मुझे एक छोटी सी रिवोल्वर खरीदने का मन था...और बाहर जाते वक्त अपने पैर में नीचे की तरफ़ उसे बाँध के रखने का, एक दिन मैंने मम्मी से कहा था कि मेरे पास बहुत पैसे हो जायेंगे न तो मैं एक छोटी सी रिवोल्वर खरीदूंगी जिसे मैं हमेशा अपने पास रखूंगी। मुझे याद है उस दिन मम्मी से बहुत डांट पड़ी थी ये सब उलूल जलूल ख्याल तुम्हारे दिमाग में कहाँ से आता है।
ये वो वक्त था जब मैंने कॉलेज जाना शुरू किया था, और हमारे कॉलेज में चूँकि ड्रेस कोड था तो सिर्फ़ सलवार कुरता पहन कर ही जा सकती थी...उस वक्त कई बार हुआ था कि किसी लड़के ने दूर तक पीछा किया हो, और डर ये लगता था कि अगर किसी ने देखा तो मुझे डांट पड़ेगी। दुपट्टे को बिल्कुल ठीक से लेती थी अपने आप को पूरी तरह ढक के चलती थी, और उस वक्त बिल्कुल सिंपल कपड़े पहनती थी वो भी हलके रंगों में...फ़िर भी ऐसा कई बार होता था। पटना में ऑटो रिजर्व करके नहीं चलते, एक ऑटो में तीन या चार लोग बैठते हैं। कई बार लगता था कि बगल में बैठा लड़का जान कर कुहनी मार रहा है, मगर सड़कें ख़राब होती थीं तो कुछ कह भी नहीं सकते थे।
घर से कॉलेज कोई तीन किलोमीटर था और लगभग १० मिनट लगता था जाने में, पर वो दस मिनट इतनी जुगुप्सा में बीतते थे...वाकई घिन आती थी और लगता था कि काश मैं स्टील के या ऐसे ही कुछ कपड़े पहनती या बीच में एक पार्टीशन रहता। ऑटो में हमेशा देख कर बैठते, ये हम सब लड़कियों को अपने अनुभव और seniors में मिले नसीहतों के कारण पता था कि अधेड़ उम्र के पुरुषों के साथ बिल्कुल नहीं जाना है ऑटो में। उनका लिजलिजा स्पर्श ऐसी वितृष्णा भर देता था कि पहले period ठीक से पढ़ाई नहीं हो पाती थी। मम्मी ने कहा था कि जब भी असहज हो उतर जाऊं...और मैं ऐसा ही करती थी। लेकिन कई बार होता था कि लगता था कि कहीं हमें ही शक तो नहीं हो रहा...या फ़िर लेट हो रहा रहता था...कोई भी लड़का ये सोच भी नहीं सकता है कि ऐसी स्थिति में लड़की की क्या हालत होती है, मेरी तो साँस रुकी रहती थी, जितना हो सके अपनेआप में सिमट के बैठती थी।
वापस घर लौटते वक्त वही बेधती निगाहें, चौराहे पर खड़े लफंगे जाने आपस में क्या कहते हुए, बस सर झुका कर नज़र नीचे रखते हुए जितने तेजी से हो सके गुजर जाती थी वहां से...फ़िर भी लगता था वो नजरें पीछा कर रही हैं। और ऐसा एक दो दिन नहीं पूरे तीन साल झेला मैंने...और मैंने ही नहीं हर लड़की ने झेला था...हम सब का गुस्सा एक था और इस गुस्से को बाहर करने कि कोई राह नहीं।
मैं एक बार ऐसे ही बोरिंग रोड के पास अपने प्रोजेक्ट के लिए कुछ सामान ले रही थी, एक दुकान से दूसरी जाते हुए एक आदमी साइकिल से मेरे पीछे से कुछ बोलते हुए गुजरा, मैंने नजरअंदाज कर दिया सामान लेकर वापस आई तो वही आदमी फ़िर कुछ बोलते हुए निकला...मैं आगे बढ़ी थी वो फ़िर आगे से आता दिखा...उस दिन शायद मेरा गुस्सा मेरे बस में नहीं रहा, मेरे हाथ में एक पोलीथिन बैग था जिसमे छाता और बहुत सा सामान था जो मैंने ख़रीदा था॥मैंने पोलीथिन से खीच कर मारा था उसे बहुत जोर से, सीधे मुंह पर...उसका साइकिल का करियर पकड़ लिया और जितनी गालियाँ आती थी बकनी शुरू कर दी, सोच लिया था की आज इसका मार मार के वो हाल करुँगी की किसी लड़की को छेड़ने में इसकी रूह कांपेगी...चाहे मुझे पुलिस के पास जाना पड़े, परवाह नहीं। मैंने उसे तीन चार बार मारा होगा उसी पोलीथिन से और जोरो से गुस्से में चिल्लाये जा रही थी पर आश्चर्य जनक रूप से कहीं से कोई भी कुछ कहने नहीं आया...वो आदमी आखिर साइकिल छुड़ा के भाग गया।
मैंने ऑटो लिया और सीधे घर आ गयी, घर पर किसी को कुछ नहीं बताया, अगले दिन कॉलेज में दोस्तों को बताया...बात पर सब खुश भी हुए और डरे भी...की मान लो वो आदमी फिर आ गया और खूब सारे लोगो के साथ आया तो तुम अकेली क्या कर लोगी। बात डरने की थी भी, पर खैर वो आदमी फिर नहीं दिखा मुझे, पर बोरिंग रोड मैं अगले कुछेक हफ्तों तक अकेले नहीं गयी.
ऐसी एक और घटना ऑटो में हुयी, एक लड़का बगल में बैठा था, कुछ १६-१७ साल का होगा...सारे रास्ते कुहनी मार रहा था और जब उसे डांटा की क्या कर रहे हो, तमीज से बैठो तो उसने ऑटो रुकवाया और कुछ तो कहा, बस मैं भी उतरी और उसका कॉलर पकड़ के एक झापड़ मारा, बस वो हड़बड़ाया और भागने के लिए हुआ, पर कॉलर तो मेरे हाथ में था और मैं छोड़ नहीं रही थी उसका कॉलर पूरी तरह फट गया और वो भाग गया.
ये दो दुस्साहस के काम मैंने किये थे...पर मुझे बहुत डर लगता था, डर उनसे नहीं अपनेआप और अपने इस न डरने से लगता था कि किसी दिन इसके कारण मुसीबत में न फंस जाऊं। पटना में उस वक़्त पुलिस और कानून नाम की कोई चीज़ नहीं थी, पूरा गुंडाराज चलता था...ऐसे में अगर कोई मुझे उठा के ले जाता तो कहीं से कोई चूँ नहीं करता.
आज जब लोगो को बोलते हुए सुनती हूँ कि लड़की ने छोटे या तंग कपड़े पहने थे इसलिए उसके साथ ऐसा हादसा हुआ तो मन करता है एक थप्पड उन्हें भी रसीद कर दूँ...क्योंकि मैंने बहुत साल फिकरे सुने हैं और ये वो साल थे जब मैं सबसे संस्कारी कपड़े पहनती थी जिनमें न तो कोई अश्लीलता थी और न मेरे घर से निकलने का वक़्त ऐसा होता था कि मेरे साथ ऐसा हो। जब भी ऐसी कोई बहस उठती है मेरे अन्दर का गुस्सा फिर उबलने लगता है और इन समाज के तथाकथित ठेकेदारों और झूठे संस्कारों कि दुहाई देने वालो को सच में गोली मार देने का मन करता है.
दिल्ली में बस पर चलती थी तो हमेशा हाथ में एक आलपिन रहता था कि अगर किसी ने कुहनी मारी तो चुभा दूंगी...नाखून हमेशा बड़े रखे इसलिए नहीं कि खूबसूरत लगते हैं, इसलिए कि अगर किसी ने मुझे कुछ करने की कोशिश की तो कमसे कम अँधा तो कर ही सकती हूँ...और यही नहीं कई दिन बालों में जूड़ा पिन लगाती थी सिर्फ इसलिए कि ये एक सशक्त हथियार बन सकता है.
कहने को हम आजाद हैं, लड़कियों और लड़कों को बराबरी का दर्जा मिला है...मगर क्या ऐसी किसी भी मानसिक प्रताड़ना किसी लड़के ने कभी भी झेली है जिंदगी में? क्या ये कभी भी समझेंगे कि एक लड़की को कैसा महसूस होता है...नहीं...क्योंकि ये नहीं समझेंगे कि ऐसा होने पर हमारा क्या करने का मन करता है...ये कहेंगे अवोइड करो, ध्यान मत दो...अगर एक बार भी किसी लड़के को ऐसा लगा न तो वो बर्दाश्त नहीं करेगा लड़ने पर उतर आएगा...क्यों? क्योंकि वो सशक्त है? eve teasing जैसा नाम दिया जाता है और इसकी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं देता.
आज मैं उस वक़्त सी छोटी नहीं रही...लड़के मुझे अब भी घूरते हैं...बाईक चलाती हूँ तो पीछा करते हैं...मैं अनदेखा कर देती हूँ...मगर हर उस वक़्त मैं परेशान होती हूँ और हालांकि उन शुरूआती दिनों में जब मेरी सोच खुली नहीं थी और आज जब मैंने इतनी दुनिया देख रखी है...इतने अनुभवों से गुजर चुकी हूँ. आज भी सिर्फ इसलिए कि मैं लड़की हूँ मुझे इस मानसिक कष्ट को झेलना पड़ता है.
मेरा आज भी मन करता है कि मेरे पास एक रिवोल्वर होता...इन लड़कों को कम से कम एक झापड़ मारने में डर तो नहीं लगता.