
बड़े पापा उसको दोनों हाथों से उठा कर गोल घुमा दिए...और फिर एकदम गंभीरता से गोद में लेकर समझाने लगे जैसे कि उसको सब बात अच्छे से समझ आएगी. 'बेटा दुआ की उम्र उतनी होती है जितनी आप मांगो...कभी कभी एक लम्हा और कभी कभी तो पूरी जिंदगी'. सिम्मी को बड़ा अच्छा लगता था जब बड़े पापा उससे 'आप' करके बात करते थे...उसे लगता था वो एकदम जल्दी जल्दी बड़ी हो गयी है.
'तो बड़े पापा आप हमेशा इस जंगल में मेरे साथ आयेंगे...हमको अकेले आने में डर लगता है. पर आप नहीं आयेंगे तो हम पार्क भी नहीं जा पायेंगे.'
'हाँ बेटा हम हमेशा आपके साथ आयेंगे'
'हर शाम!'
'हाँ, हर शाम'
उसके बाद उनका रोज का वादा था...शाम को सिम्मी के साथ पार्क जाना...उसको कहानियां सुनाना...बाकी बच्चों के साथ फुटबाल खेलने के लिए भेजना. सिम्मी के शब्दों में बड़े पापा उसके बेस्ट फ्रेंड थे.
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उस दुआ की उम्र कितनी थी?
नन्ही सिम्मी को कहाँ पता था कि दुआओं की उम्र सारी जिंदगी थोड़े होती है...वो बस एक लम्हा ही मांग कर आती हैं. बिहार के उस छोटे से शहर दुमका में उसकी जिंदगी, उसकी दुनिया बस थोड़े से लोग थे...पर सिम्मी की आँखों से देखा जाता तो उसकी दुनिया बहुत बड़ी थी...और ढेर सारी खुशियों से भरी भी. जैसे पार्क का वो झूला...ससरुआ...कुछ लोहे के ऊँचे खम्बे और सीढियां जिनसे सब कुछ बेहद छोटा दिखता था. घर से सौ मीटर पर का चापाकल...जिसमें सब बच्चे लाइन लगा कर सुबह नहाते थे. घर का बड़ा सा हौज...काली वाली बिल्ली जिसे सिम्मी अपने हिस्से का दूध पिला देती थी. बाहर के दरवाजे का हुड़का- जिसे कोई भी बंद नहीं करता था...बडोदादा का स्कूटर...गाय सब...पुआल और चारों तरफ बहुत सारे पेड़.
छुटकी सी सिम्मी...खूब गोरी, लाल सेब से गाल और बड़े बड़ी आँखें, काली बरौनियाँ...एकदम गोलमटोल गुड़िया सी लगती थी. उसपर मम्मी उसको जब शाम को तैयार करती थी रिबन और रंग बिरंगी क्लिप लगा कर सब उसे घुमाने के लिए मारा-मारी करते थे. मगर वो शैतान थी एकदम...सिर्फ बड़े पापा के गोदी जाती थी...बाकी सब के साथ बस हाथ पकड़ के चलती थी...अब बच्ची थोड़े है वो...पूरे ३ साल की हो गयी है. अभी बर्थडे पर कितनी सुन्दर परी वाला ड्रेस पहना था उसने. बड़े पापा उसको ले जा के स्टूडियो में फोटो भी खिंचवाए थे.
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दुमका से पटना, दिल्ली और फिर शिकागो...एकदम होशियार सिम्मी खूब पढ़ लिख कर डॉक्टर बन गयी...रिसर्च के लिए विदेश आये उसे कुछ डेढ़ साल हुआ है. सोचती है अब डिग्री लेकर घर जायेगी एक बार दुमका का भी जरुर प्रोग्राम बनाएगी. हर बार वक्त इतना कम मिलता है कि बड़े पापा से मिलना बस खास शादी त्यौहार पर भी हो पाया है. घर से पार्क के रास्ते में अब भी जंगल है...उसने पूछा है. बड़े पापा अब रिटायर हो गए हैं और शाम को टहलने जाते हैं अपने पोते के साथ. इस बार दुमका जायेगी तो शाम को पक्का बड़े पापा के साथ पार्क जायेगी और इत्मीनान से बहुत सारी बातें करेगी. कितनी सारी कहानियां इकठ्ठी हो गयी हैं इस बार वो कहानियां सुनाएगी और कुछ और कहानियां सुनेगी भी. इस बार जब इण्डिया आना होगा तो बड़े पापा के लिए एक अच्छा सा सिल्क का कुरता ले जायेगी...मक्खन रंग का. उन्हें हल्का पीला बहुत पसंद है और उनपर कितना अच्छा लगेगा.
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उसने सुना था कि जिंदगी का कोई भरोसा नहीं...पर जिंदगी ऐसे दगा दे जायेगी उसने कहाँ सोचा था...जब भाई का फोन आया तो ऐसा अचानक था कि रो भी नहीं पायी...घर से दूर...एकदम अकेले. एक एक साँस गिनते हुए उसे यकीं नहीं हो रहा था कि बड़े पापा जा सकते हैं...ऐसे अचानक.
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याद के गाँव में एक पुराने घर का सांकल खटखटाती है...बड़े पापा उसे गोद में उठा कर एक चक्कर घुमा देते हैं और कहते हैं...दुआ की उम्र उतनी जितनी तुम मांगो बेटा...है न?
आँखें भर आती हैं तो सवाल भी बदल जाता है...
'याद की उम्र कितनी बड़े पापा?'