'तुम समझ नहीं रहे हो, मुझे अभी बात करनी है...मुझे जब बात करनी होती है तो करनी होती है, अगर मैं बात ना करूँ तो पागल हो जाउंगी. मैं जानती हूँ देर रात है...तुम्हें भी नींद आ रही है, तुम प्लीज, फ़ोन को ऑन करके सो जाओ...मैं अपनी बात कह के फोन काट दूँगी, प्रोमिस. देखो मेरा कोई भी नहीं है तुम्हारे अलावा...थोड़ा तो समझने की कोशिश करो, मैं कहाँ जाउंगी. मुझसे कोई बात भी नहीं करता'
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कितना मुश्किल होता है ना...ऐसे खुद में घुटना, किसी का ना होना जिससे आप कभी भी बात कर सकें. गहरी नींद से उठा कर...पर ऐसा एक बचपन भर ही होता है. उसके बाद? वो पागलों जैसे हँसी थी, उसके बाद दुनियादारी होती है. बात करने का वक़्त होता है, प्यार करने की उम्र होती है और प्रोपोज करने का मोमेंट होता है...ये सब एकदम सही समय पर होने चाहिए. इधर उधर नहीं हो सकता...एकदम नहीं. अरे समाज बिखर नहीं जाएगा जिसको जो मन करे वो करने लगे तो. नियम होते हैं, सामाजिकता होती है...तुम मेरी कोई नहीं हो...पहले इस रिश्ते का नाम लाओ फिर मैं बात करूँगा तुमसे.
सब कुछ छूटता जाता है...तुम मानोगे नहीं पर हम हर लम्हा अकेले होते जाते हैं. पहले दोस्तों से बातें कम होती हैं, फिर बंद...फिर एक ख़ास कोई होता है जिंदगी में, बस. फिर धीरे धीरे उससे भी बातें बंद हो जाती हैं, हाँ ख़त्म नहीं होतीं, बंद हो जाती हैं. फिर हम क्या करते हैं मालूम है? संगीत में अपनी रूचि ढूंढ लेते हैं और जब कोई हमारी बात सुनने को नहीं होता है हम कोई गीत सुन लेते हैं, दिल को समझा लेते हैं कि कोई हमसे बात कर रहा है. इससे भी ज्यादा अकेले होते हैं तो कोई शौक़ पाल लेते हैं, कभी पेंटिंग, कभी गार्डेनिंग...जो ज्यादा डेस्पेरेट हो जाते हैं वो तो जानवर भी पाल लेते हैं. बताओ गोल्डफिश से बात करने लगते हैं लोग...वैसे देखो तो दीवारों से बात करने से तो बेहतर ही है...नहीं?
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बच्चा एक एक शब्द करके बोलना सीखता है. फिर छोटे वाक्य, धीरे धीरे अटकते हुए एक पूरा वाक्य जिस दिन कहता है उस दिन कितनी ख़ुशी होती है सबको. बड़े होने के बाद हम एकदम उसी तरह खामोश होना सीखते हैं...सबसे पहले जाती है हँसी की आवाज़, खिलखिलाना जिससे कि कमरे खुशगवार हो जाएँ फिर धीरे धीरे जाता है किसी को पुकारना...एक एक शब्द करके हम खामोश होना सीखते हैं और आखिर कर एक ऐसा दिन आता है जब ख़ामोशी हमारे दिल के अन्दर पैठ जाती है. वहां से वापस आना मुमकिन नहीं होता. वहां लोग पहाड़ हो जाते हैं, खामोश...वहां से बस अनुगूंज आती है. तुम्हारी खुद की आवाज़, लौट कर आती है...उसमें मेरा कुछ नहीं होता. तुम अपनी दुनिया में इतने गुम होते हो कि सुन भी नहीं पाते कि मैंने जवाब देना बंद कर दिया है...कि तुम्हारे सवाल अनाथ हो गए हैं.
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जाते जाते तुम्हें भार मुक्त करना चाहती थी...मेरी आखिरी ख्वाहिश है कि मेरी कवितायें जला दीं जायें, मैं नहीं चाहती कि मेरे जाने के बाद मेरी आवाज़ का कोई टुकड़ा इन वादियों में भटकता फिरे, गुमराह हो. मैं पूरी तरह अपनी ख़ामोशी के आगोश में जाना चाहती हूँ. मैं अपने पूरे होश-ओ-हवास में वसीयत करती हूँ कि जहाँ कहीं भी मेरे लिखे अलफ़ाज़ हैं वो सिर्फ मेरी जिंदगी के हैं, कोई कमउम्र नौजवान उन्हें पढ़कर इश्क को हकीकत ना समझ बैठे. इश्क एक गहरी ख़ामोशी में डूबने का नाम है...और इस घुटती साँस में हम अकेले होते हैं...सब अकेले होते हैं.
लेकिन गैर (बिग बॉस) के घर में ताक-झंक की पसंद वालों की संख्या कम नहीं.
ReplyDeleteमन को व्यक्त करना बचपना लग सकता है पर मन का आग पीते रहना घातक। निर्णय हमारा है, काष्ठवत हो जायें या लहरें बनकर उमड़ते रहें।
ReplyDeleteमन को व्यक्त करना बहुत कठिन है ...तुम्हारे सवाल अनाथ हो गए ...शीर्षक बहुत कुछ कह गया .....शुक्रिया
ReplyDeleteआपके उन्वान में सारा शगुफ्ता के मिजाज़ की झलक है- तसलसुल उम्दा है-
ReplyDeleteआपके ब्लॉग का नाम सही है। यहाँ तो पोस्ट दर पोस्ट भावनाओं की लहरें उठती रहती हैं।
ReplyDeleteक्या कर सकते हैं भला..किसी शोक के शोक मे दो मिनट की जिंदगी को मौन की अंधी तलहटी मे दफ़ना देने के अलावा...किसी गौरैया के सारे पंख झड़ जाते हैं वक्त की आँधी मे..उड़ान तब भी बाकी रह जाती है..कहीं...
ReplyDeleteहाँ ... अनुगूंज ही थी जिसे किसी का जवाब समझा था... सच..अपनी भावनाएं ही लौट लौट कर आती हैं..अपनी भावनाएं ही प्रतिध्वनित होती हैं
ReplyDeleteआइना आइना सा लगता है
उसमे खुद का गुमाँ सा लगता है
उम्र का एक दौर ऐसा भी
चाँद भी आशना सा लगता है
शाम को एक दोस्त का फोन आया
ReplyDeleteउसने कहा लहरें ब्लॉग अवसम है. मैं वोलीबाल के अगले मैच की तैयारी में था. दोस्त को इतना ही कह पाया कि यही एक मात्र रीयल ब्लॉग है जो किसी स्क्रिप्ट राइटर को परिभाषित करता है.
सच मानों कोई ऐसी पोस्ट नहीं होती जो छू न जाये. मैं कई बार सोचता हूँ कि भला हुआ जो भारत सरकार ने नौकरी दे दी वरना इतने क्रिएटिव लोगों से कैसे मुकाबला करते और रोजी रोटी का जुगाड़ कर पाते ?
इस साल के सबसे पसंदीदा ब्लोग्स में सबसे अधिक में लहरें है.
u r too good puja.......bahut koshish ki tumhe contact karne ki par nahi ho paya.....tumhare blog roj padh kar tumhare kareeb baithe hone ke ehsaas hota hai.....
ReplyDeletebye and take care
Sadhana
पूजा जी आपका खुद से बातें करना अच्छा लगा...
ReplyDeleteBeautiful! the realities of silence and words is soul stirring....
ReplyDeleteपूजा,
ReplyDeleteऐसा लगा जैसे ये तुम ना हो हम ही हो.....कई बार ब्लॉग लिखने में झिझक होती है....सो नहीं लिखती....नम हुई आँखे इसे पढ़... सच! कितना बदल गए हैं हम.......तारीफ करूँ या रो दूं ......ये मच्युरिटी कितना कुछ छीन लेती है ना हमसे ....लेकिन इसकी भी हदें है .....बेलगाम होने का दिल चाहता है
दिल हर किसी को यूं dictate नहीं करता या फ़िर कि शायद हम ही उसकी outline ठीक से बना नहीं पाते ..रफ़्तार तेज़ होती है न उसकी
ReplyDeleteमेरा नया ठिकाना
कोई कमउम्र नौजवान उन्हें पढ़कर इश्क को हकीकत ना समझ बैठे. इश्क एक गहरी ख़ामोशी में डूबने का नाम है...और इस घुटती साँस में हम अकेले होते हैं...सब अकेले होते हैं
ReplyDeletebhaut si lahre haiaur sabe badi baat apna sa hai sab
ReplyDeletePata nahi kyu aankhe bhar aaye....
ReplyDelete"तुम अपनी दुनिया में इतने गुम होते हो कि सुन भी नहीं पाते कि मैंने जवाब देना बंद कर दिया है...कि तुम्हारे सवाल अनाथ हो गए हैं"
फ़ोन को ऑन करके सो जाओ...मैं अपनी बात कह के फोन काट दूँगी, प्रोमिस :) :)
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