15 January, 2010

उसका नाम पम्मी था

मेरे घर वाले मुझे "पम्मी" बुलाते थे...विविध भारती पर या पाकिस्तान रेडियो पर एक अन्नौंसर या शायरा थी पंजाबी, पम्मी कौर...पापा को उसकी आवाज बहुत अच्छी लगती थी तो बेटी का नाम रख दिया पम्मी...मैं भी शायद आवाज के इसी प्रभाव से बहुत बोलती हूँ। मुझे अगर एक घंटे चुप रहने को बोल दिया जाए तो परेशान हो जाती हूँ।

अब इस नाम को सुने इतने दिन बीत जाते हैं की आश्चर्य होता है, शायद कुछ दिन बाद मैं भूल ही जाऊं की मेरा कोई और नाम भी है...कोई अपना सा नाम...जिससे शीशम के पेड़ों की याद आती है, झूले की भी। पर इस नाम से सबसे ज्यादा याद आती है मम्मी की। मैं मम्मी को increasing आर्डर में अगर चिल्ला के बुला रही होती थी तो शुरू होता था मम्मीS , माँSS और आखिर में बस मीSSSS . और ये चिल्लाना हल्ला करना लगभग एक बार रोज तो हो ही जाता था।

दिल्ली आने के बाद रोज आधा घंटा सुबह, और लगभग एक घंटा रात को बात करते ही थे मम्मी से। जब से मम्मी नहीं है, रोज रात को छटपटा जाते हैं बात करने के लिए। कितना भी चाहूँ किसी और बात पर ध्यान लगाना, नहीं कर पाती। कई बार सोते वक़्त लगता है बहुत दिन हो गए मम्मी से बात नहीं किये हैं। फिर अचानक से याद आता है की अब जहाँ मम्मी है वहां तक कोई नेटवर्क नहीं जाता है।

जो लोग कहते हैं की वक़्त के साथ जख्म भर जाते हैं, झूठ कहते हैं...कुछ जख्म कभी नहीं भरते वक़्त के साथ और गहरे हो जाते हैं, हलकी सी चोट पहले से कहीं ज्यादा दर्द देती है। और दर्द की कोई दवा मुझे मालूम नहीं है। मुझे नहीं पता की ये पहाड़ सी दिखती जिंदगी मैं मम्मी के बिना कैसे काटूँगी...हर चीज़ में उसकी याद आती है।

मुझे ना तो उसके जैसी बादाम की चटनी बनानी आई इतने दिनों में, ना बादाम की चटनी के बिना आलू पराठा खाना आया...ना मुझे सांभर पसंद आता है ना कढ़ी...ना भुजिया ना मूढ़ी। परेशान हो गयी हूँ, खाने में से स्वाद आखिर कहाँ चला गया है?

किसी को खूबसूरत सा स्वेटर पहने देखती हूँ तो टीस उठती है की अभी मम्मी होती तो बस दिखाना भर था और स्वेटर बन के आ जाता। हर ठंढ में कितने स्वेटर, मोज़े, स्कार्फ सब बना देती थी। अब जबसे मम्मी नहीं है, ठंढ ही लगनी बंद हो गयी है। ठंढ का मौसम भी कितना रूखा सा हो गया है। पहले ठंढ का मतलब होता था मम्मी से जिद करके ऐसा कुछ बनवाना जो किसी के पास ना होता हो।

कोई परेशानी, दुःख, ख़ुशी...सब कुछ तो बात कर सकती थी माँ से। अब जैसे अचानक से कुछ नहीं रहा। सब टूट के बिखर गया है।

जो लोग कहते हैं की प्यार सब कुछ होता है जिंदगी में, झूठ कहते हैं। जिंदगी में सब कुछ बस माँ होती है। बस।

तुम्हारी बहुत याद आती है मम्मी।

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