आग का दरिया, तेरी अर्थी
कैसे कैसे मंज़र देखे
राह के गहरे अंधियारे में
चुप्पे, सहमे, रहबर देखे
तेरी आँखें सूखी जबसे
जलते हुए बवंडर देखे
तेरी चिट्ठी जो भी लाये
घायल वही कबूतर देखे
पूजाघर की सांकल खोली
दुश्मन सारे अन्दर देखे
गाँव से जब रिश्ता टूटा तो
रामायण के अक्षर देखे
बनी हुयी मूरत ना देखी
सब हाथों में पत्थर देखे
बसा हुआ है मंदिर मंदिर
खुदा कभी मेरा घर देखे
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल..
ReplyDeletesunder abhivykti.
ReplyDeleteye aajmaaish achhi lagi... prashansaniya.
ReplyDeletearsh
बहुत खूबसूरत,
ReplyDeleteभावनाएं शब्दों मैं उतर जाएँ ,
तो कविता जी सी जाती हैं
बहुत अच्छा।
ReplyDeleteराह के गहरे अंधियारे में
ReplyDeleteचुप्पे, सहमे, रहबर देखे
तेरी आँखें सूखी जबसे
जलते हुए बवंडर देखे
Harek pankti gazab hai!
तेरी चिट्ठी जो भी लाये
ReplyDeleteघायल वही कबूतर देखे
पूजाघर की सांकल खोली
दुश्मन सारे अन्दर देखे
अद्भुत। बेहतरीन।
Bahut Khubsurat...
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ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeletekhoobsoorat andaaz..
ReplyDeleteपलट-पलट कर मैंने देखा
ReplyDeleteकभी पलटकर तू गर देखे
छोटे बहर की बड़ी गज़ल।
ReplyDeleteachi prastuti...
ReplyDeletewah kya bat hi....
ReplyDeletebahut hi khubsurat gazal...!
bhawporn gazal ke liye badhai.