फ़िर से एक पुरानी नज़्म, फ़िर से पीले जर्द पन्ने...और लबों पर वो हँसी कि क्या लिखती थी मैं उस समय...ये लिखा है ३१/०८/०२ को। अब सोचती हूँ तो लगता है कितने साल बीत गए...
सोचती हूँ की जी लोगी मेरे बगैर
एक दिन के लिए कोशिश कर कर देखो
गूँज उठेगा तुम्हारी धडकनों में नाम मेरा
कभी खामोशी में मुझे याद कर देखो
मैं कोई ख्वाब नहीं की मुझे भूल जाओ कल सुबह तुम
मैं हकीकत हूँ न यकीं हो तो छू कर देखो
झूठ कहती हो कि हर नज़्म तुम्हारी अपनी है
मुझे सोचे बगैर एक लफ्ज़ भी लिख कर देखो
रात भर रोओगी मगर छुपाओगी मुझसे
कभी अपने गम मेरे साथ बाँट कर देखो
तुम्हारा हर अहसास जुड़ा हुआ है मुझसे
मेरी हँसी को अपने लबों से जुदा कर देखो
मेरा हर दर्द टीस उठता है तुम्हारे अन्दर
तुम्हारी आँखें नम हैं मेरे अश्कों से जा कर देखो
तुझे मालूम नहीं ए मेरी मासूम सी ख्वाहिश
तुम्हें प्यार है मुझसे मेरा यकीन कर देखो।
तुझे मालूम नहीं ए मेरी मासूम सी ख्वाहिश
ReplyDeleteतुम्हें प्यार है मुझसे मेरा यकीन कर देखो।
बहुत ही ह्रदय को छु लेने वाला एहसास ! बहुत शुभकामनाएं !
BAHUT PYRI GAZAL HAI.........
ReplyDeleteSUNDAR EHESSAS...
PADKAR ACCHA LAGA........
Aap chahhe jab bhi jaha bhi jo bhi likhe pyara hi likhegi :-)
ReplyDeleteतुझे मालूम नहीं ए मेरी मासूम सी ख्वाहिश
तुम्हें प्यार है मुझसे मेरा यकीन कर देखो।
Bahut ache the wo purane din mujhe bada bilkul nahi hona hai :-(
Rohit
अच्छी लिखी है आपने जब भी लिखी है ...:)
ReplyDeleteसच, बहुत सुन्दर नज़्म है!
ReplyDeleteमेरा हर दर्द टीस उठता है तुम्हारे अन्दर
ReplyDeleteतुम्हारी आँखें नम हैं मेरे अश्कों से जा कर देखो
तुझे मालूम नहीं ए मेरी मासूम सी ख्वाहिश
तुम्हें प्यार है मुझसे मेरा यकीन कर देखो।
वाह बहुत बढ़िया लिखा है।
सच है, कई दफ़ा एहसास भी नावाक़िफ़ रहते हैं अपने एहसासों से... या नावाक़फ़ियत के पर्दों के पीछे छुपकर गुमसुम से देखते रहते हैं... और हम बेख़बर लुटते जाते हैं और शुक्रिया अदा करते हैं ख़ुदा का... मौत भी आ जाए तो आ जाए ऐ ख़ुदाया, पर हमारे यूं फ़ना होते जाने का सिलसिला न थमे फ़िर भी...
ReplyDeleteवाह...बस वाह
ReplyDeleteझूठ कहती हो कि हर नज़्म तुम्हारी अपनी है
ReplyDeleteमुझे सोचे बगैर एक लफ्ज़ भी लिख कर देखो
bahot hi umda bat kahi hai aapne bahot khub likha hai aapne....
Dear Pooja ,
ReplyDeleteआज तुम्हारी ये कविता पढ़ी , मन में लहरें सी उठ गई.. कितनी नाज़ुक नाज़ुक पंक्तियाँ है , समय के अहसास को साथ लिए चलती है ..
बहुत बधाई
विजय
www.poemsofvijay.blogspot.com
तुझे मालूम नहीं ए मेरी मासूम सी ख्वाहिश
ReplyDeleteतुम्हें प्यार है मुझसे मेरा यकीन कर देखो।
bahut sunder shbda rachana
regards
सोचती हूँ की जी लोगी मेरे बगैर
ReplyDeleteएक दिन के लिए कोशिश कर कर देखो
सुंदर रचना ...
झूठ कहती हो कि हर नज़्म तुम्हारी अपनी है
ReplyDeleteमुझे सोचे बगैर एक लफ्ज़ भी लिख कर देखो
यूँ तो हर लाइन मर्मस्पर्शी है, लेकिन मुझे ये पंक्तियाँ ज्यादा ही अच्छी लगीं।
लिखती रहिए, हम आते रहेंगे यहाँ।
तुझे मालूम नहीं ए मेरी मासूम सी ख्वाहिश
ReplyDeleteतुम्हें प्यार है मुझसे मेरा यकीन कर देखो।
Anurag ji ke blog ke through aapke blog tak aana hua aur aapke blog ke naam se aap tak khinchi chali aayi 'तुम्हें प्यार है मुझसे'..akhiri do panktiyan to bahut hi khoobsoorat hain..
झूठ कहती हो कि हर नज़्म तुम्हारी अपनी है
ReplyDeleteमुझे सोचे बगैर एक लफ्ज़ भी लिख कर देखो
just beautiful....