16 November, 2008

फ़िर


इंतज़ार में
बिल्कुल कण कण में
टूट जाता है मेरा वजूद
और क्षण क्षण गिरता रहता है
रेत घड़ी के एक से दूसरे छोर पर

धीरे धीरे फ़िर से जुड़ जुड़ कर
पूरी होने लगती हूँ मैं
और एक तरफ़ से बिल्कुल खाली

पर स्थायित्व नहीं है मेरे जीवन में
जैसे ही गिरता है पूरा वजूद
वक्त मुझे फ़िर से पलट देता है
और शुरू हो जाता है
मेरा बिखरना
फ़िर से...

16 comments:

  1. इंतज़ार में

    बिल्कुल कण कण में
    टूट जाता है मेरा वजूद
    और क्षण क्षण गिरता रहता है
    रेत घड़ी के एक से दूसरे छोर पर

    दिल को छू गई आपकी रचना पूजा जी

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  2. बहोत ही उम्दा लेखन है, बहोत खूब कहा है आपने ........

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  3. पूजा जी
    नमस्कार
    सही कहती हैं कि यदि हमारे पास वैचारिक शक्ति हो तो हम किसी भी दृश्य से, किसी भी अनुभव से, किसी भी दुख या सुख से हम कुछ न कुछ मथकार (दही से मक्खन के समान) प्राप्त कर सकते हैं.
    इसी तरह आपने भी रेत घड़ी से रेत के गिरने और फिर से पहले वाले भाग मे रेत के वापस आने कि क्रिया से एक अहम विचार
    निकाल कर हमारे सामने प्रस्तुत किया है, बहुत अच्छा लगा.

    आपका
    डॉ विजय तिवारी " किसलय "

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  4. बहुत बढ़िया.

    हालांकि ..... "स्थायित्व" ..... है कहाँ ? बहरहाल रचना बहुत अच्छी है.

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  5. आज आपका रेत घड़ी से जिन्दगी का तुलनात्मक विशलेषण बहुत गहरी अभिव्यक्ति दे गया ! आपको दिल से शुभकामनाएं !

    टेम्पलेट बहुत सुंदर लग रहा है ! बधाई !

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  6. पलट के गिर के सिमटना है क्षण क्षण में
    वजूद के छोर पर बिखरना है कण कण में

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  7. पता नही क्यों ये चित्र देखकर गुलज़ार की एक त्रिवेणी याद आ गयी......तुम यार सच में कमाल की हो !

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  8. acchi soch ke sath apni bhavnao ko acche se sameta hai........

    bahut bahut bahut hi spl rachna.....

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  9. Hi Puja.. check my latest post this post is only because of you :)

    Ek Woh Din Bhi The: A Beautiful Song

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  10. People say I am a very emotional person and my sun sign (Pisces) also tells the same. Since I have seen your blog I fell in love with it.. You writes very beautifully… aur agar Anurag ji ke shabdo mein kahe to aap ek Imandaar lekhika.. I like your writing vry vry much.. Keep writing and thank you so much for coming on my blog.

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  11. घंटों से मैं मौन ही बैठा था..कि आपने मुझे बोलने पे मजबूर कर ही दिया...मेरा अखंडित मौन टूट गया...मौन को आपने...सच कहूँ तो बड़े अद्भुत तरीके से व्यक्त किया है...शुरू से अंत तक मैं बहता हुआ अंत के मुहाने पे आ ही रहा था..कि..........आपकी अगली कविता भी आखों में आ समाई....आप क्या कर रही हो भाई....!!
    और आप ऐसा लिखोगे तो आप क्या..हम ही ना पलट जायेंगे.....!!एक ही शब्द कहूंगा "अद्भुत"..........!!

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