देर रात स्टूडियो में...ऑडियो कंसोल पर तुम्हारे आवाज़ की खुरदुरी नोकें हटा रहा हूँ...ये पिनक ऐसी है जिसे मैं चहकना कहता हूँ पर तुम्हारे सुनने वालों को तुम्हारी ठहरी हुयी आवाज़ पसंद आती है...गहरी नदी की तरह. ये काँट छाँट इलीगल(illegal) कर देनी चाहिए.
यूँ लग रहा है जैसे पहाड़ी नदी पर बाँध बना रहा हूँ...उसकी उर्जा को किसी 'सही' दिशा में इस्तेमाल करने के लिए...गोया कि सब कुछ बहुतमत की भलाई (पसंद!) के लिए होना चाहिए. साउंड वेव देखता हूँ और बचपन में तुम्हारा झूला झूलना याद आता है कि तुम पींग बढ़ाते जाती थी...और जब तुम्हारे पैर शीशम के पेड़ की उस फुनगी को छू जाते थे तुम किलकारियां मार के हँसती थी...और फिर अगली बार में वहां से छलांग...तुम क्या जानो पहले बार तुम्हें वैसे कूदते देखा था तो कैसे कलेजा मुंह को आ गया था मेरा...मुझे लगा कि तुम गिर गयी हो...अब भी डर लगता है...तुम्हें खो देने का. मैं अपने कमरे की खिड़की से तुम्हें कभी देखता था, कभी सुनता था और कभी डरता था कि तुम्हारे पापा का ट्रांसफर मेरे पापा से पहले हो गया तो?
इतनी बार मेरी जिंदगी में आती जाती रही हो कि अब आदत लग जानी चाहिए...फिर भी तुम्हारे जाने की आदत कभी नहीं लगती. जाने कैसे तुम्हारा दिल्ली आना हुआ...और मेरा भी आल इण्डिया रेडियो ज्वाइन करना हुआ. वैसे तो सब कहते थे तुम्हारी दिन रात के बकबक से कि तुम्हें रेडियो में होना चाहिए...तुम्हें यहाँ देख कर आश्चर्य नहीं होना चाहिए...उस हिसाब से तो मैं यहाँ एकदम अनफिट हूँ...हमेशा से पढ़ाकू, चश्मिश...शांत, शर्मीला...पर जिंदगी ऐसी ही है. हमें मिलाना था...मगर तुम ठहरी जिद्दी...तुम्हारा रास्ता नहीं बदल सकी तो मेरा बदल दिया...और हम ऐसे ही स्टूडियो के आड़े तिरछे रास्तों में टकरा गए.
सोचता हूँ तुम्हारे ऑडियोग्राफ के मुताल्लिक एक मेरा ईसीजी भी निकला जाए...शायद ऐसा ही कुछ आएगा...जिगजैग...कि दिल की धड़कनें कहाँ कतार में चलती हैं...तुम्हारा नाम आया नहीं कि सब डिसिप्लिन ही ख़त्म हुआ जाता है...तुम्हारी आवाज़ का एको(echo) हो जाती हैं बस.
सोच रहा हूँ तुम्हारा आवाज़ में 'आई लव यू' सुनना कैसा लगेगा.
शायद. परफेक्ट!
सुबह से ही गूगल प्लस की पेचीदगी में उलझा हुआ था...
ReplyDeleteआज पहला ब्लॉग पढ़ा और वो भी आपका...:)
हर बार की तरह निर्मल...
Bahut sundar likhtee ho!
ReplyDeleteपरफेक्ट!
ReplyDeleteaccha likthi ho puja ji
ReplyDeletevikasgarg23.blogspot.com
वाह...रोमांटिक :)
ReplyDeleteआपकी पोस्ट कल(3-7-11) यहाँ भी होगी
ReplyDeleteनयी-पुरानी हलचल
love your post.
ReplyDeletecontagious..addictive.....
उमस भरी किसी दोपहरी में झमाझम बारिश सी....
.पर जिंदगी ऐसी ही है. हमें मिलाना था...मगर तुम ठहरी जिद्दी...तुम्हारा रास्ता नहीं बदल सकी तो मेरा बदल दिया...और हम ऐसे ही स्टूडियो के आड़े तिरछे रास्तों में टकरा गए...
ReplyDeleteसोच रहा हूँ तुम्हारा आवाज़ में 'आई लव यू' सुनना कैसा लगेगा.
और फिर खुद से ही सवाल........
जानदारशानदार ....पोस्ट ....
hi, 6days le liya naya post likhne me. ab to aapki aadat ho gayee hai. roj aapke blog per aata hun aur sochta hun aaj phir kuch aisa padhne ko milega jo dil ko chhu jayega aur aisa hi hota hai har baar, is baar bhi hua aap kamaal ki likhti hai. ummeed hai is baar kuch jaldi padhne ko milega;;;;
ReplyDeleteदिल की आवाज और अमूर्त चित्र की तरह उसका नक्शा.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया .
ReplyDeleteसादर
बहुत अच्छा लिखा है...
ReplyDeleteabsolute bliss!!
ReplyDeleteपता नहीं आप ऐसे कान्सेप्ट कहाँ से लातीं हैं। बिल्कुल झमाझम बारिश की तरह !
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