वैसे कायदे से कहें तो ये पहला दिन नहीं होगा, पहला दिन तो वो था जब अपनी कार में निकली थी और कमबख्त नामुराद बिल्ली ने रास्ता काटा था और वापस आ गयी थी. मारुती ड्राईविंग क्लास्सेस ज्वाइन किये हुए बहुत दिन हो गए. इन दिनों में थ्योरी पढ़ी खूब सारी...आधे ऑटोमोबाइल इंजीनियर तो बन ही गए हैं...या कमसेकम मोटर मेकैनिक तो बन ही जायेंगे.
अभी तक क्लच का काम बस गेयर भर बदलना होता है हमको पता था, पर उसके पीछे क्या सिस्टम है ये मालूम नहीं था हमको. अब पता चला की क्लच असल में दो प्लेट का होता है और गाडी के मोटर और गाडी के गियर और पहियों के सञ्चालन के बीच एक स्विच की तरह काम करता है. इससे मुझे ये पता चला कि बहुत तेज रफ़्तार गाडी को रोकने के लिए क्लच का इस्तेमाल करना घातक हो सकता है. और भी बहुत से फंडे, हालाँकि मैं जानती हूँ कि जब गाडी के सामने बिल्ली आ जाये तो आराम से सारा ज्ञान भूल कर उसको चीपने पर ध्यान लगाना है J
आज हम सुबह साढ़े आठ बजे क्लास करने गए(सुबह कैसे उठे ये मत पूछिए, वैसे ही बंगलोर में सुबह उठने पर लगता है सजा मिल रही हो). एक अच्छी सी स्विफ्ट में इंस्ट्रक्टर आये, श्री पाटिल...बहुत अच्छे और भले व्यक्ति हैं. उन्होंने पहले गाड़ी को चेक करने के सरे नियम बताये और फिर मैं ड्राईवर सीट पर बैठी. ड्राइविंग स्कूल से सीखने का फायदा ये है कि टेंशन नहीं होती कि ब्रेक की जगह अक्सीलेरेटर दब गया तो किसका क्या होगा J
मुश्किल से १०० मीटर चलाये होंगे कि सड़क के बीच लंगड़ा कुत्ता...और एकदम से नयी गाड़ी पर बैठने पर होर्न भी नहीं दीखता है एकदम से, पर होर्न बजते ही कुत्ता एकदम साइड हो गया. मुझे हंसी आ गयी कि होर्न सुनकर कुत्ता भी साइड देता है. अब फुर्सत में सोचती हूँ तो लगता है, हो न हो उस कुत्ते की टांग किसी ऐसे ही नौसिखिए ड्राईवर से तोड़ी होगी...इसलिए होर्न सुनते ही फटाफट साइड हट जाता है.
*ये सारा मसाला गूगल के ऑफलाइन टाइपिंग औज़ार से हुआ है. दोपहर को रोज लोड शेडिंग होती है, उस समय का सही इस्तेमाल ब्लॉग्गिंग के लिए J