मेरे तुम्हारे बीच
उग आया है
कंटीला मौन का जंगल
जाने कब खो गयीं
शब्दों की राहें
खिलखिलाहटों की पगडंडियाँ
ऊपर नज़र आता है
स्याह अँधेरा
नहीं दिखता है चाँद
नहीं दिखती तारों सी तुम्हारी आँखें
काँटों में
उलझ जाता है तुम्हारा स्पर्श
ग़लतफ़हमी की बेल
लिपट जाती है पैरों से
और मैं नहीं जा पाती तुम्हारे करीब
बहुत तेज़ होता जाता है
झींगुरों का शोर
मैं नहीं सुन पाती तुम्हारी धड़कन
पैरों में लोटते हैं
यादों के सर्प
काटने को तत्पर
शायद मेरी मृत्यु पर ही
निकले तुम्हारे गले से एक चीख
और तुम पा जाओ
शब्द और जीवन ...
पूजा उपाध्याय जी
ReplyDeleteनमस्कार
मैं और तुम के माध्यम से आपने
मौन और गलतफहमी के सन्दर्भ में
काबिलेतारीफ अभिव्यक्ति दी है
सच में,
आपको मेरी हर्दिक शुभकामनाएं
ये पंक्तियाँ दिल को छू गयीं >>>>
ग़लतफ़हमी की बेल
लिपट जाती है पैरों से
और मैं नहीं जा पाती तुम्हारे करिब....
आपका
डॉ विजय तिवारी ' किसलय '
http://www.hindisahityasngam.blogspot.com
घंटों से मैं मौन ही बैठा था..कि आपने मुझे बोलने पे मजबूर कर ही दिया...मेरा अखंडित मौन टूट गया...मौन को आपने...सच कहूँ तो बड़े अद्भुत तरीके से व्यक्त किया है...शुरू से अंत तक मैं बहता हुआ अंत के मुहाने पे आ ही रहा था..कि इक शब्द मुझे इक कंकड़ सा आ लगा...वो शब्द है "सर्प"...इसकी जगह सांप होता तो... नहीं-नहीं आप ख़ुद ही रख-कर और फ़िर पढ़-कर देखिये ना...आपके सारे शब्दों के प्रवाह में कौन सा शब्द सटीक बैठता है...सांप...या सर्प....??बाकि तो अपने आप ही मैं फिसल चुका हूँ इस कविता...पे..सच...तभी तो मौन थोडा ना.....!!
ReplyDeleteशायद मेरी मृत्यु पर ही
ReplyDeleteनिकले तुम्हारे गले से एक चीख
और तुम पा जाओ
शब्द और जीवन .
अद्भुत अभिव्यक्ती ! अनंत शुभकामनाएं !
good expression
ReplyDeleteगहरी छूती रचना....नहीं जानता क्या प्रेरणा रही है,मगर सुंदर चित्र बना है...बधाई
ReplyDeleteagina b'ful poem.. why dnt u try bloggers standard template.. usme na jayada prblem nahi aata hai :-)
ReplyDeleteअभी कविता नहीं पढ़ा हूं.. फुर्सत में पढूंगा.. तुम्हारा टेम्प्लेट देख कर ही बस लिख रहा हूं.. ये साधारण सा टेम्प्लेट ज्यादा अच्छा लग रहा है..
ReplyDeleteमौन को स्वर देती बहुत गहरी और प्यारी रचना लगी है यह ..बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुनो तुम्हारी खामोशी
ReplyDeleteमुझे तुम्हारे शब्दों से
ज्यादा चुभती है .............
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteबहुत तेज़ होता जाता है
ReplyDeleteझींगुरों का शोर
मैं नहीं सुन पाती तुम्हारी धड़कन
very differet and deep thoughts....
मेरे तुम्हारे बीच
ReplyDeleteउग आया है
कंटीला मौन का जंगल
जाने कब खो गयीं
शब्दों की राहें
adbhut maun .
adbhut abhivyakti
मेरे तुम्हारे बीच
ReplyDeleteउग आया है
कंटीला मोन का जंगल.....
सुंदर कविता
आपकी रचना...
ReplyDeleteज़िंदगी के आख़िरी क्षण में कुछ खोने के बाद बहुत कुछ पाने की उम्मीद... और सबसे ज्यादा निर्माण की एक खूबसूरत, निरपेक्ष और निर्दोष कल्पना...। सुमित सिंह
ग़लतफ़हमी की बेल
ReplyDeleteलिपट जाती है पैरों से
और मैं नहीं जा पाती तुम्हारे करीब
बहुत तेज़ होता जाता है
aapki abhivyakti ke sabse khoobsoorat bhaav hain yeh..dhanyawad.