जिंदगी बेतरह लम्बी फिल्म है
जिसके पात्र अचानक से कहीं चले गए हैं
और मैं स्टेज पर मौन हूँ
अकेली भी हूँ, और कहने को कुछ ढूंढ रही हूँ
फिल्म विथिन अ फिल्म
जब शब्द ना हों तो मुझे बहुत परेशानी होती है
ये शब्द ही इस दुनिया से जुड़े तंतु हैं
अचानक से माईम आर्टिस्ट कैसे बन जाऊं मैं
मैं चाहती हूँ कोई समझे
कि मैं क्यों बाईक ८० पर चलाती हूँ
कभी कभी
और गाने क्यों सुनती हूँ अँधेरे कमरे में
क्यों साफ़ करने लगती हूँ अलमारियां
क्यों बाल्टी भर कपड़े धो डालती हूँ
क्या ये मौन पात्र नहीं हैं
जिंदगी की फिल्म के फ्रेम का हिस्सा
जब बोलती नहीं हूँ
कलम भी नहीं चलती है
जब सोच में शब्द नहीं होते हैं
कोहरे में छिपे दृश्य होते हैं बस
इन्हें किसी कैनवास पर उतार दूं शायद
क्या मुझसे पेंटिंग हो पाएगी?
रंगों को देखती हूँ तो अचानक से
सब ब्लैक वाईट और ग्रे में बदल जाते हैं
अचानक से मैं खो देती हूँ अपनी आँखें
क्या रंगों को छू कर अलग रंगों का पता चल सकता है?
संगीत अपनी लय खो देता है
मुझे वक़्त का आभास होना बंद हो जाता है
इसलिए ताल नहीं दे सकती मैं
तीनताल, दादरा, कहरवा, दुगुन, तिगुन
सब अनजान हो जाते हैं मेरे लिए
खोयी हुयी दुनिया के खोये शब्द
मैं सृजन करना चाहती हूँ
शायद माँ बनना भी चाहती हूँ
ताकि अपने बच्चे की ऊँगली पकड़ कर
मैं अपनी दुनिया वापस पा सकूँ
जब कोई किरदार नहीं रहे मेरी फिल्म में
मैं एक किरदार पैदा करना चाहती हूँ
औरत हूँ मैं, जिंदगी जन्म दे सकती हूँ
और उसके इर्द गिर्द काट सकती हूँ बाकी समय
बिना गिने हुए, बिना देखे हुए
सिर्फ छू कर...
राधा का भी प्रेम था, यशोदा का भी
कृष्ण ने दोनों को बिछोह दिया
मैं अपने कृष्ण को कहाँ ढूंढ रही हूँ...
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मुझे लगता है मैं पागल हो जाउंगी बहुत जल्दी।
मैं सृजन करना चाहती हूँ
ReplyDeleteशायद माँ बनना भी चाहती हूँ
ताकि अपने बच्चे की ऊँगली पकड़ कर
मैं अपनी दुनिया वापस पा सकूँ
--सभी मनोकामना पूर्ण हों..अनेक मंगलकामनाएँ...
रचना बहुत भावपूर्ण है.
रचना सुंदर और भावपूर्ण है।
ReplyDeleteपर जाने क्यों लगता है आप अंदर कहीं गहरे बहुत उदास हैं। मन होता है आप को एक जादू की झप्पी दे कर आपके दर्द को पिघला दें और आप एक्दम से खिलखिलाती पूजा बन जायें। पर आपको शायद आपके आस पास ही किसी की झप्पी की ज़रूरत है।
कुछ ज्यादा ही लिबर्टी ले ली है। बुरा मत मानियेगा।
बच्चे बहुत देर उदास नहीं रहने देते…… …
ReplyDeleteसृजन की चाह रखने वाला पागल नही हो सकता पूजा....!!
ReplyDelete"क्या रंगों को छू कर अलग रंगों का पता चल सकता है?"
ReplyDeleteअभी से ऐसी सोच और विचार लगता है जैसे मन की गागर को कविता में उड़ेल दिया है - बेहद खुबसूरत और भावना से सराबोर अभिव्यक्ति - हार्दिक शुभकामनाएं.
तथास्तु
ReplyDeleteअंतिम पंक्ति को छोडकर
सभी एक ही हालत से गुज़र रहे हैं.. वाकई यह पागल होने के ही दिन हैं...
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ReplyDeleteअकेली तुम नहीं ...आत्मा की आवाज़ बांटने वाले सभी पागल हुए जाते हैं...
ReplyDeleteGood post.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत...
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteSanjay kumar
http://sanjaybhaskar.blogspot.com