12 November, 2008

असहमति

मैं कविता लिखती हूँ, प्रायः मुक्त छंद में ही लिखती हूँ, मुझे ऐसा लगता है कि भावनाएं किसी व्याकरण में बंधने लगती हैं तो उनका स्वरुप नियमों के अनुकूल होने लगता है। अभिव्यक्ति एक दिशा में मुड़ने लगती है...आजकल लिखने का तरीका भी ऐसा हो गया है कि अक्सर जो एक बार लिख देती हूँ, वापस उसमें संशोधन नहीं करती हूँ/नहीं कर पाती हूँ। कहने को ये भी कह सकती हूँ कि वक्त नहीं मिलता...पर उससे ज्यादा ये होता है कि कुछ भी लिखते वक्त जो ख्याल आते रहते हैं दिमाग में, वो कुछ समय बाद बदल जाते हैं। अब ऐसे में अगर मैं कुछ बदलाव करती हूँ तो लगता है उस ख्याल के प्रति अन्याय कर रही हूँ।
मेरा लिखना हमेशा कविता नहीं होता है...मैं बस जो शब्द उमड़ते घुमड़ते रहते हैं उन्हें लिख देती हूँ, उनमें एक प्रवाह होता है, एक अहसास होता है, बस...इससे ज्यादा कुछ होता नहीं है, इससे ज्यादा मुझे कुछ चाहिए भी नहीं होता है मेरी लेखनी से।
अभी तक से एक दो सालों में कुछ ही बार ऐसा हुआ है कि लोगों कि प्रतिक्रिया पढ़ कर मेरा वाकई मन किया है कि मैं उनसे इतनी बहस करूँ कि वो हार कर चुप हो जाएँ...उनके लिखे कि धज्जियाँ उड़ा दूँ।परसों एक कमेन्ट आया जिससे उस वक्त से मेरा दिमाग ख़राब हो रखा है, और मैं जानती हूँ कि जब तक मैं लिख न लूँ शान्ति नहीं मिलेगी।

तो ये रहा कमेन्ट

HEY PRABHU YEH TERA PATH said...कविता आज का जनप्रिय काव्य-कथ्य हो गया है।पुराने जमाने मे जो स्थान दोहा, सोरठा या मनोहर-छन्द का था उसे आज कविताओ ने छीन लिया है।आपकी बेतरतीब कविता मे अपेक्षाकृत सुगमता कि झलक थी,यघपि इसमे अनुभुति की प्रखरता तो अपेक्षित है, पर तुकबन्दी के कारण एक चमत्कार भी आ जाता है। "ओक" शब्द का भावार्थ क्या है ? "झेलें" शब्द कुछ मजा नही आया।"गुलाबी गुलाबी सा चाँद", अगर चाँद को निला या सफेद धुधीया रग का बताते तो कैसा रहता? आशा है, बेतरतीब अपने सवेदन सन्देश को अन्य लोगो तक पहुचाने की परम्परा को निभाने मे समर्थ हो सकेगा।

महावीर बी सेमलानी "भारती'

मुबई 09-11-२००८


मुझे इस कमेन्ट पर आपत्ति है...
पहली बात कविताओं ने कभी किसी का स्थान नहीं छीना, कवितायेँ कोई नेता नहीं हैं जो हमेशा कुर्सी छीनने के बारे में सोचती रहे।


दूसरी बात...मेरी कविता में तुकबंदी है ही नहीं, किन्ही पंक्तियों में नहीं, तो फ़िर ये कहना कि तुकबंदी के कारण चमत्कार आ जाता है", क्या मायने रखता है, सिवाए ये दिखने कि इन महाशय को या तो पता नहीं है कि तुकबंदी क्या होती है या फ़िर इन्होने कविता पढ़ी नहीं है।


तीसरी बात" ओक शब्द का भावार्थ क्या है" जनाब शब्द का शब्दार्थ होता है, भावार्थ नहीं...पंक्ति या कविता का भावार्थ होता है।


चौथी और सबसे IRRITATING बात..."गुलाबी गुलाबी सा चाँद", अगर चाँद को निला या सफेद धुधीया रग का बताते तो कैसा रहता? " मैं नहीं बताउंगी नीला या पीला, क्यों बताऊँ, मेरी कविता है मेरा जो मन करेगा लिखूंगी, आपको इतना ही शौक है कि चाँद नीला या सफ़ेद हो तो आप ख़ुद एक कविता लिखिए....आप कौन होते हैं मुझे मेरे चाँद के रंग पर सलाह देने वाले...इसको सरासर हस्तक्षेप कहते हैं, बिन मतलब और बेसिरपैर की सलाह देना भी कहते हैं।


और आखिरी पंक्ति "आशा है, बेतरतीब अपने सवेदन सन्देश को अन्य लोगो तक पहुचाने की परम्परा को निभाने मे समर्थ हो सकेगा।" जी नहीं, इसमें कोई संवेदन संदेश नहीं है...कृपया आसान सी चीज़ों में जबरदस्ती के गूढ़ भाव न खोजें। आपसे अगर पूछूँ की संवेदन संदेश का अर्थ क्या होता है तो शायद आप भी नहीं बता पायेंगे. क्या सिर्फ़ कुछ भी लिख देने के लिए कमेन्ट लिखने की जगह होती है...चाहे वो relevant हो या नहीं? ऐसा कुछ भी लिखने के लिए ब्लॉग होता है जहाँ पर आप उल्टा सीधा जो मन करे लिख सकते हैं, क्योंकि ब्लॉग लिखने का उद्देश्य अपनी बात कहना होता है। मैंने कई और बार भी देखा है कि कोई कुछ भी लिख जाता है।


कमेन्ट लिखते वक्त बेहद जरूरी है की आप पोस्ट को पढ़ लें ...फ़िर जो चाहें लिखें. और अगर पढने का मन नहीं है तो सिर्फ़ बढ़िया है, अच्छा लगा...जैसे कमेन्ट दें. खास तौर से बुरा लगा मुझे जब दिवाली के समय मैंने माँ की बरसी पर एक पोस्ट लिखी थी और उसमें भी कमेन्ट में लोग मुझे दिवाली की शुभकामनाएं दे गए थे. क्या क्षण भर ठहर के ये देखना जरूरी नहीं था की जिसे आप हैप्पी दिवाली कह रहे हैं वह इस दिवाली को किस तरह से मना रहा है...दिवाली है या मुहर्रम उसके घर में.
खैर चलता रहता है ये सब भी...

ब्लॉग्गिंग भी जिंदगी का हिस्सा ही तो है

16 comments:

  1. पूजा जी हमारे कारण आपको जो ठेस पहुंची है उसके लिए हमें खेद है चाहे वो कोई भी हो दुख हुआ ये पढकर कि बिना पढे किसी ने कोई टिप्‍पणी की लेकिन प्‍लीज इग्‍नोर दिस आल

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  2. आपकी असहमति से मैं सहमत हूँ ! बड़े ध्यान से मैंने आपकी बात सुनी ! ये जो भी मर्यादावादी और ज्ञान बांटने वाले हैं ! ये लोग डेढ़ अक्ल नही बल्कि पोने दो अक्ल हैं ! इनकी बातो पर ध्यान देकर अपनी लय ख़राब करने में कोई तुक नही है ! जिस भले आदमी को ओके जैसे सुंदर शब्द का शब्दार्थ नही मालुम और तुर्रा यह की उसका भावार्थ पूछ रहे हैं ! तो मेरे हिसाब से यहीं पर उनकी विद्वता मालुम पड़ जाती है ! इनको इतनी तवज्जो देनी ठीक नही लगती ! अब इनको चाँद नीला / दुधिया चाहिए तो क्या जरुरी है की सबको वही चाहिए ! हमने अपनी भैंस को उस पर चढ़ा रक्खा है ! अब करलो हमारा क्या करोगे ? और वो जाहिर है गोबर भी वहीं पर कर रही होगी ! और अब जल्दी से उसको उतारेंगे भी नही !

    दूसरी बात आपने दीपावली की कही - आपकी बात से मैं सहमत नही हूँ ! आपकी काफी भावुक पोस्ट थी और सभी लोग इस गम को आपके साथ महसूस कर रहे थे ! यह पोस्ट आपकी दीपावली के समय आखिरी थी ! दीपावली में जिन मित्रो के यहाँ शोक हो चुका होता है उनके यहा विशेष रूप से शुभकामनाएं दी जाती हैं जिससे वो इस मौके पर अपने को अकेला नही समझे ! इसको आप सकारात्मक रूप से ले ! मैं भी साल भर की पिछली गलतियों की क्षमायाचना स्वरुप मेरे परिचित दोस्तों के ब्लॉग पर उनकी आखिरी पोस्ट पर संदेश छोड़ कर आया था ! आपके ब्लॉग पर भी छोडा होगा ! अगर आप को मेरी किसी बात से बुरा लगा है तो मैं आपसे पुन: क्षमा चाहूँगा ! मेरा मंतव्य यहाँ किसी को भी दुःख पहुचाना नही है !

    बहुत शुभकामनाएं !

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  3. अच्छी खासी झाडू फ़ेर दी आपने बेचारे के कमेन्ट्स पे .... ठीक किया ... मजा आया मिर्च लगा देने वाली प्रितिक्रिया पढ़ के ..

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  4. hmm sehmat hun aapse,kavi jab kavita likhta hai,wo tab ek bahav mein likh jata hai aur us mein kisi aur ko herpher karna nahi chahiye.aap jaisa bhi likhti hai,hame waisa hi achha lagta hai,har ek ka style alag hota hai,aur aapka andaaz -e-bayan bhi bahut juda sa aur achha hai.

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  5. main yahi kahunga ke comments karte wakt post to jarur padhani chahiye dhyan se....

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  6. चलते-चलते आपको टिप्पणी देती हूँ पूजा ,जो टिप्पणियाँ ज्यादा विद्वता पूर्ण लगे उस पर मोडेरेसन की तकनीक इस्तेमाल कर लें ..बाकि आराम से लिखिए ..कोई कुछ थोड़े ही कर लेगा :-)

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  7. अरे, पूजा जी को इतना गुस्सा भी आता है.. :)

    अभी अभी पढ़ा.. पढ़कर मुस्कुरा उठा.. आप पर नहीं, असल में बीते हुये दिन याद आ गये.. जब कॉलेज में कोई मेरी कविता पढ़/सुन कर ऐसे ही मेरे चांद को सफेद बनाने कि कोशिश कर रहा था और मैं भी तुनककर ऐसे ही बोला था कि अबे मेरा चांद है, उसे जिस रंग से रंगू तुझे क्या? तुझे सफेद चाहिये तो अपनी कविता लिख और जिस रंग में चाहे रंग दो.. :)
    वैसे जब हम भी ऐसे ही विचार वाले हैं तो असहमत कहां से हो सकते हैं.. :D

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  8. आपकी कवि‍ता का स्‍तर ऊँचा है जो अच्‍छी आलोचना की मॉग करता है, इसलि‍ए मैं अक्‍सर nice poem आदि‍ लि‍खकर चल देता हूँ।
    आज आपके वि‍चारों से अवगत हुआ, आपने खूबसूरती से अपना पक्ष रखा, मगर कोई कुछ कह दे तो आप वि‍चलि‍त न हों, यह सब तो यहॉ चलता रहता है। ब्लॉग पर लि‍खने का नुक्‍सान बहुत थोड़ा है और फायदे अनेक, कम से कम हम पाठक तो ऐसा ही महसूस करते हैं।

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  9. यही वजह थी मैं दिवाली के दौरान लिखने से बचता रहा। एक पोस्ट की इससे बड़ी बेज्जती नही हो सकती की पढ़ने वाला बजाय पोस्ट के ऊपर कुछ कहने के हैप्पी दिवाली कह जाये।

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  10. शब्दों को उतना ही बाँधें की मन का भाव कहीं खो ना जाये!

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  11. बरबस मुस्कुरा उठा पढ़ कर.आपका गुस्साना वाजिब है...लेकिन ये भी तो सोचिये टिप्पनी करने वाले ने कितने मनोयोग से सब कुछ लिखा.एक-एक चीज के विस्तार में गये हैं महोदय.कुछ लोग तो बस सुंदर रचना लिख कर चले जाते हैं.
    और फिर आपकी लेखनी की हम जैसे कितनी तारिफ भी तो करते हैं...
    आप बस लिखते रहिये....

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  12. पूजा ...ढेरो लोग ऐसे है जो कविता पर नाक भौह सिकोड़ते है ....गजल,नज़्म या त्रिवेणी लिखने वाले उन्हें छिछले स्तर के लोग लगते है...... कई लोग तो ब्लोगिंग को सिर्फ़ गध विधा में मानते है ओर उन्होंने जाने अनजाने इस बात को कई बार अपने ब्लोग्स में इशारो से कहते भी है.....वैसे भी मै भी इन दिनों घबरा के लिखता हूँ कि जाने इन्टेलेकचुअल लोगो को क्या बुरा लग जाये ....इन दिनों वे वैसे भी तरह तरह के आइने जेब में रख कर घुमते है.....ओर बिना पोस्ट पूरी पढ़े फटाक से आइना दिखा देते है........बिना विम्ब को समझे .......कभी कभी सोचता हूँ किसी महान कवि की कविता या नज़्म ठेल दूँ ओर जब कोई आइना दिखाए तो कहूँ मुआफ करे ये मेरी नही थी......शुक्र है बौधिक अधिकार का पेटेंट नही होता वरना कई लोग इसे भी करा लेते .....
    एक स्वस्थ आलोचना ओर ......दूसरी ??? आलोचना में फर्क होता है..इसलिए बिंदास होकर लिखो.......

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  13. 'मुझे ऐसा लगता है कि भावनाएं किसी व्याकरण में बंधने लगती हैं तो उनका स्वरुप नियमों के अनुकूल होने लगता है। अभिव्यक्ति एक दिशा में मुड़ने लगती है'

    bilkul sahi kaha aap ne....

    aur jahan tak rahi chand ki baat usmeinbhi aap se sehmat hoon...apni kavita mein aap koi bhi rang bhar sakte hain...

    pura lekh sahi sahi jawab hain kaafi logo ke liye...

    vaise zyada relative nahin hai fir bhi mera khud ka ek sher yaad aa gaya...


    kitni fikra hai duniyawalon ko meri,
    apni apni rai dene sab chale hain...

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  14. I personally feel that Creativity do vanish in the silhouette of rules so whether its gulabi gulabi chand or gahra lal neela chand. I feel first one is good :)...its your creation…..your unmarked way of sketching thoughts but whatever you are writing, you are using this open platform of Blog. Everybody is free to give his(er) comment and you have sheer privilege to play/fiddle with the comments posted on your Blog. So it’s better to see the other side of coin, the brighter side. No point of pouring such type of frustration over the web, caused by one unfavorable comment.
    Your writing reflects your character. If you get happy by ten positive comments so also accept one downbeat with grace. I like some of your posts…..I hope, you will accept this comment in a constructive way or should I expect next post on the same :).

    Manu

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  15. acha kiya jo aapne mahashay ko jabaw likh diya... pata nahi unhe aisa kyon laga ki yaha kavita likhne ki pratiyogita ho rahi hai aur chale aaye nazz-nusk nikalne.. bahut sundar uttar " मैं नहीं बताउंगी नीला या पीला, क्यों बताऊँ, मेरी कविता है मेरा जो मन करेगा लिखूंगी, आपको इतना ही शौक है कि चाँद नीला या सफ़ेद हो तो आप ख़ुद एक कविता लिखिए..." yeh wala to mazedaar jawab tha :-)

    Rohit

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  16. आपकी असहमति से मेरी सहमती है...आप तो लिखो बिंदास होकर! जिसको दोहे सोरठे पढने हैं उनके लिए भी किताबें बाज़ार में उपलब्ध हैं!

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