बावरा मन
बावरा बन
ढूंढें किसको
जाने कैसे
रात बाकी
दर्द हल्का
चुप कहानी
गुन रहा
नींद छपके
चाँद बनके
आँख झीलें
डूब जा
याद लौटी
अंजुरी भर
आचमन कर
हीर गा
भोर टटका
राह भटका
रे मुसाफिर
लौट आ
| Lake Geneva, Lausanne |
छोटी सी सिम्मी अपने बड़े पापा की ऊँगली पकड़े कच्ची पगडण्डी पर चल रही थी. घर से पार्क जाने का शोर्टकट था जिसमें लंबे लंबे पेड़ थे और बच्चों को ये एक बहुत बड़ा जंगल लगता था. शाम को घर के सब बच्चे पार्क जाते थे हमेशा कोई एक बड़ा सदस्य उनके साथ रहता था. सिम्मी अपनी चाल में फुदकती हुयी रुक गयी थी. कल उसका एक्जाम था और वो थोड़ी परेशान थी...पहला एक्जाम था उसका. बड़े भैय्या ने कहा था भगवान से मांगो पेपर अच्छा जायेगा...वैसे भी तुम कितनी तो तेज हो पढ़ने में. छोटी सी सिम्मी के छोटे से कपार पर चिंता की रेखाएं पड़ रही थीं...कभी कभी वो अपनी उम्र से बड़ा सवाल पूछ जाती थी. अभी उसने नया नया शब्द सीखा था 'दुआ'.
यूँ लग रहा है जैसे पहाड़ी नदी पर बाँध बना रहा हूँ...उसकी उर्जा को किसी 'सही' दिशा में इस्तेमाल करने के लिए...गोया कि सब कुछ बहुतमत की भलाई (पसंद!) के लिए होना चाहिए. साउंड वेव देखता हूँ और बचपन में तुम्हारा झूला झूलना याद आता है कि तुम पींग बढ़ाते जाती थी...और जब तुम्हारे पैर शीशम के पेड़ की उस फुनगी को छू जाते थे तुम किलकारियां मार के हँसती थी...और फिर अगली बार में वहां से छलांग...तुम क्या जानो पहले बार तुम्हें वैसे कूदते देखा था तो कैसे कलेजा मुंह को आ गया था मेरा...मुझे लगा कि तुम गिर गयी हो...अब भी डर लगता है...तुम्हें खो देने का. मैं अपने कमरे की खिड़की से तुम्हें कभी देखता था, कभी सुनता था और कभी डरता था कि तुम्हारे पापा का ट्रांसफर मेरे पापा से पहले हो गया तो?
उसने अक्सर नोट किया है कि वो अपने ख़त में 'सुनो' बहुत बार कहती है...जैसे कि लिख कर उसका दिल नहीं भरता हो...कि जैसे वो सारे ख़त उसे बोल कर सुनाना चाहती है. रात की आखिरी मेट्रो एकदम खाली होती है और उसमें आवाज़ बहुत गूंजती है...वो शाम की बातों के टुकड़े उछालता रहता है और लौट कर आती आवाजें उसके बालों में उँगलियाँ फिरा जाती हैं...मेट्रो में सिगरेट पीना मना है और चूँकि एक ही सिगरेट है वो पैदल चलने के एकांत के लिए रखना चाहता है. पर हाथ बार बार पॉकेट में चला जाता है...| जानां |
| D-gang |
| A different pose |