...उसपर तुषार को सर्दी थी तो वो गोला नहीं खा सकता था...उसे चिढ़ा कर खाने में और भी मज़ा आ रहा था. शाम बेहद खूबसूरत थी, मीठी, खट्टी प्यारी...एक हमेशा याद रहने वाली शाम के सारे रंग मिले हुए थे. सड़क किनारे ऊँचे पेवमेंट पर वो खामोश ही बैठे थे. दिसंबर महीने की हलकी ठंढ थी जो शाम ढलते बढ़ती जा रही थी.

तुषार ने बिना किसी भूमिका के ही कह दिया था...जिया, अगर मैं कहूँ कि हम आखिरी बार आज मिल रहे हैं तो?. उसे लगा वो मज़ाक कर रहा है पर उसकी आवाज़ थोड़ी ठहरी हुयी थी इसलिए डर भी लगा कि कहीं सीरियस बात तो नहीं कर रहा...तुषार बोलता गया...अब तुम्हारी शादी हुयी यार...डेढ़ साल होने को आये. तुम्हें चाहिए कि अपनी शादी पर ध्यान दो. मैं रहूँगा तो खामखा कभी अपने पति से लड़ पड़ोगी मेरे लिए. मैं जानता हूँ, हर लड़का इन्सेक्युर होता है. वो तुम्हारी पूरी दुनिया होना चाहिए, तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड, तुम्हारा सब कुछ. मेरी कोई जगह नहीं है तुम्हारी जिंदगी में. यूँ तो जिया ने कोशिश की, बात को परे हटाने के...हम आखिरी बार मिल रहे हैं...पागल हो गया है, मर नहीं जाएगा मेरे बिना! पर असल में ये बात उसने अपने खुद के लिए कही थी.

तुषार ने लम्हे में सब कह दिया...कहने को बचता क्या था फिर. प्यार, शादी सब कुछ जैसे पानी में रंगों की तरह घुलने लगा. कला खट्टा गोला में हर स्वाद अलग महसूस होने लगा, कभी खट्टा, कभी तीखा, कभी मीठा. बहुत से मंज़र आँखों के सामने तैर गए, कितने झगड़े...कितना मनाना और कितने सारे साथ के पिकनिक वाले दिन. शादी के दिन कितना तो रोई थी तुषार से लिपट कर. याद बस वो लम्हा आता था...जब उसने कहा था, पागल मैं थोड़े कहीं जा रहा हूँ, आता रहूँगा तुझसे मिलने बंगलोर...तू शादी कर रही है, मर थोड़े रही है. मैं हमेशा तेरे साथ हूँ रे...पापा ने भी विदाई के समय यही कहा था. कि हम आते रहेंगे मिलने. पर पापा तो छुट्टी कहाँ मिली...तुषार ही आया था, साल भर बाद लगभग...छोटे भाई के साथ घर से भाईदूज का सामान लेकर.

जिया ने कुछ नहीं कहा...कहना चाहती थी, कि मैं कोई गर्लफ्रेंड थोड़े हूँ जो ब्रेक अप हो जाएगा हमारा...दोस्ती कोई ख़त्म हो जाने वाली चीज़ थोड़े है. कि एक दिन उठ कर तुम बोल दो कि तुम्हारी पूरी जिंदगी कोई और है...मेरी कोई जगह नहीं है. सिर्फ इसलिए कि किसी से मैंने शादी की है, उससे बेहद प्यार करती हूँ वो मेरी पूरी दुनिया नहीं ना हो जाएगा. मम्मी है, पापा हैं, भाई है...घर के इतने सारे लोग, नाना नानी, भाई बहन और कुछ खास दोस्त. सब मिलकर मेरी पूरी दुनिया बनाते हैं. इस जिगसा पज़ल का तुम एक जरूरी हिस्सा हो...तुम्हारे जाने से मेरी दुनिया में एक खाली प्लाट रह जाएगा.

पर ऐसे एकतरफ़ा निर्णय ले लेने पर कहने को क्या बचता है. अगर सच में उसे लगता है कि उसे मेरी जिंदगी में नहीं होना चाहिए तो मैं उसे नहीं रोकूंगी. लग कुछ वैसा रहा था जैसे जब पहली बार उसने बताया था कि वो होस्टल जा रहा है. उसका जाना जरूरी था, पढ़ना था...आगे कुछ अच्छा बनना था. जाना तो पड़ेगा ही. ठीक है जाओ...फोन करोगे कि नहीं? जिया को लग रहा था कि जैसे सब कुछ धीमा हो गया है...पलकें भी स्लो मोशन में ही झपक रही थीं. बर्फ का गोला पिघलते वो भी जैसे  जम सी ही गयी थी...सोच रही थी तुषार का मतलब  बर्फ होता है...

जाते वक़्त तुषार को हग करते वक़्त उसने मसहूस किया कि उसने बस एक लम्हे भर ज्यादा उसे पकड़े रखा है, हर बार से बस थोड़ा सा टाईटली हग किया है...उस वक़्त उसे महसूस हो गया कि तुषार अब वापस सच में नहीं आएगा मिलने. उसे पता नहीं क्यों उस वक़्त उस झील की याद आई.

NH7 के साथ चलती उस झील पर लगभग हर महीने किसी ना किसी दिन जाने का दिल कर आता है उसका. झील किनारे खड़े होकर वो बहुत सोचती है...जिसमें ये बातें भी आती हैं कि तुषार अब जाने कैसा दिखता होगा...बहुत साल हो गए बंगलोर आके बसे हुए. कभी कभी बच्चों के साथ भी आती है वहां, उन्हें खेलते हुए देख कर यादों को दुलराती है. जिंदगी के मुश्किल इक्वेशन अब भी मुश्किल लगते हैं उसे. ये रिश्तों की पेचीदगियां...परत दर परत सामाजिकता का खोल उसने ना अपने ऊपर चढ़ने दिया ना किसी और रिश्ते पर.

जब भी उसका झील पर जाने का मन करता है, वो जानती है कि तुषार बंगलोर आया हुआ है...हर बार वो वहां खड़ी होकर सोचती है कि इस बार कैसे आया होगा...फ्लाईट से, कर ड्राइव करके या ट्रेन से? उसकी आँखें अपने जिगसा पजल के हिस्से को बेतरह मिस करती हैं.

9 comments:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (30/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  2. कई बार एयरपोर्ट जाते समय वह झील देखी, मन कभी इतना कल्पनाशील नहीं हुआ।

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  3. ऐसी बातें कल्पना तो नहीं कहला सकती..
    (बहुत सोचने के बाद बस इतना ही लिख पाया टिप्पणी में)

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  4. जिंदगी है ना यह... जिगसा पज़ल का कोई ना कोई कोना खाली रह ही जाता है.. भाषा पर पकड़ अच्छी है.. लगा आप स्वयं कह रही हो सामने से...

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  5. kaisi ho? acha likne lagi ho... kabhi sochta tha kabhi baat nahi karunga, par sochta hu dost hi to ho.

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  6. पूजा जी ,
    बहुत प्रवाह में लिखा है आपने ..ज़िंदगी का एक सच.. और बहुत खूबसूरती से अपनी सोच को शब्द दिए..

    ये रिश्तों की पेचीदगियां...परत दर परत सामाजिकता का खोल उसने ना अपने ऊपर चढ़ने दिया ना किसी और रिश्ते पर.

    एक जिगसा पज़ल ..शीर्षक से मैंने भी एक कविता लिखी थी... इसीलिए आपका ये शीर्षक मुझे बहुत आकर्षित कर गया.. और सौभाग्य मेरा कि एक उत्कृष्ट कृति पढ़ने को मिली...

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  7. Hi Pooja !!!
    Kya kahu ..... Bus ....
    Wish a very beautiful, blissful, creative and full of love, NEW YEAR. Keep it on ... Keep it up.
    fursat ho to pls visit

    http://saintdevils.blogspot.com/

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  8. ज़िंदगी सच ही जिगसा पज़ल होती है और उसका एक खाना खाली हो गया ..बहुत संवेदनशील कहानी

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  9. बस लगा कि जैसे धर्मवीर भारती को पढ रहा हूँ……गुनाहों का देवता या सूरज का सातवाँ घोड़ा के किरदार हों दोनों--ज़िया और तुषार, वैसी ही शिद्दत से रगों में महसूस हुई कहानी !

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