हावड़ा जंक्शन की एक बेहद सर्द सुबह, ऐसी की पाकेट में से हाथ निकलने का मन ना करे...कोट और टोपी में लादे फदे हुए हैं और छांटे जा रहे हैं किताबें...हिंदी की और किताबें है क्या? ऐसे ग्राहक से बोहनी रोज तो नहीं ही होती होगी व्हीलर वाले की, उसने झटाझट किताबें निकालनी शुरू कर दीं, और हम उठाते गए...जैसे किसी को हफ्ते भर खाना नसीब हुआ हो, हमें भी मुद्दत बाद हिंदी के दर्शन हुए थे... मुस्कुराते हुए झोला उठा के चल दिए ट्रेन की तरफ।
ऐसा ही कुछ नज़ारा देवघर में भी हुआ, टावर के पास, नवयुग पुस्तक भण्डार में, एक आध बार तो हमने इशारे से किताब मांगी, फिर खुद ही चले गए...कितनी धूल खाती किताबें हमने निकाली वहां से, जाने किस किस कोने में पड़ी थी, उपेक्षित...नए साल में हमने उन्हें हवा खिलाने की ठानी थी। साथ खरीददारी करने वाले ने सोचा की इनमें से अब हम अपने काम की छांटेंगे पर हम तो पूरा झोला में भर दिए और थमा दिए...की ढो के ले चलो। आखिर छोटे भाई के रहते हम झोला काहे उठाएं। इस पूरे प्रकरण का इनाम मात्र एक समोसा था :) बेचारा पुरु हमको नहीं लगता है अब कभी मेरे साथ बाजार निकलेगा।
ट्रेन में तो चलो कोई टेंशन नहीं है, कितनो बोरा लाद लें, ठूंस ठंस के धर दें...की घरे तो जाना है, पहुन्च्चे जायेंगे...पर अबरी आना था हवाई जहाज से, मारे डर के धुकधुकी लगा था की निकलवाया हमारा किताब सब तो वही धरना दे देंगे, एक तो हम अकेले नन्ही सी जान हिंदी, हमारी राष्ट्रभाषा का का पूरा वजन अपने कंधे पर उठाये हैं, इसपर हमको कोई मेडल उडल देना तो छोड़ो सामान ले जाने से रोक रहे हैं, घोर राष्ट्रविरोधी ताकतें हैं...इनका धूर्त मंसूबा हम पूरा होने नहीं देंगे। खैर, एयरलाईन वालों को मेरे क्रन्तिकारी तेवर दिखाने की जरूरत नहीं पड़ी...सारा सामान उतना वजनी नहीं था जितना हमको लग रहा था। तो हम आराम से निकल आये।
हफ्ते भर ठंढ खा के, अलाव ताप के और कोहरे का भरपूर मज़ा उठा के वापस आ गए। इतने दिनों बाद लौट कर सब की इकठ्ठा पोस्ट्स पढने में इतना मज़ा आया की सोच रही हूँ, कुछ अंतराल पर ही पढ़ा करूँ ब्लोग्स, एक साथ पढने का मज़ा ही कुछ और होता है।
बाकी किताबों की लिस्ट नीचे है, इसमें से बिश्रामपुर का संत पढ़ना शुरू किया है अभी...पचपन खम्भे पहले भी पढ़ी है और कमसे कम चार बार खरीद चुकी हूँ, हर बार जाने कैसे यही एक किताब खो जाती है हमसे। कोई मांग के ले जाता है और लौटता नहीं(एक के साथ एक फ्री की तर्ज पर किताबें गायब करने के साथ ही आदमी भी गायब हो जाता है)। चूँकि किताबों का पचा जाना कोई ख़राब बात नहीं है, तो हम माफ़ कर देते हैं। कितनी नावों में कितनी बार के कुछ ही पन्ने पलटाये पर एक एक कविता जैसे दिल में उतरती चली गयी। मेरे ख्याल से ये भी साए में धूप की तरह मेरी पसंदीदा किताब बनने वाली है :)
इसे कहते हैं "हैप्पी न्यू इयर" :)
और ये रही लिस्ट :)
सूरज का सातवाँ घोडा, कुछ लम्बी कविताएँ- धर्मवीर भारती
ध्रुवस्वामिनी- जयशंकर प्रसाद
उर्वशी, हुंकार- दिनकर
एक वायलिन समंदर किनारे- कृश्नचंदर
देवी चौधरानी- बंकिम चन्द्र
सुहाग के नूपुर- अमृत लाल नागर
प्रतिनिधि कविताएँ- मुक्तिबोध
चित्रलेखा- भगवतीचरण वर्मा
मरकतद्वीप की नीलमणि- कुंवर बेचैन
परती परिकथा- फणीश्वर नाथ रेणु
बादशाही अंगूठी- सत्यजित राय
बिश्रामपुर का संत- श्रीलाल शुक्ल
कागजी है पैरहन- इस्मत चुगतई (आत्मकथा)
नीम का पेड़- राही मासूम रजा
तरकश- जावेद अख्तर
नयी पौध- नागार्जुन
छोटे छोटे सवाल- दुष्यंत कुमार
आपका बन्टी- मन्नू भंडारी
मेरा जीवन ए वन- काका हाथरसी (आत्मकथा)
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो- कर्तुल ऐन हैदर
पचपन खम्भे लाल दीवारें , भया कबीर उदास - उषा प्रियंवदा
आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार- अज्ञेय
बिराज बहू, चन्द्रनाथ- शरतचंद्र
ख़ामोशी से पहले , हरे धागे का रिश्ता - अमृता प्रीतम
लज्जा, French Lover - तसलीमा नसरीन
मंटो की चुनिन्दा कहानियां- मंटो
तुम्हें जब भी पढता हूँ, मुझे जावेद अख्तर की लाइन याद आती है... " क्या उसे मैं कह दूँ" और कसम से मैं हहराता हूँ की वाकई तुम्हें क्या कह दूँ... यह सारे ख्याल तो मेरे हैं.. तुमने डाका डाला है... कहने के अंदाज़ पर भी
ReplyDeleteगर जिंदगी की हकीकतों से सामना ना हुआ होता तो सिमली डाल के और इतनी मासूमियत से हम भी लिखते...
खैर...
लगा कि पाटलिपुत्र का झूमता हुआ गुलमोहर पढ़ लिया... या झुमका लटकाए अमलतास... भासा (सही पढ़ा ) भी तो ऐसा कि .... और हिंदी पर जो उपकार किया उसके कायल हुए... लिस्ट कि अधिकतर किताबें पढ़ी हुई हैं... पर तुमने ललचाया है तो तड़प उठा हूँ फिर से पढने को...
अब तो 30 janwari का intzaar है... vishwa pustak mela - pragati maidan (30 - 7 farwari)
अब कुछ बदला ले लूँ ललचाने का...
ReplyDeleteतुम्हारे कॉलेज गया था... गेट पर सरस्वती की प्रतिमा देखी... पहाड़ों पर कोहरा,
छोड़ो, जाने दो ... तुम जैसा नहीं लिख पा रहा...
निके
ReplyDeleteचौंक गईं?
Indic IME 1 में 'nice' 'निके' हो जाता है :)
@ एक तो हम अकेले नन्ही सी जान हिंदी, हमारी राष्ट्रभाषा का का पूरा वजन अपने कंधे पर उठाये हैं, इसपर हमको कोई मेडल उडल देना तो छोड़ो सामान ले जाने से रोक रहे हैं, घोर राष्ट्रविरोधी ताकतें हैं...इनका धूर्त मंसूबा हम पूरा होने नहीं देंगे।
सुन्दर गद्य
बढिया लिस्ट है । इसमें से बहुत-सी तो पढ़ ली हैं पर अब लिस्ट देखकर दोबारा पढ़ने को मन ललचा रहा है । वैसे किताबें उधार पर लेकर अपनी बना लेने वालों से भगवान बचाए । आपका दर्द पढ़कर हमें अपना दर्द याद आ रहा है । और लानतें भेज रहे हैं उन सभी को जिन्होंने हमारे ये किताबें नहीं लौटाईं---
ReplyDelete1.कागभगोड़ा: हरिशंकर परसाई
2. पचपन खंभे--उषा प्रियंवदा
3. लाल टीन की छत-निर्मल वर्मा
4. चुनिंदा कविताएं- केदारनाथ सिंह
5. वन नाइट एट कॉल सेन्टर- चेतन भगत
6. सूरज का सातवां घोड़ा और गुनाहों का देवता --भारती जी
7. मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था--मोहनलाल भास्कर
8. ठिठुरता हुआ गणतंत्र--परसाई जी
अब जी जलने लगा है । लिस्ट इतनी काफी है ।
@sagar
ReplyDeleteपता मिल गया है, लड़का पुस्तक मेला देखने जाने वाला है...सोचती हूँ महज इस नामुराद को पीटने के लिए दिल्ली आने का प्रोग्राम बना लूं :)
हद्द है.. एक तो कहां बिला जाती है पते नहीं चलता है, और आती है तो तूफान मेल जैसे सांय-सांय करते निकल जाती है.. कित्ता किताब खरीद कर लायी(मुरही वाला नहीं, चूड़ा बला लाई..मकर-संक्रांति पर खाने बला ;)) है उससे हमको का? कुच्छो किस्सा कहानी सुनाओ और एक दू ठो कितबवा हमको भी दान-दक्षिणा दो, तभिये ना बूझेंगे!!
ReplyDeleteअभी-अभी अनूप जी से बतिया रहे थे कि ई डाक्टरनी कहां बिलाई हुई है(बिल्ली वाला नहीं, गायब होने वाला :P).. और उनसे बतिया कर डिब्बवा(करमफूटर) खोले कि तुम्हरे पोस्ट लऊक गया..
वैसे एक ठो बात अऊर भी बढ़िया हो गया तुम्हारे ई पोस्ट से.. हमको ई पता चल गिया कि कौन-कौन जन से किताब मारा जा सकता है.. युनुस भैया, आप भी सावधान.. :)
सुन्दर लगा पढ़कर ..
ReplyDeleteजिस हिस्से को गिरिजेश जी ने
सुन्दर गद्य कहा है उसे मैं सुन्दर
'पद्य' भी कह रहा हूँ ..
.
अगर कोई किताब ब्लॉग-जगत
पर हो तो वाहौ बता दीजिये ..
क्या बात है पूजा...इत्ती साड़ी किताबें! खासी अमीर हो गयीं तुम तो! इनमे से जो मैंने पढ़ी हैं उनमे पचपन खम्बे..., सूरज का सातवाँ घोडा और आपका बंटी मुझे ख़ास पसंद हैं! बाकी पढ़कर तुम सजेस्ट करना....
ReplyDeleteवाह एक साथ इत्ती सारी साहित्यिक सामग्री की सूचि, बहुत बढ़िया, बहुत सारी तो हमने पढ़ी हुई है और कुछ पढ़ना बाकी है, तो ये अब पढ़ लेंगे।
ReplyDeleteगजब भवा..टोटलै गजब !!! इनमे से चार किताबें तो हम भी दू हफ़्ता पहले दुकान पे नकब लगा कर लाये हैं..सूरज का सातवाँ घोड़ा, नीम का पेड, मुक्तिबोध और अज्ञेय वाली...और दो तो घोट भी डाले..कोइन्सीडेन्ट हुआ यह तो..रेट बढ़ गये होंगे किताबों के अब तक तो..वैसे इतनी किताबें एक साथ..व्हीलर वाले के घर मे बच्चों ने घी के पराठे खाये होंगे शाम को..
ReplyDeleteऔर किताब पचा जाना खराब बात कैसे नही है (अगर हम खुद ही न पचा रहे हों तो)..हमारी कोई पचा कर दिखाये..(वैसे दोस्तों की आधी मंडली दिखा चुकी है :-( )..मगर अपनी भी नियत इसी एक चीज पे अटकती है...
सुहाग के नूपुर पढ़ने का बड़ा मन रहा..वैसे इनमे से जितनी पढ़ी हैं हमने उनमे सबसे बेहतर लगी आपका बंटी (अब हमारा ओपिनियन पूछा था किसी ने?)
:)
ReplyDeleteइसे कहते हैं हिन्दी प्रेम
ReplyDeleteये पीटने की बीमारी शायद PD की फैलायी हुई है :)
ReplyDeleteकुछ पुस्तकें इनमें से पढ़ी हैं और कुछ को पढ़ने का मान है.
ReplyDeleteवैसे सागर तुमने विश्व पुस्तक मेले की अच्छी याद दिलायी
किताबों की लिस्ट देख लालच आना स्वभाविक है सो ललचा गये, बस्स!!
ReplyDeleteडा.साहब की जय हो। किताबें बांचकर उनके बारे में लिखा भी जाये।
ReplyDeleteतरकश किसी छुट्टी वाले दिन पढना .एक अजीब सा मूड हो जाएगा..उसे पढ़ के .....वैसे एच एम् वी पर तरकश रिकोर्डेड भी उपलब्ध है .गर ढूंढ सको तो....इस फोटो में परती परिकथा देखकर ख़ुशी हुई...रेणू मेरे फेवरेट है ....लज्जा मुझे जंचा नहीं...नीम का पेड़ रजा का शायद बेहतरीन में से एक है ....ओर आपका बनती पर भी फिल्म बन चुकी है ओर पचपन खम्बा पर एक सीरियल....
ReplyDeleteलिस्ट में एक चीज़ ओर जोडूं.times of india ने शनिवार को एक स्पेशल एडिशन निकाला है .४० पेजों का उसे पढ़ती रहना
बंगलोर में कहाँ को बोक्सेर रहता है... फिर सीखती भी गिटार हो... ऐसे में मारा-मारी की बातें... कैसे :)
ReplyDeleteये लो सब बिहारी इक्कठे हो गए... इनको तो बस बहाना चाहिए.. वैसे अपूर्व ने सही कहा.. व्हीलर वाले की तो चांदी हो गयी..
ReplyDeleteबाय द वे हिन्दुस्तान में ट्रेने इसीलिए लेट होती है.. कि इन लोगो का भी धंधा चले..
किताबे तो चुन चुन कर लायी हो.. बहुत अच्छे
पुजा जी आपकी लिस्ट तो वाकई मे लाजवाब है मजा आ गया...:)
ReplyDelete"ये लो सब बिहारी इक्कठे हो गए... इनको तो बस बहाना चाहिए."
ReplyDeleteहलकट लोग परेशान हो रहे हैं :D
आ जाओ मगरूर भाई तुम भी हो टीम में :)
ना जाने क्या बात है नए साल में हमारे साथ कई जनों ने किताबों पर लिखा है? और आपने तो एक लिस्ट ही डाल दी और हमको आपसे जलन सी होने लगी है। कहते है जो अमीर(किताबों का) होता है उससे सब जलते ही है। काश कि हम भी इतनी सारी किताब ला पाते। अभी 1तारीख को दो एक किताब लाए थे तो मैडम जी बोली कुछ आए या ना आए किताब जरुर लाओगे नए साल पर। इसलिए चुपके चुपके ही ला पाते है। क्या करें जी?
ReplyDeleteचलो ब्लडी.. हम भी आ जाते है..
ReplyDeleteaapka lekh padha , accha laga ki abhi Hindi sahitya ko padhne wale shesh hain. nahi to aaj English ke liye itni maaramaari hai ki lagta hai ki hindi Hindustaan me hi bechari ho gayi hai....aapki pustkon ki list acchi hai. padhunga inhe bhi..
ReplyDeleteसोचता हूं जो कोई ऐसा विकल्प होती कि तुम्हारे पोस्ट में किताबों की फ़ेहरिश्त में ही टिक मार सकता कि कौन-कौन सी पे मेरा भी स्वामित्व है तो कितना मजा आता...
ReplyDeleteसोच रहा था कि मैथिली में टिपयाऊं...फिर कुश पे तरस आ गया..
पूजा तुम्हारी लम्बी लिस्ट पढकर मेरा भी मन ललचाने लगा है ! बस कुछ किताबे निकालूं और पढने के लिए कहीं छिपकर सारी किताबे पढ़ डालूं ! रैक में इतनी सारी किताबे लगी होती है लेकिन सामने होते भी पढ़ नही पाती हूँ ! लेकिन क्या करूं मन तो वही पड़ा रहता है इसलिए जब भी मौका मिलता है बस चिपक जाती हूँ किताबो के साथ में !
ReplyDeleteइ तो लिस्ट काफी बड़ी है कुछ किताबें इसमें से हमने पढ़ी हैकफी वे भी हैं जिन्हें आज तक पढने की हसरत पल रखा है उम्मीद है एक रोज पढ़ ही जायेंगे...
ReplyDeleteoh my god Pooja...kitna gazab...kitna gazab..likhte ho yaar...kya jaan loge baache ki..... nahin yaar...kya bhasha...kya tevar...aur kya attitude
ReplyDeletemy god..... kahan se lati ho...itna kuch.....I love u yaar
tumhara likha padna....ohh
main rozzzz intezar karti hun tumhara..... ki kab tum aao...aur apna pitara kholo..... n haan lottttt off thanksss dera...itni sari badhiya kitabon ki list ke liye..... love u dear
God bless U...aise hi likhte raho... aur kum se kum ...mujhe to navjivan deti raho
take care