--------------------
लड़की
--------------------
आजादी हमेशा छलावा ही होती हैं...कितना अजीब सा शब्द होता है उसके लिए...आजाद वो शायद सिर्फ़ मर के ही हो सकती है।
---------------------
शादी में बस ownership change होती है, parents की जगह पति होता है। ससुराल के बहुत से लोग होते हैं।
---------------------
शादी एक लड़की को किस बेतरह से अकेला कर देती है की वो किसी से कह भी नहीं सकती है। सारे दोस्त पीछे छूट जाते हैं उस एक रिश्ते को बनाने के लिए।
--------------------
वो बहुत दिन झगड़ा करती है, बहस करती है अपनी बात रखने की कोशिश करती है...पर एक न एक दिन थक जाती है...चुप हो जाती है...फ़िर शायद मर भी जाती हो...किसे पता।
--------------------
एक सोच को जिन्दा रखने के लिए बहुत मेहनत लगती है, बहुत दर्द सहना पड़ता है, फ़िर भी कई ख्याल हमेशा के लिए दफ़न करने पड़ते हैं...उनका खर्चा पानी उसके बस की बात नहीं।
---------------------
तुम्हारा सच मेरा दर्द हो जाता है...मेरा सच मेरी जिद के सिवा कुछ नहीं लगता तुम्हें।
----------------------
बहुत दिन चलने वाली लड़ाई के बाद किसी की जीत हार से फर्क नहीं पड़ता।
----------------------
मेरी हार तुम्हारी जीत कैसे हो सकती है?
----------------------
हम थक जाते हैं, एक न एक दिन लड़ते लड़ते...उस दिन एक घर की चाह बच जाती है बस, जहाँ किसी चीज़ को पाने के लिए लड़ना न पड़े, सब कुछ बिना मांगे मिल जाए।
----------------------
उससे घर होता है...पर उसका घर नहीं होता...पिता का होता है या पति का।
--------------------
जब कभी बहुत लिखने का मन करता है, अक्सर लगता है मैं पागल हो गई हूँ। मेरे हाथों से कलम छीन कर फ़ेंक दी जाए और इन ख्यालों को किसी शोर में गले तक डुबा दिया जाए. मैं अपनी कहानी की नायिका को झकझोर कर उठती हूँ...पर वो महज कुछ वाक्य मेरी तरफ़ फ़ेंक कर चुप हो जाती है...इससे तो बेहतर होता की सवाल होते, कमसे कम कोई जवाब ढूँढने की उम्मीद तो रहती।
लड़की
--------------------
आजादी हमेशा छलावा ही होती हैं...कितना अजीब सा शब्द होता है उसके लिए...आजाद वो शायद सिर्फ़ मर के ही हो सकती है।
---------------------
शादी में बस ownership change होती है, parents की जगह पति होता है। ससुराल के बहुत से लोग होते हैं।
---------------------
शादी एक लड़की को किस बेतरह से अकेला कर देती है की वो किसी से कह भी नहीं सकती है। सारे दोस्त पीछे छूट जाते हैं उस एक रिश्ते को बनाने के लिए।
--------------------
वो बहुत दिन झगड़ा करती है, बहस करती है अपनी बात रखने की कोशिश करती है...पर एक न एक दिन थक जाती है...चुप हो जाती है...फ़िर शायद मर भी जाती हो...किसे पता।
--------------------
एक सोच को जिन्दा रखने के लिए बहुत मेहनत लगती है, बहुत दर्द सहना पड़ता है, फ़िर भी कई ख्याल हमेशा के लिए दफ़न करने पड़ते हैं...उनका खर्चा पानी उसके बस की बात नहीं।
---------------------
तुम्हारा सच मेरा दर्द हो जाता है...मेरा सच मेरी जिद के सिवा कुछ नहीं लगता तुम्हें।
----------------------
बहुत दिन चलने वाली लड़ाई के बाद किसी की जीत हार से फर्क नहीं पड़ता।
----------------------
मेरी हार तुम्हारी जीत कैसे हो सकती है?
----------------------
हम थक जाते हैं, एक न एक दिन लड़ते लड़ते...उस दिन एक घर की चाह बच जाती है बस, जहाँ किसी चीज़ को पाने के लिए लड़ना न पड़े, सब कुछ बिना मांगे मिल जाए।
----------------------
उससे घर होता है...पर उसका घर नहीं होता...पिता का होता है या पति का।
--------------------
जब कभी बहुत लिखने का मन करता है, अक्सर लगता है मैं पागल हो गई हूँ। मेरे हाथों से कलम छीन कर फ़ेंक दी जाए और इन ख्यालों को किसी शोर में गले तक डुबा दिया जाए. मैं अपनी कहानी की नायिका को झकझोर कर उठती हूँ...पर वो महज कुछ वाक्य मेरी तरफ़ फ़ेंक कर चुप हो जाती है...इससे तो बेहतर होता की सवाल होते, कमसे कम कोई जवाब ढूँढने की उम्मीद तो रहती।
सच में बौरा गई हो.. इतनी रात में इतनी सच्ची बात कोई बौराया हुआ ही करता है..
ReplyDeleteतुम बौराई हुई इतना सुंदर सच उगलती हो तो तुम्हारा बौरा जाना ही भला है ...
ReplyDelete"तुम्हारा सच मेरा दर्द हो जाता है...मेरा सच मेरी जिद के सिवा कुछ नहीं लगता तुम्हें"
वाह!
वाकई बौराये ख्याल ही कहलायेंगे..कुछ एकालाप सा..एक तरफा नज़रिया बहुतों में..मगर ख्याल आपके हैं...हो सकते हैं. :)
ReplyDeleteउससे घर होता है...पर उसका घर नहीं होता...पिता का होता है या पति का।'
ReplyDeleteसारी व्यथा इस एक पंक्ति ने कह दी
क्या बात है। क्या बात है।
ReplyDeleteहोता है होता है ...।
ReplyDeleteआजाद ख़्याल ऐसे ही होते हैं
ReplyDeleteहाँ शायद कुछ सच से
बिलकुल सही लिखा है। हर लाइन और शब्द दिल में उतर गया है। शादी के बाद लगभग हर लड़की का जीवन यही हो जाता है। हार जीत का फर्क नहीं पड़ता, सच को जिद समझ लिया जाता है। दूसरे के सच और सही का साथ देते देते खुद कब अपने लिए गलत हो गए, पता ही नहीं चलता।
ReplyDeleteअंतिम पैरे में जान है... :) बहुत सिरिअस बातें... लेकिन सोचना चाहिए... ज़हीन ऐसे भी होते हैं...
ReplyDeleteथोड़ा अलग तेवर हैं इस बार .....!
ReplyDeleteक्या मुझे वह समझ लेना चाहिए ..जो मैं समझ रही हूँ?
ReplyDeleteइस बेकसी का कोई अंत भी है ...?
ReplyDeleteपूजा, कुछ ही पंक्तियों में स्त्री का कितना सारा दर्द उड़ेल दिया। परन्तु शुरू में तो स्वप्न होते हैं, यह सच तो बहुत बाद में नजर आता है। तुम्हें इतनी जल्दी कैसे दिख गया?
ReplyDeleteघुघूती बासूती
sorry to interrupt the choice of language.. somehow i am more comfortable talking about these things in english...
ReplyDeletefreedome... aazadi.. kisi se li nahi jaati..
freedom is inside us... there is no need to break any barriers to be free.. you are as free as you think you are... yes, there are complications of responsibility and being answerable to those around you, but thats just how you manage to avoid those traps...
freedom is intrinsic, inside you.. kahin dhoondhne ki zaroorat nahi, sirf pehchan-ne ki hai..
पढ़ने आया था....पढ़ा, और अब सोचा कि बताता चलूं...
ReplyDeletekhatarnaak ..ekdam..khaalis SACH !
ReplyDeleteachchaa hai ki sach kee roshnee me andhere raasto me bhatakane se ham bach jaay!
ReplyDelete"शादी में बस ownership change होती है, parents की जगह पति होता है। ससुराल के बहुत से लोग होते हैं।" इतना कडुवा सच बोल क्र कहीं अपनों को शत्रु मत बना लेना.
ReplyDeleteinhi sawalo mai uljhi hui thi....& aapki ye post padh li....
ReplyDeletehar shabd dil se nikla hai aur bahaut gehra hai
par aaj inhi sawalo ne ek himmat di hai...fir se aage badhne ki..
HELLO I AM CHANDER
ReplyDeleteIN YOUR BLOG I DONT KNOW ALL THIS ARE WRITE YOU OR ANY ATHER PERSON BUT TO GOOD I REALY LIKE IT.
aap bohot shaandaar likhti hai,aesa laga maano mere andar bhi kahi na kahi aesa ghat raha h,or use shabdo me nahi likh pa rahi hu
ReplyDeleteआज फ़ुर्सत की सुबह थी तो इसे दिल से मनाने के लिये पढने से बेहतर क्या होता… यूँ ही चला आया था आपकी इस पोस्ट तक……
ReplyDeleteऔर सच कहूँ तो बौरा गया… दो मिसरे आपके नाम…
यूँ खुशफ़हमी ना पाला कर…
कोइ सच नंगा ना उछाला कर…