बंगलौर में पढ़ने लगी है हलकी सी ठंढ
कोहरे को तलाशती हैं आँखें
मेरी दिल्ली, तुम बड़ी याद आती हो
पुरानी हो गई सड़कों पर भी
नहीं मिलता है कोई ठौर
नहीं टकराती है अचानक से
कोई भटकी हुयी कविता
किसी पहाड़ी पर से नहीं डूबता है सूरज
पार्थसारथी एक जगह का नाम नहीं
इश्क पर लिखी एक किताब है
जिसका एक एक वाक्य जबानी याद है
जिन्होंने कभी भी उसे पढ़ा हो
धुले और तह किए गर्म कपड़ों के साथ रखी
नैप्थालीन है दिल्ली की याद
सहेजे हुयी हूँ मैं, फ़िर जाने पर काम आने के लिए
जेएनयू पर लिखे सारे ब्लॉग
इत्तिफाकन पढ़ जाती हूँ
और सोचती हूँ की उनके लेखकों को
क्या मैंने कभी सच में देखा था
किसी ढाबे पर, लाइब्रेरी में...
मुझे चाहिए बहुत से कान के झुमके
कुरते बहुत से रंगों में, चूड़ियाँ कांच की
सरोजिनी नगर में वही पुरानी सहेलियां
वही सदियों पुरानी बावली के वीरान पत्थर
इंडिया गेट के सामने मिलता बर्फ का गोला
टेफ्ला की वेज बिरयानी और कोल्ड कॉफ़ी
बहुत बहुत कुछ और...पन्नो में सहेजा हुआ
शायद इतना न हो सके...
ए खुदा, कमसे कम एक हफ्ते का दिल्ली जाने का प्रोग्राम ही बनवा दे!
खुदा आपका दिल्ली जाने का कार्यक्रम बिल्कुल बनाएगा।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
धुले और तह किए गर्म कपड़ों के साथ रखी
ReplyDeleteनैप्थालीन है दिल्ली की याद ...hehe ... :)kyaa kahoon iss pe...
ab to aa hi jaao jaldi se dilli.... isse pehle ki commonwealth ke liye tayaar karne ke naam par dilli ki zameeni khoobsoorti thodi aur khatm kar di jaaye... :(
aao tumhein teflaa ki veg biryaani khilaate hain... aur gangaa dhaba ke paranthe bhi... :) aur aao to batana zaroor...
जल्द आपकी दिल्ली जाने की मनोकामना पूरी हो...बस छुट्टी मिलने की ही तो बात है.
ReplyDeleteझंझट तो हमारे साथ है जो दिल्ली जाना चाहते हैं चुनाव जीत कर. :)
बढ़िया भाव उकेरे.
anupam bhav liye adwiteey rachna ! sajeeva aisa ki ek hee saans me padh gaya !!
ReplyDeleteलगता है आप को सर्दी नहीं लगती। जनवरी के बाद प्रोग्राम बनाइए। ..वैसे जिन्हें न लगती हो उनके लिए जनवरी का समय ठीक है। कोहरे में लिपटे स्वर सुनने का अपना ही आनन्द है।
ReplyDeleteछोटे-छोटे अनुभव, अलग-अलग सी अनुभूतियाँ सिमट कर एक सुन्दर कविता बन जाती हैं आपके यहाँ ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है।आपकी मनोकामना जरूर पूरी होगी।
ReplyDeleteटेफ्ला के आलू पराठे और दही याद आ गये.. 4 महिनों तक मेरा डिनर यही हुआ करता था.. 4 आलू के पराठे और दही.
ReplyDeleteआपके कविता रूप विचार पढ़कर अच्छा लगा। जल्दी से जल्दी दिल्ली रवाना हो...वरना एक और कविता बन जाएगी।
ReplyDeleteजिसका शीर्षक होगा शायद
सब लापता है...
एक और बात...जो खास है हरकिसी के बारे में : हमको सबको छूटे हुए से लगाव है, जो नहीं उसने पाने के चाह है। जो है उसका अहसास तक नहीं। क्या करें...आदतन मजबूर हैं।
युवा सोच युवा खयालात
खुली खिड़की
फिल्मी हलचल
welcome netime....:-)
ReplyDeleteयहां इलाहाबाद में कायदे की सर्दी को तरस रहे हैं।
ReplyDeleteजे.एन.यू. चेतना में इतने अन्दर तक पैठ बना लेता है ..
ReplyDeleteमैं डरने लगा अपने बारे में सोचकर कि ..
हाँ ! आपकी कविता ने jnu के ह्रदय की ख़ूबसूरत झांकी
पेश की है ..
बहुत कुछ ' नेचुरल ब्यूटी ' कम हो रही है इन दिनों
jnu की , मिटते से जो भी बच जाय ; उसे देखने आप
जरूर आयें ..
टेफ्ला,गंगा ढाबा वजूदन बचे हुए हैं ..
आपकी कविता बड़ी सुन्दर लगी ... ,,,,,,,,,, आभार ... ...
इंडिया गेट के सामने मिलता बर्फ का गोला
ReplyDeleteटेफ्ला की वेज बिरयानी और कोल्ड कॉफ़ी
बहुत बहुत कुछ और...पन्नो में सहेजा हुआ
शायद इतना न हो सके...
ए खुदा, कमसे कम एक हफ्ते का दिल्ली जाने का प्रोग्राम ही बनवा दे!
wah! kya likha hai.. waise kal subah hi delhi ke liye nikal raha hun..
स्मृतियों के प्रति प्रेम नही उपजता, दीवानगी होती है और वह भी सभी पराकाष्ठाओं को तोड़ती हुई, कभी छाती फ़टने का भी एहसास होता है जब कोई विगत स्मृति सामने होती है !!
ReplyDeleteशब्दों की मायावी तुम!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत-२ आभार
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ReplyDeleteकमाल का अहसास है आप के पास। ठंड ने आप को दिल्ली पहुंचा दिया। हम तो ठंड मान कर दिल्ली गए थे। पर वहाँ हमें कोटा से भी अधिक गर्मी मिली।
ReplyDeletewaah...delhi ki yaad aa gai ye padh k :)
ReplyDeleteदिल्ली में इसी रूमानियत के साथ भटकने को मन करता है ।
ReplyDeletewah pooja wah.....yahi to baat hai jo delhi chodi nahi jaati...kuan jaye in galiyo ko chod kar....kafi pahel meer ne kaha tha..aaj me kahta hu.....CP ki yaad karni ho to mere facebook par jana ..udhar mileg kafi pic ka khazana....
ReplyDeleteओह..ये कुछ जम-जमा सा जो है..उसे रहने दीजिये..गरमी मे पिघलेगा तो राहत देगा..ठंडक मे जमेगा तो एहसास देगा...!
ReplyDeleteजाने क्यूँ एक बेहद घिसी-पीटी जाने कितनी बार कही गई एक लाईन कहने का मन है...(पर,पूरी ईमानदारी से)
"मुझे आप पर गर्व है...!"
पहली बार सुना की कोई दिल्ली का भी मुरीद है :)ज्यादातर लोग तो दिल्ली के नाम से ही घबराते हैं . अपराधियों का गढ़ दिल्ली .
ReplyDeleteवाह पूजा! दिल्ली की ठंड की अच्छी याद दिलायी, दिल्ली का कुहासा और सरोजनी नगर और जे.एन.यू,और भी बहुत कुछ याद आ गया।
ReplyDeleteaapki ye rachna bahut pasand aayi..dilli wakai bahut khubsurat hai :)
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